जप केवल मनके का सरकना नहीं है। ठाकुरजी की मानसी सेवा करना ही जप है। इसलिए वृंदावन में माला फेरना भी भोगार्पण हो सकता है।
तुम जैसे ही हरे कृष्ण बोलो, सवेरे ठीक 3:45 की सेवा प्रारंभ हो जाए। ठाकुरजी का उत्थापन होगा। गौर गोविंद लीलामृत।। प्रातः कालीन लीला का आरंभ हुआ। हरे कृष्ण बोलते ही।
जैसे ही हरे कृष्ण कहा, अगर वह नाम मात्र रह गया, मंत्र मात्र रह गया तो क्या वृंदावन, क्या राधाकुंड कोई बात नहीं बनेगी। पर अगर हरे कृष्ण कहते ही प्रातः तुमने ताली बजाकर ठाकुरजी का द्वार खोला, ठाकुरजी को जगाया। मंगल राधारमण लाल मंगलमय श्री भट्टगोपाल।। हरे कृष्ण कहते हैं यह प्रातः कालीन सेवा संपन्न हो
बहिर्मुख होकर काम नहीं चलेगा, अंतर्मुख होकर काम चलेगा। मनस् चक्रे।। भागवत के रास का प्रथम श्लोक इस बात का संकेत कर रहा है कि यह मानस चक्र है। मानसी क्रम है मानसिक चक्र का उपक्रम है।
॥परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
जपः न केवलं मणिगतिः। ठाकुरजी मानसी पूजन जप। अत एव वृन्दावने मालाकरणमपि नैवेद्यं भवितुमर्हति।
हरे कृष्णं वदता एव प्रातः ३:४५ वादने सेवा आरभ्यते। ठाकुरजी उत्थान होंगे। गौर गोविन्द लीलमृत । प्रातः लीला आरब्धा। हरे कृष्णः वदता एव।
हरे कृष्णेन उक्तमात्रं यदि तत् नाम केवलम् अवशिष्यते, यदि केवलं मन्त्रः एव तिष्ठति, तर्हि वृन्दावनम् अथवा राधाकुन्दः करणीयः इति महत्त्वं न भविष्यति। परन्तु यदि त्वं हरे कृष्ण इति उक्तमात्रेण प्रातः ताडयित्वा ठाकुरजीस्य द्वारं उद्घाटितवान् तर्हि ठाकुरजीं जागृतवान्। मंगल राधारमन लाल मंगलमय श्री भट्टगोपाल। हरे कृष्णः वदति अद्य प्रातः सेवा समाप्तम्
बहिर्मुखी भवितुं कार्यं न करिष्यति, अन्तःमुखी भवितुं कार्यं करिष्यति। मानस चक्र। भागवतस्य रासस्य प्रथमः श्लोकः मानसचक्रमिति सूचयति । मानसिकक्रमः मानसिकचक्रस्य उपक्रमः अस्ति।
॥ परमराध्य: पूज्य: श्रीसद्गुरु भगवान जू॥