श्री राधारमणो विजयते ||
श्रीकृष्ण प्रेम में वास्तव में कोई आँसू बहाने वाला मिल जाय ये बहुत दुर्लभ है। दुनिया में रोते बहुत मिलते हैं पर एक बार टटोल कर देख लेना निश्चित रूप से संसार के दुःखों का अनुभव करके ही उनकी आँखों से आँसू आ रहे हैं। श्रीकृष्ण वियोग में कैसे आँसू आएँगे जब तक श्रीकृष्ण संयोग नहीं हुआ तो वियोग कैसेहोगा?
हम संसार का दु:ख स्वरूप सोच कर ही रोतै है उसने ये किया उसने वो किया ये संसार कैसा है.. अरे श्रीकृष्ण के विरह में तो वही रो सकता है जिसने श्रीकृष्ण का संयोग पाया हो।
वो संतजन वो महद् जन वो साक्षात् वैष्णवजन जिन्होंने श्रीठाकुरजी की सन्निधि पाई है प्रत्यक्ष सन्निधि पाई है। संदेह नहीं करना।
किसी महात्मा का महत्मत्व संतत्व इतने वर्षों से अगर बचा हुआ है तो ये प्रमाण है कि उसने श्रीठाकुरजी की झांकी पाई है। नहीं तो संसार का इतना आकर्षण है कि वैराग्य को सम्हालना बहुत कठिन काम है।
संसार की नीरसता का अनुभव करके वैराग्य नहीं सम्हाला जा सकता श्रीकृष्ण की सरसता का अनुभव करके वैराग्य बचाया जा सकता है। ये बात पक्की है।
कोई स्वादिष्ट भोजन आने वाला हो उसकी प्रतीक्षा में भूख लगने पर भी सामान्य भोजन छोड़ सकते हो ऐसे ही श्रीकृष्ण मिलन आनन्द का ये प्रभाव है कि आकर्षण से भरे हुए संसार का संत उपभोग नहीं करता। अन्यथा संतत्व को सम्हालना कोई सरल कार्य नहीं है।
भगवान दुर्लभ नहीं हैं, संत दुर्लभ हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
It is a rarity to find someone whose eyes are continuously flowing in Krishna Prema! You will find many people shedding tears in the world but on close examination you will find that they are crying out of the miseries of their lives. How can the tears flow because of Shree Krishna’s separation because have you met Him that you are weeping on seperating from Him?
Mostly, we cry out of the miseries we face, so and so has done this, the other person has done that, the world is full of miseries, etc,… Arrey! The one who has had the good fortune of meeting or experiencing Shree Krishna, can only weep on His separation.
Those great Saints or great personalities, those Vainshnavas have experienced the Divine company of Shree Thakurji in reality or in person! Please don’t doubt!
If the saintliness or the greatness of a Mahatma is intact in so many years is in itself a proof that he/she have experienced Shree Thakurji’s Darshan or has had His Divine experience. Because, the world is so mesmerizing and illusory that it is very difficult to hold on to your Vairagya.
One can’t try to hold on to their Vairagya only by experiencing the hollowness or realising the world to be very uninteresting. You can only protect your Vairagya by experiencing the Divine Rasa of Shree Krishna Prema! This is a certainty!
If you are expecting some delicious food to come then waiting for it, in spite of feeling hungry you can give up ordinary food. In the same way, the attraction or the expectation of meeting Shree Krishna is so powerful that the Saint overlooks the attraction or distractions of the world. Or else, to maintain one’s saintliness is not easy!
The Lord is not out of reach but a true Saint is indeed very difficult to get!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
श्रीकृष्णस्य प्रेम्णा वस्तुतः अश्रुपातं कुर्वन् कोऽपि द्रष्टुं अतीव दुर्लभम्। अस्मिन् संसारे बहवः जनाः रोदन्ति, परन्तु एकवारं भवन्तः परितः अवलोकितवन्तः चेत् तेषां नेत्रयोः अश्रुपातः अवश्यमेव जगतः दुःखानि अनुभवित्वा भविष्यति। श्रीकृष्णवियोगे कथं अश्रुपाताः भविष्यन्ति ? यावत् श्रीकृष्णेन सह संयोगः न स्यात् तर्हि कथं वियोगः भविष्यति।
वयं केवलं जगतः दुःखं चिन्तयन्तः रोदामः, सः एतत् कृतवान्, सः एवम् अकरोत्, एषः संसारः कीदृशः अस्ति.. हे श्रीकृष्णेन विरहेण श्रीकृष्णेन सह मिलित्वा एव रोदितुं शक्नोति।
ते सन्ताः, ते महाजनाः, ते सत्या वैष्णवजनाः ये श्रीठाकुरजीसङ्गं प्राप्तवन्तः, ते प्रत्यक्षसङ्गतिं प्राप्तवन्तः। मा शङ्कयतु।
यदि महात्मायाः साधुत्वस्य महत्त्वम् एतावता वर्षेभ्यः जीवितं अस्ति तर्हि श्री ठाकुरजी इत्यस्य झलकं प्राप्तम् इति प्रमाणम्। अन्यथा लोकस्य तावत् आकर्षणं भवति यत् वैराग्यस्य निर्वाहः अतीव कठिनः भवति ।
लोकस्य जडतानुभवेन वैराग्यं न धारयितुं शक्यते। श्रीकृष्णस्य माधुर्यस्य अनुभवेन वैराग्यस्य उद्धारः कर्तुं शक्यते। एतत् वस्तु निश्चितम् अस्ति।
किञ्चित् स्वादिष्टं भोजनं आगमनं प्रतीक्षमाणः भवन्तः क्षुधां अनुभवन्ति चेदपि सामान्यभोजनं त्यक्तुं शक्नुवन्ति । तथा श्रीकृष्णसमागमस्य आनन्दस्य प्रभावः अस्ति यत् साधुः आकर्षणपूर्णं जगत् न भोजयति। अन्यथा साधुत्वस्य संचालनं न सुकरं कार्यम्।
ईश्वरः दुर्लभः नास्ति, सन्तः दुर्लभाः सन्ति।
परमादरणीय: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ।