अमृत कहाँ है? भगवान के आश्रित जीवों के कंठ में अमृत है। इसलिए जब कोई भक्त बोले तो अपने आप अमृतत्व का बोध होता है।
अमृत शब्द का एक अर्थ होता है ना मरने वाला। दूसरा अर्थ होता है मीठा, स्वादिष्ट, अद्भुत। गंगा का जल अमृत है। भगवान की कथा भी अमृत है।
आप यह खोजिए आपके भीतर अमृतत्व क्या है? अमृत कोई व्यवस्था नहीं है। अमृत उसकी अनुभूति है। आपने जो अनुभव किया है वह अमृत है। मीरा ने जो अनुभव किया है उसकी अनुभूति अमृत है। सूर ने जो अनुभव किया उसकी अनुभूति अमृत है। कथा में जो अनुभव होता है उसकी अनुभूति अमृत है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
अमृतः कुत्र अस्ति ? ईश्वरस्य आश्रितानां कण्ठेषु अमृतं भवति। अतः भक्तस्य वदता स्वतः अमृतत्वस्य बोधः भवति ।
अमृतशब्दस्य एकः अर्थः न म्रियते । द्वितीयः अर्थः मधुरः, स्वादिष्टः, अद्भुतः। गङ्गायाः जलं अमृतम् । ईश्वरस्य कथा अपि अमृतम् अस्ति।
भवन्तः आविष्करोति यत् भवतः अन्तः अमृतत्वं किम् अस्ति ? अमृतं न व्यवस्था। अमृतं तस्य अनुभवः । यत् भवता अनुभवितं तत् अमृतम्। मीरया यत् अनुभवितं तस्य भावः अमृतः एव । सुरः यत् अनुभवति स्म तस्य भावः अमृतः अस्ति। कथायां यः अनुभवः अनुभव्यते सः अमृतः ।
परमाराध्य : पूज्य : श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Where is Amrit? You will find Amrit in the throats of the surrendered devotees of the Lord. That is why, when a Bhakta speaks, his/her words drip nectar or seem like Amrit.
One meaning of Amrit is that what makes you eternal. The second meaning is sweet, delicious or amazing! The Gangajal is Amrit! The Bhagwad Katha is Amrit!
You should try to find out what is like Amrit in you? Amrit is not an arrangement or something very decorative. Amrit is the experience! What you have experienced is Amrit. What Meera experienced was Amrit! What ‘Soor’ experienced was Amrit. What you experience in the Katha is Amrit!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||