एक चीज जप है। हो सकता है जप भी भजन न हो। वो भी हो सकता है प्रदर्शन के लिए हो। ये बात दूसरी है
भाव कुभाव अनख आलसहु।।
ये तो नाम की सामर्थ्य है। तुम्हारा अभ्यास थोड़ी न है।
कोई डाक्टर बड़ा उदार हो, नम्बर दे दे जब मर्जी फोन करो। और तुमको रात में बड़ी जोर की छींक लगी, तुम्हारी आंख खुल गई, माथा झन्ना गया और तुमने उठाया फोन, डाक्टर साहब! बड़ी जोर की छींक लग रही है; डाक्टर तो कुछ न कुछ दवाई बता देगा पर आप बताओ क्या तुमने उसकी इस सहजता का दुरूपयोग नहीं किया?
श्रीरूपगोस्वामी जी कह रहे हैं-
श्रद्धया हेलयावा भृगुवर नरमात्रम् तारयेत् कृष्णनाम॥ (पद्यावली प्रथम श्लोक)
आचरण को स्वरूप तो यही है कि हम लोग बड़ी सावधानी से सेवा का अभ्यास करें। नहीं तो कहाँ बात बनेगी?
भज धातु सेवायाम्॥
हो सकता है जप करना न हो भजन। अगर उस जप के पीछे हमारे भीतर सेवा की भावना है तो ही वो भजन का स्वरूप है। इसलिए मैं निवेदन करूँ
ठाकुरजी की सेवा में संलग्न रहना ही भजन का विशुद्ध स्वरूप है।
भजन भी भगवत् सेवा का ही स्वरूप है। रामजी सबरी के द्वार पहुंचते हैं। बैर ले आती हैं हे रघुनाथ! मैंने कोई व्रत नहीं किया, कोई तप नहीं किया, कोई यज्ञ, अनुष्ठान, तीर्थाटन नहीं किया। ये सब मेरे गुरु ने किया। मैनें तो केवल आपका नाम ले लेकर बेर तोड़े हैं। ये बेर ही मेरा तप, योग, मनका है। यही मेरी पूरी त्रिकाल संध्या है, यही मेरे द्रविण प्रणायाम् हैं और मैने इन सबको स्वयं चखे हैं सबके परिमाण का अनुभव स्वयं किया है। अब मैं आपके मुख में समर्पित कर रही हूँ। ठाकुरजी स्वीकार कर लेते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
There is one thing, ‘Japa’. It is quite possible that your ‘Japa’ is not Bhajan when it is being done as a mere show-off!
‘Bhaav kubhaav anakh aalashu|’
This is the power of the Divine name and not a result of your action!
If a doctor is a very decent person and gives you his personal number so that you can call in an emergency. At night, say you sneezed very loudly and woke up with your head reeling. Without thinking twice, you just pick up the phone and call the Doctor and say, ‘Doctor Sahib! I am sneezing very badly, what do I do?’ Out of his courtesy, he will prescribe a medicine but just think that have you not misused the facility given to you?
‘Srila Roop Goswamiji’ says;
‘Shraddhaya helayava Bhriguvar naramaatram taarayett Krishna Naam||’ (Paddyawali – First Shloka)
What we need to understand that the facility provided to us should be used very carefully and judiciously! Otherwise, how can you expect to accomplish anything?
‘Bhaja Dhatu sewaayam||’
It may be that your ‘Japa’ is not Bhajan but if there is an underlying feeling of Sewa then it is the Swaroop of Bhajan! That is why, I submit;
To be engaged in ‘Shree Thakurji’s Sewa’ coherently is the ‘Vishuddha Swaroop of Bhajan’!
Bhajan is the purest form of ‘Bhagwat Sewa’! Lord Rama comes to Mata ‘Shabari’s’ doorstep. She quickly gets the berries which she had kept and says, ‘Hey Raghunath! I have not done any fasts nor have I done any ‘Tapasya’, nor Yagya, neither any ‘Anushthana’ and nor have I gone for any pilgrimage! But my Guru has done all these! I have just plucked the berries taking your Divine name! These berries are my ‘Tapa’, Yoga and the beads of my rosary! This alone is my ‘Trikaal-Sandhya’ and ‘Dravin Pranayama’! I have tasted each and every one of them, therefore I have experienced their taste personally! Now, I am offering them to you, kindly accept them my Lord!’ On hearing her honest submission, the Lord very gladly accepts them!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||