धर्म कैसा होना चाहिए? जो आपके प्रैक्टिकल लाइफ को पोषित करे। आजकल प्रैक्टिकल वाला शब्द बहुत ओवर हाइट है। क्राउड जो कर रहा हो समान्यतः उसे ही करने का मतलब हम बीइंग ए प्रैक्टिकल समझ लेते हैं। पर प्रैक्टिकल होने का मतलब होता है बीइंग इंटेलेक्चुअल स्ट्रांग।
आज के युवा जो 36 प्रकार के काम करते हैं कहीं से प्रैक्टिकल नजर नहीं आते। प्रैक्टिकल शब्द का अर्थ होता है सही बात का आचरण करना। इसका सहज अनुभव करना।
आप स्कूल में टेस्ट देते हैं थ्योरी और प्रैक्टिकल। ऑक्सीजन और हाइड्रोजन को मिलाते हैं तो पानी बनता है। यह पहले किताब में पढ़ा, अब लैब में टीचर कहेगा इसका प्रेक्टिकल करके दिखाओ।
थ्योरी के एप्लीकेशन को ही प्रैक्टिकल कहते हैं।
आज के समय में हमने प्रैक्टिकल को यह जान लिया है कि मंदिर नहीं जाना, पूजा पाठ ये रूढ़िवादी काम नहीं करना। रूढ़िवादी काम न करना और बहुत सारे जो ऐसे काम है उसको करना, उसको हम बीइंग ए प्रैक्टिकल लाइक समझते हैं। यह कितनी विचित्र सी परिभाषा है।
हम सत्य का अभ्यास करें, यही बीइंग प्रैक्टिकल है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
What should be the nature of Dharma? It should be such which enriches our day-to-day lives in a practical manner. These days the word ‘practical’ is over hyped! Generally, whatever the majority or the crowd says, we deem it to be practical. In my opinion, being practical means to be intellectually strong!
Today’s youth do 36 different things, do they seem practical from any angle? Practical means to do the right thing correctly! To experience it very naturally, sans any pressure!
When you sit for your school exams, you have two types of tests, one is theory and the other is practical! When you combine hydrogen with oxygen, it creates water. This was taught in the class, then the teacher asks you to do it practically.
The application of theory is practical!
Today, not going to the temple, do not do the ‘Patha’ of the scriptural texts or such acts are considered to be alien and hence avoiding doing them is being practical! Not to follow the ancient beliefs and refrain from doing them is being construed as being practical in life, today! What an obnoxious definition is this?
Let us practice truthfulness or the adherence to truth is being practical!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
धर्मः कीदृशः भवेत् ? यत् भवतः व्यावहारिकजीवनस्य पोषणं करोति। अधुना व्यावहारिकशब्दः अतीव अतिमूल्याङ्कितः अस्ति । सामान्यतया वयं व्यावहारिकः व्यक्तिः इति अवगच्छामः यत् जनसमूहः यत् किमपि करोति तत् कर्तुं । परन्तु व्यावहारिकत्वस्य अर्थः बौद्धिकबलवत्त्वम्।
अद्यतनयुवकाः यत् ३६ प्रकारं कार्यं कुर्वन्ति तत् सर्वथा व्यावहारिकं न दृश्यते। व्यावहारिकशब्दस्य अर्थः सम्यक् कार्यं करणं भवति। तस्य सहजतया अनुभवं कर्तुं।
भवन्तः विद्यालये, सिद्धान्ते, व्यावहारिके च परीक्षाः ददति। प्राणवायुः जलवायुः च मिलित्वा जलं निर्मीयते । प्रथमं भवन्तः पुस्तके एतत् पठन्ति, अधुना प्रयोगशालायां शिक्षकः भवन्तं व्यावहारिकरूपेण दर्शयितुं वक्ष्यति।
सिद्धान्तस्य प्रयोगः व्यावहारिकः इति उच्यते ।
अद्यतनकाले वयं व्यावहारिकरूपेण ज्ञातवन्तः यत् मन्दिरं न गन्तव्यं, पूजां न कर्तव्यम्, एतानि रूढिवादीनि कार्याणि न कर्तव्यानि च। रूढिवादीकार्यं न कृत्वा तादृशानि बहूनि कार्याणि कृत्वा वयं तत् व्यावहारिकं प्रकारं मन्यामहे। किं विचित्रं परिभाषा एषा।
अस्माभिः सत्यस्य अभ्यासः कर्तव्यः, एतत् व्यावहारिकं भवति।
..परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।