हमारी भक्ति को भगवान का वरण ही करना है। मैं ये नहीं कह रहा कि किसी में भक्ति नहीं है क्योंकि भक्ति करने के जितने आचरण, जो स्वभाव, जो आर्द्रता होनी चाहिए वो सब प्रत्येक मानव में है बस उस आर्द्रता का लक्ष्य ईश्वर नहीं है। हमारे भीतर विश्वास है ये नहीं कहा जा सकता कि विश्वास नहीं है पर वास्तविक चीज़ ये है कि जगत पर विश्वास है जगत बनाने वाले पर विश्वास नहीं है
गाड़ी में बैठकर व्यक्ति सफर कर रहा है ट्रैफिक है गाड़ी चली जा रही है पर पीछे व्यक्ति संतोष में बैठा है कोई बात नहीं पुराना ड्राइवर है अच्छे से ले ही जाएगा। दो सौ तीन सौ यात्री हवाई जहाज में बैठे हैं तीस पैतीस हजार फुट की ऊँचाई पर हवाई जहाज उड़े जा रहा है पता नहीं जो उड़ा रहा है उसकी खबर भी नहीं है फिर भी विश्वास से बैठे हैं
मैं यही निवेदन करूँगा हवाई जहाज के सार्थी पर विश्वास न करना जीवन के सार्थी पर विश्वास करना। मेकैनिक पर तो हम विश्वास करते हैं क्रिएटर पर विश्वास नहीं करते।
विश्वास की भावना व्यक्ति के भीतर उपस्थित है। भक्ति करने के लिए जो चीज चाहिए वो सब मनुष्य के स्वभाव में पूर्व से ही उपस्थित है बस बात इतनी सी है उस वस्तु का सदुपयोग ठीक से नहीं है। वो भाव हम सबके भीतर पूर्व से उपस्थित है विश्वास करना हम जानते हैं बस इतनी सी बात है जगत पर विश्वास करते हैं पर इतना सा ही निवेदन है कि जगत के साथ साथ जितना जगत पर विश्वास है उतना जगदीश पर भी तो होना चाहिए।
बस आपके बस में जो कुछ हुआ किया उसके बाद श्रीठाकुरजी देखेंगे….
।।परमाराध्य पूज्य श्रीसद्गुरु भगवान जु।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Our Bhakti must be betrothed to the Almighty. I am not saying that people don’t have Bhakti because the basic ingredients of Bhakti like the conduct or behavior, nature, the tenderness or softness, are present in everyone, but unfortunately they are not directed towards the Divine. We all have trust or belief but the problem is that we trust the world and not the creator!
People travel in a car, which is moving at a snails pace in the traffic, seated on the backseat the passenger thinks that the driver is an old experienced hand and hence will be able to navigate the traffic easily. 200/300 people are traveling by air flying at an altitude of 30/35,000 feet without knowing the pilot who is maneuvering the aircraft but still everyone seems to be rather comfortable and not unduly worried.
Very humbly I submit that it is good to trust the pilot or the driver but please trust the one who is the driver or the pilot of the entire creation. We trust the mechanic but doubt the creator!
Trust is inbuilt in human psyche. Everyone is blessed with the basic ingredient of Bhakti but people don’t know how to use it correctly! We know how to trust as it is an inborn trait but by trusting the world more it is misplaced, trust Jagdeesh also!
Don’t have this careless attitude that I am doing whatever I can, rest Shree Thakurji will take care…….
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||