श्री राधारमणो विजयते
भजन करने की तुम्हारे भीतर रुचि थी पर वह रुचि कौन सी थी? किस बात के लिए उस रुचि की पैदाइश हुई थी? जो इंटरेस्ट था वह भी क्यों पैदा हुआ था? इस बात का विचार करना जरूरी है।
जिस क्षण अपनी रुचि के स्रोत को आप ढूंढ लोगे, उस दिन अध्यात्म का आचरण आपके लिए बहुत सरल हो जाएगा। मेरे भीतर यह इंटरेस्ट क्यों है?
रुचि पहले कदम की भी चीज है और रुचि अंतिम कदम की भी चीज है। शुरू से लेकर आखिरी तक अगर कुछ रहनी चाहिए तो केवल रुचि रहनी चाहिए।
महाप्रभुजी ने कहा- नामे रुचि।। केवल रुचि ही रहे।
पर पहले से लेकर आखिरी तक तुम किस-किस तर्ज के ऊपर अपने रुचि को बढ़ाते हो यह हर बार किए गए भजन के रियाज में विचार कर लेना जरूरी है।
जब जब तुम माला लेकर बैठे तो तुम्हारे भीतर रुचि का कारण क्या था? आज रूचि थी क्योंकि मन कर रहा था ठाकुरजी की तरफ खिंचाव हो रहा था। फिर कल तुम माला क्यों लेकर बैठे? क्या लोगों ने जो कहा था उसके लिए? लोगों ने जो कहा था उस विचार को बनाए रखने के लिए उस रुचि से माला लेकर बैठे?
प्रतिष्ठा के लिए अगर रुचि बनी हुई है तो नाम तो होगा, ऊपर से पानी तो गिरता है और ऊपर से ही बहकर पानी निकल जाता है।
हर रोज माला कर रहे हो क्योंकि अभी भी मुझे सबको बताना है, सबको देना है, सबको दिखाना है? या अभी भी मुझे सिर्फ महाप्रभुजी की कृपा को ही पाना है इसलिए रुचि है।
मैं दाता नहीं हूंँ, मैं भिखारी ही हूंँ इसलिए मुझे चाहिए। तो फिर अध्यात्म आपको आगे तक ले जाएगा।
मैं इसलिए कर रहा हूँ कि एक दिन महाप्रभुजी की कृपा मेरे ऊपर परिवर्षित हो जाए। मैं इसलिए कर रहा हूँ कि यह नाम मांसल रसना से भी निवृत होकर मन तक पहुंच जाए।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
You had the inclination for Bhajan but what is the nature of this inclination? What was the reason behind this interest cropping up within you? Why did this interest arise? We need to think over it.
The moment you will discover the point of this interest, then following a spiritual way of life will become very easy for you. How did I get this inclination?
This inclination is also the starting point as well as it is the point of culmination. From the beginning till the end this inclination should be throbbing and nothing else!
Mahaprabhuji says – ‘Nammey Ruchi’|| Just this interest should always be alive!
From the beginning till the end on which note your Bhajan attains an ascension, this point needs to be studied very carefully.
Whenever you sat with the Mala, what was going on in your mind? Today, your mind was pulled by a Divine attraction towards Shree Thakurji. Then, why did you repeat the same thing tomorrow? Was it to showoff to the people who commented yesterday? In order to stick to the opinion expressed by the people, you again took the Mala in your hand?
If the objective is to gain importance or respect then the water does flow but it just trickles down!
You are sitting with the Mala everyday because you still want to impress the people, you want to showoff and make them aware of your religious bent of mind! Or, the sole objective is to attain Mahaprabhuji’s grace, that is the driving force!
I’m not the giver, in fact I am the beggar so I am asking! If it be so then spirituality will lead you far and higher in life.
I’m doing it so that one day I am showered with Mahaprabhuji’s grace! I am doing this so that the Divine Name penetrates this body of flesh and blood and reaches the very core of the mind!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
भवतः भजनगानस्य रुचिः आसीत्, परन्तु सा रुचिः का आसीत् ? किं तत् रुचिं प्रेरितवती ? किमर्थं व्याजः अपि उत्पन्नः ? एतस्य विषये चिन्तनं महत्त्वपूर्णम् अस्ति।
यस्मिन् क्षणे भवन्तः स्वस्य रुचिस्य स्रोतः प्राप्नुवन्ति तस्मिन् क्षणे आध्यात्मिकतायाः अभ्यासः भवतः कृते अतीव सुलभः भविष्यति । मम किमर्थम् एतत् रुचिः अस्ति ?
व्याजं प्रथमपदस्य विषयः व्याजः अपि अन्तिमपदस्य विषयः अस्ति। यदि आदौ अन्त्यपर्यन्तं किमपि भवेत् तर्हि व्याजमात्रं भवेत्।
महाप्रभुजी ने कहा- नाम रुचि। केवलं रुचिः भवतु।
परन्तु प्रथमतः अन्तिमपर्यन्तं केषु पङ्क्तौ भवन्तः प्रत्येकं भजनं कुर्वन्तः रुचिं वर्धयन्ति इति चिन्तयितुं महत्त्वपूर्णम्।
यदा यदा त्वं माला सह उपविष्टवान् तदा तदा भवतः रुचिः किं कारणम् आसीत् ? अद्य मम रुचिः आसीत् यतोहि अहं ठाकुरजीं प्रति आकृष्टः इति अनुभवन् आसीत्। अथ श्वः माला सह किमर्थं उपविष्टः ? किं जनाः यत् उक्तवन्तः तदर्थम् ? जनाः किं उक्तवन्तः इति विचारं निर्वाहयितुम् रुचिं कृत्वा माला सह उपविष्टः?
यदि प्रतिष्ठायां रुचिः भवति तर्हि नाम भविष्यति, उपरितः जलं पतति, उपरितः जलं बहिः प्रवहति।
किं त्वं प्रतिदिनं मालाप्रार्थनं करोषि यतोहि मया अद्यापि सर्वेभ्यः वक्तव्यं, सर्वेभ्यः दातव्यं, सर्वेभ्यः दर्शयितव्यम्? अथवा अद्यापि अहं केवलं महाप्रभुजी इत्यस्य आशीर्वादं प्राप्तुम् इच्छामि, अतः मम रुचिः अस्ति।
अहं न दाता, अहं याचकः अतः अहं आवश्यकतायां अस्मि। तदा आध्यात्मिकता भवन्तं अधिकं नेष्यति।
अहं एतत् करोमि यत् एकस्मिन् दिने महाप्रभुजी इत्यस्य आशीर्वादः मम कृते प्रसारितः भवेत्। मांसकामविमोचनेऽपि एतत् नाम मनसि प्राप्नुयात् इति अहं करोमि।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥