अगर आप जीवन में परमानंद की प्राप्ति करना चाहते हैं तो सबसे पहला सूत्र है आप संशय से विमुक्त हों। दूसरा सूत्र है अपने जीवन में हित का विचार करो। तीसरा सूत्र है अपने जीवन में आवेग से निर्णय मत करो और चौथा मैं अपने अनुभव के साथ कहूँ तो आपका पूरा जीवन कसक की तरह हो। कृष्ण। उसमें आकर्षण हो।
हम अपने जीवन को सदा किसी से आकर्षित होकर जीते हैं। कभी वस्तु से आकर्षित होते हैं, कभी व्यक्ति से आकर्षित होते हैं। कोई न कोई पदार्थ हमारे जीवन का attraction रहता है।
हम किसी से आकर्षित होते हैं, श्रीकृष्ण से सब आकर्षित होते हैं।
जीवन में हम आकर्षण के पात्र हैं या आकर्षण के केंद्र हैं? जब ये तीन का आप अपने जीवन में अनुभव कर लोगे- हित का, आवेग का, संशय का तो जीवन में आकर्षण का केंद्र तुम स्वयं बनोगे। तुम्हारे भीतर तुम्हें आकर्षण का अनुभव होगा, वाह्य नहीं। तुम स्वयं भीतर उस आकर्षण के केंद्र को खोज लोगे।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
If you want to experience ‘Param-Ananda’ or divine bliss in life then the prerequisite is that you have to get rid of unnecessary doubts plaguing your mind. The second sutra is that always think about the good in life or in other words, count your blessings! The third sutra is that don’t take any decision in haste or in a state of anxiety or in an agitated state of mind and the fourth, if I may add my personal experience then let there be that wee bit of ‘Kasak’ or throes in life for Krishna. Let there be a longing for Him!
We always live being influenced or attracted towards someone. It could be a thing or a person! Something or someone is the centre of our attraction!
We might be attracted to someone but everyone is attracted towards Lord Krishna.
Are we attractive enough to become the centre of attraction? When you are able to identify and control your doubts, agitation and only accept the good in life then be certain, you become the centre of attraction! You yourself will realise the pull or attraction within, not without! You will identify that centre of attraction within yourself!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (१०-०७-२०२३)
यदि भवन्तः जीवने आनन्दं प्राप्तुम् इच्छन्ति तर्हि प्रथमं सूत्रं यत् भवन्तः संशयरहिताः भवेयुः इति। द्वितीयं सूत्रं भवतः जीवने रुचिः चिन्तयन्तु। तृतीयं सूत्रं भवतः जीवने आवेगपूर्वकं निर्णयं मा कुरुत चतुर्थं यदि अहं मम अनुभवेन वदामि तर्हि भवतः सम्पूर्णं जीवनं कठिनपाशवत् भवेत्। कृष्ण । तस्मिन् आकर्षणं भवेत्।
वयं सर्वदा कस्यचित् प्रति आकृष्टाः भूत्वा जीवनं यापयामः। क्वचित् वस्तु प्रति आकृष्टाः भवेम, कदाचित् व्यक्तिं प्रति आकृष्टाः भवेम । एकः वा अन्यः पदार्थः अस्माकं जीवनस्य आकर्षणं तिष्ठति।
वयं कस्यचित् प्रति आकृष्टाः स्मः, सर्वे श्रीकृष्णस्य प्रति आकृष्टाः भवन्ति।
किं वयं जीवने आकर्षणस्य विषयाः स्मः वा आकर्षणकेन्द्रम्? यदा भवन्तः स्वजीवने एतानि त्रीणि अनुभवन्ति – रुचिः, आवेगः, संशयः, तदा भवन्तः एव जीवने आकर्षणस्य केन्द्रं भविष्यन्ति। भवन्तः अन्तः आकर्षणं अनुभविष्यन्ति, न तु बहिः। भवन्तः तत् आकर्षणकेन्द्रं स्वस्य अन्तः एव प्राप्नुवन्ति।
परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।