||Shree Radharamanno Vijayatey||
Yuga represents time, i.e., what time is it now! People say very off-handily, ‘Maharajji! Kali-Yuga is going on now’! Do you understand the meaning of Kali-Yuga? People say that because of so many problems we see all around, therefore it is Kali-Yuga!
Kali-Yuga means; yesterday and tomorrow!
‘Gataasoonaagataasoonscha nanu shocanti panditaha:||’
Kali-yuga means ‘Kal’ or tomorrow! The ones who always reside in ‘Kal-Kal’ are not in the present and those who do not live in tomorrow or ‘Kal’ enjoy the present!
People are generally stuck into a rut of either the past or the future. Please do something to get out of this rut! In this fierce raging fire of ‘Kali’, all the means have been destroyed. In this Kali-Yuga there is one way which can liberate us or takes us across this sea like a lifeboat and i.e.,
‘Aehi kali kaal na saadhan dooja|Joga jagya japa tapa vrata pooja||
Raamahi sumireeya gaaiye Raamahi|Santata sunahi Rama guna graamahi||’
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
युग का मतलब इस समय क्या समय चल रहा है। लोग बड़ी आसानी से कह देते हैं महाराज जी! कलियुग चल रहा है। कलियुग का मतलब भी पता है क्या है? लोग कहते हैं बड़े झंझट हो रहे हैं इसलिए कलियुग है।
कलियुग का मतलब होता है- yesterday and tomorrow.
गतासूनऽगतसून् श्च नानु सोचन्ति पंडितः॥
कलियुग का मतलब कल। अभी भी जो कल कल में है वो आज में नहीं होगा और जो कल कल में नहीं है आज वो वर्तमान का सुख ले रहा होगा।
व्यक्ति बीते हुए समय के और आने वाले समय के चक्र में हमेशा फंसा रहता है। उससे निकलने के लिए कुछ करिए। कलि की दावानल में सारे साधन नष्ट हो गए। इस कलियुग में एक ही ऐसा साधन है जो नौका की तरह उद्धार कर सकता है-
एहि कलिकाल न साधन दूजा। जोग जग्य जप तप व्रत पूजा।।
रामहि सुमरिये गाइये रामहि। संतत सुनिये राम गुण गावहि।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
युगस्य अर्थः यत् क्षणेन किं कालः प्रचलति। बहुषु मनुष्येषु सहजतया कथयन्ति महाराज जी! कलियुगं प्रचलति। कलियुगस्य अर्थं जानासि वा ? जनाः वदन्ति यत् बृहत् क्लेशाः भवन्ति अतः एव कलियुगम् अस्ति।
कलियुगस्य अर्थः ह्य ,श्वः च ।
गतसूनऽगतासूनश्च नानु शोचन्ति पण्डित:॥
कलियुग इत्यर्थः श्वः । इदानीमपि श्वः यत् अस्ति तत् अद्य न भविष्यति, यत् श्वः नास्ति तत् अद्य वर्तमानस्य सुखं भोक्तुं शक्नोति।
भूतभवितचक्रे सदा फसति मनुष्यः । तस्मात् बहिः गन्तुं किमपि कुरुत। कलिअग्नौ सर्वाणि साधनानि नष्टानि अभवन् । अस्मिन् कलियुगे एकः एव साधनः अस्ति यः नाववत् मोक्षं दातुं शक्नोति-
अस्मिन् समये अन्यः उपायः नास्ति। जोग जग्य जप तप व्रत पूजा।
रामहिं सुमरिये गाइये रामहि । सन्तत सुनु राम गुण गावहि।
..परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।