श्री राधारमणो विजयते ||
वर्तमान समय में सबसे बड़ी आपत्ति विपत्ति पाखंड ही है। और कोई वास्तविक विपत्ति नहीं है। इतनी बड़ी व्यवस्था सब ठीक है व्यवस्था चल रही है, कॉन्स्टिट्यूशन चल रहा है पर आज के समय में यह भी एक विपत्ति है एक तरह से।पाखंड भी एक तरह से बहुत बड़ी विपत्ति है
जैसे शारीरिक विपत्ति, आर्थिक विपत्ति यह सब हैं। बड़े-बड़े शत्रुओं से व्यक्ति बचे पर आज वर्तमान समय में व्याप्त आडम्बर जो है वह भी बहुत बड़ी विपत्ति है।
श्रद्धा से तिलक लगाना अलग बात है, एकांतिक तिलक अलग विषय है। स्तुति और प्रस्तुति में बहुत अंतर है। स्तुति और प्रस्तुति में प्र है। यह प्रकृष्ट है, यही प्रकृति है। स्तुति आत्मक विषय भिन्न है प्रस्तुति आत्मक विषय भिन्न है।
पाखंड को समझना होगा। सामान्य रूप में पाखंड का अर्थ केवल इतना सा ही है, आंतरिक स्थिति अलग है पर वाह्य स्थिति अलग है। यही पाखंड है। और इससे बड़ी क्या पाखंड की व्यवस्था है? मन में कुछ और है, मुंह में राम।। यही तो सबसे बड़ा पाखंड है। हम इसके प्रति सावधान रहें।
पर हां कई चीजें वर्तमान समय में देखते हुए संस्कृति की प्रचार की दृष्टि से आवश्यक भी है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The greatest difficulty or problem is hypocrisy. There seems to be no other obvious danger! Such huge organizations, everything is running well as per the norms, the constitution is in place but in today’s times this too is an issue! Hypocrisy in real terms is a big problem!
Like we face physical problems or economic or financial difficulties, all these are there. Mankind should guard against these enemies but the hypocrisy or the fallacy plaguing the world today is a big challenge!
To anoint the forehead with the Tilak out of faith and devotion is a different matter but just to put it on to showoff is entirely different! There is a lot of difference between ‘Stuti and Prastuti’. ‘Prastuti’ has ‘Pra’ as the prefix, this is what is ‘Prakriti’ or ‘Prakrishtha’ or outward showoff! The nature of Stuti is very much different to Prastuti!
We will have to understand hypocrisy correctly. Generally speaking the meaning of hypocrisy is dual faced or two faced character who aapears to be entirely different than what he/she actually is! This is hypocrisy. What more falsehood can one expect? Without an iota of Rama within, the person is saying Rama Rama! This is the height of hypocrisy! We need to be very careful and alert about it!
Though, certain things, looking to the present times, for the propagation of our culture are necessary also!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
वर्तमानकाले बृहत्तमः आक्षेपः विपत्तिः च पाखण्डः एव। न च वास्तविकं आपदा अस्ति। एतादृशी विशाला व्यवस्था, सर्वं सुष्ठु अस्ति, व्यवस्था कार्यं करोति, संविधानं कार्यं करोति परन्तु अद्यतनकाले एकप्रकारेण अपि आपदा अस्ति। पाखण्डः अपि एकप्रकारेण महती आपदा अस्ति।
भौतिकविपत्तिः आर्थिकविपत्तिः इव एतानि सर्वाणि तत्र सन्ति। बृहत्शत्रुभ्यः मनुष्यः तारयितुं शक्यते, परन्तु वर्तमानकाले प्रचलितः आडम्बरः अपि महती विपत्तिः अस्ति ।
भक्त्या तिलकं प्रयोजयितुं भिन्नं वस्तु, एकान्ततिलकं भिन्नं विषयम्। स्तुतिप्रस्तुतियोः बहु भेदः अस्ति । स्तुतिप्रस्तुतौ प्रश्नः अस्ति। एषा तेजस्वी, एषा प्रकृतिः। स्तुत्यस्य आध्यात्मिकविषयः भिन्नः, प्रस्तुतीकरणस्य आध्यात्मिकः विषयः भिन्नः।
पाखण्डं अवगन्तुं भवति। सामान्यतः पाखण्डस्य अर्थः केवलम् एतदेव, आन्तरिकस्थितिः भिन्ना किन्तु बाह्यस्थितिः भिन्ना। एतत् पाखण्डम्। अस्मात् च का कपटव्यवस्था गरीयसी ? मनसि अन्यत् किमपि राम मुखे। एषः एव बृहत्तमः पाखण्डः अस्ति। अस्मिन् विषये सावधानाः भवामः।
परन्तु आम्, वर्तमानकाले अनेकानि विषयाणि विचार्य संस्कृतिप्रवर्धनदृष्ट्या अपि आवश्यकम्।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥