हम जब भगवान शिव का दर्शन करते हैं तो बहुत सारे लोग कहते हैं की शिवलिंग है और शिवलिंग को एक दूसरे नजरिया से देखते हैं कि यह पूरा जो प्रकृति का रिप्रोडक्शन सिस्टम है उसको रीसेंबल करता है।
ऐसा नहीं है। अगर हम अपने शरीर में शिव को खोजें ना तो वो कमर से नीचे नहीं हैं, छाती से ऊपर हैं।
शिव को उत्तर की तरफ रखते हैं तो जो बैक ऑफ द नेक की पोल है वह शरीर का नॉर्थ पोल है। पैर साउथ पोल है। इसलिए जब कोई शव जाता है तो उसके सिर को भी उत्तर की तरफ रख दिया जाता है। क्योंकि प्रकृति में भी ऊपर की तरफ N है और नीचे S है।
तो जो एक मैग्नेट के साइट्स होते हैं वह दूसरे के विरोध में जाते हैं। तभी वह जीव शरीर से दूर फेंका जाता है। नहीं तो उसमें घुसा रहेगा।
यह जो अस्तित्व है जिसमें सिर का पूरा आधार है।
इसलिए शिव की पूरी गोल परिक्रमा नहीं होती। जैसे गर्दन घूमती है ऐसे ही शिव की परिक्रमा होती है। गर्दन को आप पूरा नहीं घूम सकते। जो आधार है गर्दन का, जिस पर पूरा शरीर टिका हुआ है उसका संपोषण बुद्धि से रसने वाले रसायनों के द्वारा होता है। इसलिए ज्ञान के अधिष्ठाता शिव हैं।
भागवतजी में भी स्पष्ट लिखा है- विद्या कामस्तु गिरीशम्।। जो विद्या चाहता हो उसे भगवान गिरीश की भूतभावन की शरणागति लेनी चाहिए।
इसलिए आप धर्म सुनी सुनाई बात पर मत फॉलो कीजिए। 99% सुनी सुनाई बातों पर हम अपनी सभ्यता बिठा लेते हैं। आचरण बिठा लेते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When we do the darshan of Lord Shiva in the form of the Shiva-Lingam, generally people view the Lingam from a different perspective that it symbolises the reproductive system of nature.
It is not so! If we look for Shiva within ourselves then He is not below the waist, instead He is above our chest!
Shiva is placed facing the North and the back of our neck represents the North Pole. Legs are the South Pole. That is why, when a corpse is taken on its last journey, the head is facing North because in Nature, The North is upwards whereas the South is downwards.
Like you must have noticed in the magnet that it attracts the opposite poles while it repels the same poles. That is why the Jeeva is flung far away from the body or else it will not want to leave the body!
In this Astitva, the entire support lies on the head!
That is why, we don’t circumambulate or do the full round Parikrama of the Shiva-Lingam. The way our neck turns, the Shiva-Parikrama is done in the same way! You cannot turn your neck 360 degrees. The support of the neck on which the entire body rests, is nourished by the ‘Rasayana’ dripping from our Buddhi! That is why, Lord Shiva is the primordial Lord of knowledge!
Shrimad Bhagwat states very clearly, ‘Vidya kamastu Girisham’|| The one who seeks knowledge should surrender unto or seek the refuge of Girish, Bhagwan ‘Bhootbhaavan’!
So, please don’t follow Dharma on mere heresy! 99% we try to establish our ideas or behaviour on just whatever we have heard!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदा वयं शिवं पश्यामः तदा बहवः जनाः शिवलिंगम् अस्ति इति वदन्ति, शिवलिंगं च भिन्नदृष्ट्या पश्यन्ति यत् प्रकृतेः समग्रप्रजननव्यवस्थायाः सदृशम् अस्ति।
न एवम् । यदि वयं शरीरे शिवं अन्वेषयामः तर्हि सः कटिस्य अधः नास्ति, अपितु वक्षःस्थलस्य उपरि अस्ति।
यदि शिवः उत्तरं प्रति स्थाप्यते तर्हि कण्ठपृष्ठस्य ध्रुवः शरीरस्य उत्तरध्रुवः भवति। पादः दक्षिणध्रुवः अस्ति । अतः मृतस्य दफनसमये तस्य शिरः अपि उत्तरदिशि स्थाप्यते । यतः प्रकृतौ अपि उपरि N, अधः S भवति।
अतः एकस्य चुम्बकस्य स्थलानि अन्यस्य विरुद्धं गच्छन्ति। तदा एव स जीवः शरीरात् क्षिप्यते। अन्यथा तस्मिन् अटत् एव तिष्ठति।
एतत् अस्तित्वं यस्य पूर्णाधारः शिरः।
अत एव शिवः सम्पूर्णतया न परिभ्रमति। यथा कण्ठः परिभ्रमति तथा शिवपरिक्रमः। भवन्तः कण्ठं सम्पूर्णतया परिभ्रमितुं न शक्नुवन्ति। यस्मिन् कण्ठस्य आधारः सर्वं शरीरं अवलम्बते सः बुद्धितः स्रवन्तैः रसायनैः धारितः भवति । अतः शिवः ज्ञानस्य अध्यक्षः।
भागवतजी – विद्या कामस्तु गिरिशम् इत्यत्र अपि स्पष्टतया लिखितम् अस्ति । ज्ञानकामना गिरीशस्य आत्मानं शरणं कुर्यात्।
अतः श्रुते धर्मं मा अनुसृत्य। ९९% समये वयं अस्माकं सभ्यतां श्रुत्वा आधारितं कुर्मः। आचरणं स्थापयतु।
..परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।