श्री राधारमणो विजयते
अगर आपको अपने जीवन में नित्य आनन्द का नियम बनाना है तो उसके लिए सबसे पहला सूत्र मेरे मन में आया कि आप अपनी समस्या को समस्या मत देखिए तपस्या देखिए।
कभी-कभी हम तपस्या को भी समस्या देखते हैं। जीवन को आनंदमय बना लो। ऐसा नहीं है कि आपके चारों ओर समस्या नहीं है। हर चीज समस्या ही है। लेकिन आप उसको इस दृष्टि से देखना चाहते हो तो उसका सबसे पहला सूत्र है कि उस समस्या को तपस्या में बदल लो। तपस्या आपके बेटरमेंट के लिए होती है। आपके अनुभव के लिए होती है।
नित्य आनन्द का नियम होना चाहिए यही नित्यानन्द का वास्तविक अर्थ है।
जो चीज की जाए वह पूर्ण आनंद से भर कर की जाए। आनंद प्राप्त करना अलग चीज है पर जो चीज की जाए उसमें आनंद भर देना अलग चीज है। हम सदा आनंद को प्राप्त करने का उद्यम करते हैं वस्तु से आनंद प्राप्त नहीं होता क्योंकि आनंद एक्सटर्नल नहीं है वह आपके ही भीतर भरा है।
हम वस्तुओं में आनंद प्राप्त करने की इच्छा करते हैं और कई बार आशाएं लेकर जाते हैं और उसमें असंतुष्ट होते हैं और गड़बड़ हो जाती है।
आप जो करो उसे आनंद से भर कर करो भोजन भी बनाना हो तो समस्या की तरह नहीं तपस्या की तरह बनाना। हंसते हुए, मुस्कुराते हुए, नृत्य करते हुए बनाना।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
If you want to experience Anand all the time in life then this sutra came to my mind that don’t look at the problem or difficulty as an obstacle, view it as a Tapasya!
At times, we look at Tapasya to be a Samasya or a problem. Please make your life blissful. It can never be that there are no problems in life! Life is full of problems. Just change the outlook and treat the problem to be a sort of penance. Tapasya is always for your betterment. It is there to give you an experience or to teach you a lesson!
You must take it upon yourself to treat your life as blissful. To experience Nityananda!
Whatever you do, do it happily with enthusiasm. To experience Anand is a different thing but to make whatever you do to be blissful is entirely a different thing! We always strive to attain Anand but things cannot give you that because Anand is not something external, it is within!
We have this misnomer that things will give me happiness and go out with a lot of expectations but we return disheartened!
Whatever you may do, please do it happily and be filled with enthusiasm, even if you have to cook, do it happily and not as a burden! Do it smilingly, happily and dancing with joy!
||Param Aaradhya Poojya Shreeman Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदि भवन्तः स्वजीवने नित्यसुखस्य नियमं कर्तुम् इच्छन्ति तर्हि प्रथमं सूत्रं मम मनसि आगतं यत् भवन्तः स्वसमस्यां समस्यारूपेण न द्रष्टव्याः, तपस्यां पश्यन्तु।
कदाचित् तपः अपि समस्यारूपेण पश्यामः। जीवनं आनन्ददायकं कुरुत। न तु भवतः परितः समस्याः नास्ति इति। सर्वं समस्या अस्ति। परन्तु यदि भवान् अस्मात् दृष्ट्या द्रष्टुम् इच्छति तर्हि प्रथमं सूत्रं तस्याः समस्यायाः तपस्यायां परिवर्तनम् अस्ति। तपः भवतः हिताय अस्ति। भवतः अनुभवाय एव अस्ति।
नित्यभोगस्य नियमः भवेत्, एषः नित्यानन्दस्य वास्तविकः अर्थः।
यत्किञ्चित् कृतं तत्सर्वहर्षेण कर्तव्यम्। सुखं प्राप्तुं एकं कार्यं, परन्तु यत् किमपि कुर्मः तस्मिन् आनन्दं पूरयितुं भिन्नं कार्यम्। वयं सर्वदा सुखं प्राप्तुं प्रयत्नशीलाः स्मः। सुखं वस्तुभ्यः न आगच्छति यतोहि सुखं बाह्यं नास्ति, तत् भवतः अन्तः पूरितम् अस्ति।
वयं वस्तुषु सुखं प्राप्तुम् इच्छामः बहुवारं च अपेक्षाः वहन्तः तेषु असन्तुष्टाः भवेम तथा च विषयाः भ्रष्टाः भवन्ति।
यत्किमपि करोषि तत् हर्षेण कुरु। भोजनं कर्तव्यमपि समस्यारूपेण न तु तपस्यरूपेण सज्जीकुरुत । हसन्, स्मितं, नृत्यं कृत्वा।
परमादरणीय: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज .