जीवन में छोटी-छोटी क्रिया भी महत्वपूर्ण होती हैं। हम बड़ी चीज को बहुत छोटा बनाने की कोशिश करते हैं पर साधु एक बहुत छोटी सी चीज के भीतर भी छिपा एक बहुत लंबा संदेश जान लेता है।
स्वामी विवेकानंद जब मां शारदा को प्रणाम करके विदेश की यात्रा पर निकल रहे थे। जब स्वामी विवेकानंद माँशारदा को प्रणाम करने गए तो उन्होंने आशीर्वाद देने के बजाय कहा- बेटा! भीतर से चाकू ले आना। स्वामी जी रसोई में गए और चाकू लेकर आए और मां शारदा को देने लगे।
जब चाकू माँ को देने लगे तो चाकू में जो लकड़ी का कब्जा होता है उसको उन्होंने मां की तरफ किया और जो लोहे का पैना भाग होता है उसे अपनी तरफ करके चाकू पकड़ाने लगे।
माँ खुश हो गई। हंस पड़ी और आशीर्वाद दिया। स्वामी जी ने कहा- माँ तूने चाकू मंगाया और हंसने लगी? मैं समझा नहीं; तू इतना आशीर्वाद क्यों दे रही है? तो मां बोली-
जो दुविधा अपनी ओर और सुविधा दूसरों की ओर रख दे वही भारतीय संस्कृति का विस्तार कर सकता है।
जीवन में छोटी क्रिया भी महत्वपूर्ण हो जाए।
श्रीकृष्ण खेल-खेल में छोटी-छोटी क्रियाएं करते हैं पर उस छोटी सी क्रिया में भी बड़े-बड़े साधक अपने जीवन का आधार मान लेते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।