इतनी सी सावधानी कि हमारे किसी गमनागमन, अवस्थान-अवलोकन, हसन-दसन, विलोकन, उड्डयन-उत्थापन में कहीं भी किसी भी परिवेश में क्षण मात्र के लिए भी किसी वाह्य वस्तु का स्पर्श भी न हो जाय। हमारे मन को कभी भी अभिमान स्पर्श न करे।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद मात्सर्य की कोई सी धागा भी न छुब जाय। हमारे भीतर लोकैषणा, वित्तैषणा, यशैषणा, स्वर्णैषणा, पदैषणाओं का रत्ति मात्र भी स्पर्श न हो जाय।
जैसे कोई भी गोस्वामी स्नान के बाद भीड़ से बचता हुआ सेवा में पहुँचता है। भीड़ में अपने को बचाते हुए, चारो तरफ से अपने को समेटते हुए, अपने आस-पास के दो चार को हटाते हुए सेवा में पहुँचते हैं उसी प्रकार
जैसे लोगों के स्पर्श से बचने का प्रयास हो उसी प्रकार काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद मात्सर्य से भी बचने का प्रयास हो। वैसे ही लोकैषणा, वित्तैषणा, यशैषणा, स्वर्णैषणा इन एषणाओं से बचने का प्रयास हो।
जितने प्रकार के उहापोह जीवन में विद्यमान हैं उनसे बचने का प्रयास हो, जितने पूर्वाग्रह जीवन में विद्यमान हैं उन सारे पूर्वाग्रहों से बचने का प्रयास हो।
अगर मन के ऊपर इन सब प्रतिबंधों को हमने व्यवस्थित कर लिया तो जीव सदा अपरस में ही विद्यमान रहता है
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
We need to be careful that in our coming and going, abiding and seeing, laughing and talking, seeing, flying or finishing, in any of these acts or under no circumstances, there should be a contact with any external substance, even for a moment! Ego should never even touch our minds!
Even a thread of Kama, anger, greed, Moha, jaggedness and envy should not touch us! We should not harbour any desire of heaven, desire of wealth, desire of fame, desire of gold, hankering for higher positions should not even come near us!
If you would have noticed, the Goswami after his bath will proceed for ‘Sewa’ trying to avoid the crowd and being careful of not touching anything. He will walk saving himself in the crowd, trying to be within himself and will try to request the people to let him pass, so that he can proceed for ‘Sewa’!
Like this effort of not touching or being touched by anyone, in the same way we should protect ourselves from Kama, anger, greed, Moha, jaggedness and envy! Similarly, we need to shun the desire of heaven, wealth, fame, gold or any desire for that matter!
The amount of cogitation that are there in our day to day lives, we need to protect ourselves from it, all the prejudices that plague our lives, we need to be careful and avoid ourselves from their contact!
If we are able to exercise these restrictions on our mind then the Jeeva will always remain in ‘Ap-Rasa’!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
एतावत् सावधानी यत् अस्माकं कस्मिन् अपि गतिनिरीक्षणे, सौन्दर्यनिर्णये, अवलोकने, विमानन-उत्थापने, कुत्रापि कस्मिन् अपि वातावरणे, क्षणमपि कस्यापि बाह्यवस्तुनः स्पर्शः न भवेत्। अभिमानः अस्माकं मनः कदापि न स्पृशतु।
कामक्रोधलोभसक्तिसूत्रापि न स्पृशेत् । अस्माकं अन्तः लोकैशान-विट्टैशान-यशैशान-स्वर्णैशान-पदैशान-स्पर्शः न भवेत्।
यथा कश्चन गोस्वामी जनसमूहं परिहरन् स्नानानन्तरं सेवां प्राप्नोति। जनसमूहे आत्मनः रक्षणं कृत्वा, समन्ततः आच्छादयित्वा, पार्श्वतः परितः द्वौ वा चत्वारः जनान् अपसारयित्वा, ते एवमेव सेवां प्राप्नुवन्ति।
यथा जनस्पर्शपरिहारप्रयत्नः, तथैव कामक्रोधलोभसक्तिमिर्ष्यापरिहारप्रयत्नः भवेत् । तथा लोकैष्ण-विट्टैष्ण-यशैष्ण-स्वरैष्ण-आदीनां कामानां परिहाराय प्रयत्नाः करणीयाः।
जीवने ये प्रकाराः उत्पाताः सन्ति तेषां सर्वेषां परिहाराय प्रयासः भवेत्, जीवने ये पूर्वाग्रहाः सन्ति तेषां सर्वेषां परिहाराय प्रयत्नः भवेत्।
यदि वयं मनसि एतान् सर्वान् प्रतिबन्धान् निश्चिनुमः तर्हि आत्मा अपरेषु सदा विद्यते।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।