श्री राधारमणो विजयते
वो जड़ वस्तु भी सामान्य नहीं है अगर श्रीलाल जी तक वो पहुँची है।
उसमें कुछ खास होगा। अरे ! वो रेशम का धागा भी जिस कीट ने बनाया था कोई मालूम नहीं वो कीट भी कभी किसी पुनर्जन्म में किसी वृन्दावन के रसिक के चरणाघात से निवृत्त होकर इस रूप में परिणित हुआ कि एक रेशम की डोरी बन गया और वो डोरी किसी वैष्णव के हाथ लग गयी और उसने बड़ी सुन्दर श्रीलालजु का जाँघिया बना दिया और ठाकुरजी के अन्तरंग वेश के रूप में परिणत हो गया।
ये मात्र अनुभव कि दृष्टि है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
An inanimate object is also not ordinary if it is offered to Shree Lalju. There is something special in it! Arrey, even that silk thread which has been made by the silk worm, even the worm in some previous birth must have been trampled upon by a Rasika of Shree Dham Vrindavan and having attained some merit, in this birth has been able to weave a silk thread which has been picked up by a Vaishnav who has used it for making a garment for Shree Thakurji and is now adorning Him! This is merely the view attained after the divine experience.
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
तत् निर्जीवं वस्तु अपि सामान्यं न भवति यदि सा श्री लाल जीं प्राप्तवती अस्ति।
तस्मिन् किञ्चित् विशेषं भविष्यति। अहो न जानाति कीटं येन तत् क्षौमसूत्रं कृतम् आसीत्। सः अपि कीटः कस्मिंश्चित् पुनर्जन्मनि वृन्दावनस्य कस्यचित् ऋषिस्य पादयोः निवृत्तः भूत्वा क्षौमसूत्रे परिणतः अभवत् तथा च सः सूत्रः कस्यचित् वैष्णवस्य हस्ते पतितः। तथा च सा श्रीलालस्य कृते अतीव सुन्दराणि जाघियानि ठाकुरजी कृते च अंतरंगवस्त्राणि निर्मितवतीरूपान्तरितवती।एतत् केवलं अनुभवस्य दर्शनम् एव।
~परमाराध्य: पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।