श्री राधारमणो विजयते
जब जिज्ञासा आ जाएगी, जब पिपासा आ जाएगी तब हमारे भीतर पात्रता बनेगी श्रीठाकुर जी को प्राप्त करने की।
पेट खाली होता है तभी भूख लगती है। यह सामान्य सी बात है। ऐसे ही जब दुनिया के अपवादों से तुम्हारा ह्रदय खाली हो जाएगा तब श्रीकृष्ण को पाने की जो लालसा का उदय होगा वही जिज्ञासा है।
बिना उदर खाली भूख नहीं लगती। पेट खराब हो गया हो तो बीमार पड़ जाओगे। चाहे बहुत सुंदर पकवान तुम्हारे सामने रखे हुए हों पर अभी भी अगर पेट भरा है तो चख तो सकते हो पर उसका आस्वादन नहीं कर सकते। ऐसे ही
जब तक मन खाली नहीं होगा, तुम कथा में आकर के अध्यात्म के पकवानों को चख तो सकते हो पर जब तक मन खाली नहीं हुआ तब तक उसे जीवन में उतर नहीं सकते।
उसको जीवन में उतारने के लिए मन को पवित्र करना पड़ेगा। मन को स्वस्थ करना पड़ेगा।
यह संकल्प जिज्ञासा की शुरुआत करता है। मन खाली हो। खाली हम आप नहीं कर सकते हैं। यह हम आपके बस की बात नहीं है। कोई नहीं कर पाया आज तक के इतिहास में। आप संकल्प कर सकते हो। और जब संकल्प कर लेते हो तब भागवत की शुरुआत होती है-
तेजो वारि मृदां यथा विनिमयो…. सत्यम् परम् धीमहि॥
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When ‘Jigyasa’ or curiosity arises, it gives you ‘Pipasa’ or thirst which will bless you with ‘Paatrata’ or eligibility to attain Shree Thakurji or God!
When the stomach is empty, one feels hungry! This is a very simple thing. In the same way, when your heart is free of all the exceptions or abuses of the world then the desire or inclination to attain Shree Krishna will arise within. This is what is called ‘Jigyasa’!
Without an empty stomach, there is no hunger! If you have a bad stomach then you will fall sick! If there are very tasty or delicious dishes placed in front of you and if you are full then you can taste it but not be able to enjoy or eat it. In the same way;
Till such time if your mind is not empty, you may come to the Katha and taste the different spiritual sweets offered, but until you are not empty from within, nothing will percolate into your life!
In order to let it percolate, one needs to purify the mind first! The mind needs to be healthy!
This firm resolve itself will become the beginning of ‘Jigyasa’. A mind free from everything! It is not very easy for you and me! It is not in our hands! Till date, no one has been able to do it in the past history. When you resolve then Bhagwat begins and-
‘Tejo vaari mriddam yatha vinimayo…… Satyam Param Dheemahi’||
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदा जिज्ञासा आगमिष्यति, यदा तृष्णा आगमिष्यति, तदा श्री ठाकुरजीप्राप्त्यर्थं अस्माकं अन्तः योग्यता निर्मितं भविष्यति।
उदरशून्ये एव क्षुधा भवति । एतत् सामान्यं वस्तु अस्ति। तथा च यदा भवतः हृदयं जगतः अपवादैः शून्यं भवति तदा श्रीकृष्णप्राप्त्यर्थं या इच्छा उत्पद्येत सा कौतुकम्।
शून्योदरं विना क्षुधा न भवति । यदि भवतः उदरं व्यथितं भवति तर्हि भवतः व्याधिः भविष्यति। पुरतः अतीव सुन्दरं व्यञ्जनं स्थापितं चेदपि यदि भवतः उदरं पूर्णं भवति तर्हि भवतः स्वादनं कर्तुं शक्यते परन्तु तस्य स्वादनं कर्तुं न शक्यते । एवमेव
यावत् मनः शून्यं न भवति तावत् भवन्तः कथायाः समीपम् आगत्य आध्यात्मिकतायाः व्यञ्जनानां स्वादनं कर्तुं शक्नुवन्ति, परन्तु यावत् मनः शून्यं न भवति तावत् भवन्तः जीवने तत् आत्मसातुं न शक्नुवन्ति।
जीवने तस्य कार्यान्वयनार्थं मनः शुद्धं कर्तव्यं भविष्यति। मनः स्वस्थं भवितुम् अर्हति।
एषः संकल्पः जिज्ञासाम् आरभते । मनः शून्यं भवेत्। शून्यं वयं भवन्तं न शक्नुमः। एतत् भवतः वशं नास्ति। इतिहासे अद्यपर्यन्तं कोऽपि एतत् कर्तुं न शक्तवान् । भवन्तः समाधानं कर्तुं शक्नुवन्ति। यदा च भवन्तः संकल्पं कुर्वन्ति तदा भागवतः आरभ्यते-
तेजो वारि मृदाम् यथा विनिमयो…. सत्यं परम् धीमहि।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥