मैं इक बात कहूँ- मूल ज्ञान सुनी सुनी बातों से लिप्त है, मूल धर्म सुनी सुनी बातों से लिप्त है। मतलब 90% समाज उस ज्ञान और धर्म का पालन कर रहा है जो सुनी सुनी बातों वाला है। तो जो मूल ज्ञान है वो सुनी सुनी बातों से लिप्त हो गया, आवृत्त हो गया। उसको ऐसे ढक लिया जैसे हीरे को कोई कपड़ा ऐसा ढक ले कि उसकी चमक भी बाहर न आए।
मूल धर्म की भी स्थिति यही है। सुनी सुनी बातों से। उसका वास्तविक स्वरूप श्रीकृष्ण कह रहे हैं- वासुदेव सर्वम् इति इसमें तो कोई संदेह ही नहीं है कि वासुदेव सर्वम् नहीं है पर वो महात्मा जो उन्हें सर्वम् अनुभूति करे, वो बड़ा दुर्लभ है।
परमात्मा कह रहा है कि महात्मा दुर्लभ है। जिसके लिए कोई दुर्लभ चीज नहीं है। लक्ष्मी जिसके चरण दबा रही है।
रत्नाकरे तव गृहे गृहणी च पद्मा॥
जिसका घर रत्नाकर हो और घरवाली पद्मा हो वो कह रहे हैं- महात्मा बड़ा दुर्लभ है। वासुदेव सर्वम् इति का अनुभव कर रहे हैं।
॥परमाराध्य पूज्य श्रीसद्गुरु भगवान जु॥
||Shree Radharamanno Vijayatey||
I would like to say that the original Gyan or knowledge and the basis of Dharma is based on hearsay! What it means is that ninety percent of the society is following the knowledge and Dharma which is based on hearsay! Therefore, the root source of Gyan has been ensconced or soiled by hearsay! It has been covered just like you cover a diamond in a thick cloth so that even a ray of its brilliance can’t be seen!
The state of the root source of Dharma is also like this. It is just hearsay! The original form is declared by Shree Krishna, ‘Vaasudeva Sarvam Iti’! There is no doubt about this declaration the ‘Vaasudeva’ is everything but the Mahatma who has realised it is rare to find!
The Paramatma is saying that the Mahatma is rare, it is being said by the one for whom nothing is impossible! Whose Lotus Feet are being caressed by Mata Lakshmi.
‘Ratnakarey tava grihay grihanni cha Padma||’
The one whose abode is Ratnakar and whose wife is Padma, He is saying that the Mahatma is difficult to find who experiences ‘Vaasudeva Sarvam Iti’!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
एकं वदामि – मूलभूतं ज्ञानं श्रुते सक्तं भवति, मूलधर्मः श्रुते सक्तः। अर्थात् ९०% समाजः तस्य ज्ञानस्य धर्मस्य च अनुसरणं करोति यत् श्रुतस्य अस्ति। अतः मूलभूतं ज्ञानं श्रुतवस्तूनाम् आकृष्टं जातम्, आच्छादितं जातम्। आवृतं यथा पटः हीरकं आच्छादयति यथा तस्य कान्तिः अपि न निर्गच्छति।
आदिधर्मस्यापि स्थितिः समाना एव । श्रुतात् । तस्य वास्तविकरूपं श्रीकृष्णः वदति – वासुदेव सर्वम् इति वासुदेवः परमः नास्ति किन्तु तं परमत्वेन अनुभवं कुर्वन् महात्मा अतीव दुर्लभः इति न संशयः।
ईश्वरः वदति यत् महात्मा दुर्लभः अस्ति। यस्य कृते दुर्लभं वस्तु नास्ति। यस्य पादौ लक्ष्मी निपीडयति।
रत्नाकरे तव गृहा गृहिणी च पद्म ।
येषां कुटुम्बं रत्नाकरः पत्नी पद्मा च ते वदन्ति – महात्मा सुदुर्लभः। वासुदेवः सर्वम् इति अनुभवति।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।