श्री राधारमणो विजयते
अगर हम सच्चे आस्तिक हैं तो अच्छे आस्तिक को अपने जीवन में ऋण नहीं लेना चाहिए। महाभारत में यक्ष प्रश्न है युधिष्ठिर से यक्ष प्रश्न किए गए थे तो यक्ष ने युधिष्ठिर से एक प्रश्न किया- इस दुनिया में सबसे दुःखी कौन है? तो युधिष्ठिर ने कहा- जिसके ऊपर ऋण है।
अब अगर हम भगवान पर भरोसा करते हैं तो हमें ऋण नहीं लेना चाहिए। और आज के जमाने में ऋण के बिना कोई काम नहीं होता। ऋण तो ऐसा है ऊपर पानी भरा नीचे गड्ढा हो गया निकल गया।
जैसे कोई घर खरीदे, एक करोड़ का घर खरीदे उसके लिए ऋण ले, उससे बढ़िया घर में चालीस हजार रुपये किराया देकर रहा जा सकता है। केवल इतना ही कहने के लिए कि मेरा है?
जो बैंक आपको ऋण देता है वो भी किराए पर ही रहता है। जो बैंक आपको लोन देता है वो रैंट पर रहता है जो आपको दे सकता है वो खुद नहीं खरीद सकता। कर्मकाण्ड का ये विशेष अंग है कि ऋण के धन से पूजा की साफल्यता भी प्राप्त नहीं होती। इसलिए हम बहुत बड़ा प्रयास करें।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
If we are a true atheist then you should refrain from taking any loan. In the Mahabharata, we have the ‘Yaksha-Prashna’ wherein, the Yaksha asks Yudhishthira, who is the most unhappy person in the world? Yudhishthira replied, the one who is in debt!
If we have total faith on the Divine, in that case we should not take any loan. Unfortunately, in the present times, one cannot do without taking any loan. Debt is just like the situation where we see water at the top while there is an outlet or a hole down below.
Like, if one wants to buy a house for a crore of rupees and takes a home loan to buy it but, you can get a much better house at a forty thousand monthly rent. You just want to get the feeling of ownership?
The Bank from which you have taken the loan is working out of a rented office. The one who can afford to give you a loan, doesn’t buy for it’s own purpose. This is an important aspect of Karmakanda wherein, if the money used for the Pooja is loaned then the fulfilment is doubtful! That’s why, we should try our level best and avoid taking any loan!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदि वयं सच्चिदानन्दविश्वासिनः स्मः तर्हि सत्विश्वासी स्वजीवने ऋणं न ग्रहीतव्यः। महाभारते यक्ष प्रश्नः- यक्षप्रश्नः युधिष्ठिरं पृष्टः, ततः यक्षः युधिष्ठिरं प्रश्नं पृष्टवान् – अस्मिन् जगति कः सर्वाधिकं दुःखी अस्ति? अतः युधिष्ठिर उवाच – यस्य ऋणं वर्तते।
अधुना यदि वयं ईश्वरं विश्वसामः तर्हि ऋणं न ग्रहीतव्यम्। अद्यतनकाले च ऋणं विना कोऽपि कार्यं न क्रियते। ऋणं तथा, उपरि जलं पूरितं भवति, अधः गर्तं च निर्मितं भवति, तत् बहिः गतम् अस्ति।
यथा – कोटिमूल्यं गृहं क्रीत्वा तदर्थं ऋणं गृह्णाति चेत् चत्वारिंशत्सहस्ररूप्यकाणां भाडां दत्त्वा उत्तमगृहे निवसितुं शक्यते । केवलं मम एव इति वक्तुं?
यः बैंकः भवन्तं ऋणं ददाति सः अपि किराये एव तिष्ठति। यः बैंकः भवन्तं ऋणं ददाति सः किराये भवति, यः भवन्तं दातुं शक्नोति सः स्वयमेव तत् क्रीतुम् न शक्नोति। पूजायाः स्वच्छता अपि ऋणेन धनेन न सिध्यति इति संस्कारविशेषोऽयं । अतः वयं महत् प्रयत्नम् कुर्मः।
परमाराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।