श्री राधारमणो विजयते
ठाकुरजी ने चीरहरण लीला करी। छोटे से गोपाल ने गोपियों के वस्त्र ले लिए। ये वस्त्र एक प्रकार से देहात्यास ही है। देहत्यास ही कपड़े हैं। ये शरीर कपड़ा ही है। गुरु क्या करता है? लौकिक देह ले लेता है और आध्यात्मिक देह प्रदान करता है। वही देह की पात्रता है।
कहीं कोई दीक्षा के लिए जाए पहले तो वस्त्र त्याग होता था फिर मुण्डन होता था पंचकेश की निवृत्ति होती थी। सद्गुरु सांसारिक रूप ले लेता है और फिर आध्यात्मिक स्वरूप प्रदान करता है।
गोपी के तो गुरु भी गोविन्द ही हैं। इसलिए चीर ले लिए। ये जो देहत्यास है इसे ले लिया और फिर उसे आध्यात्मिक स्वरूप प्रदान कर दिया। यही उसका वास्तविक स्वरूप है।
क्या बात हो गयी लोग कहते हैं श्रीठाकुरजी कपड़े चुराए। जब चुराए तब उनकी उम्र छः सात साल की थी पर जब द्रौपदी को दिए तब सोलह वर्ष की थी। आपको दोनों चीज ध्यान रखनी चाहिए।
छः वर्ष का बालक खेल-खेल में किसी के वस्त्र उठा ले तो कौन सी बड़ी बात हो गयी? पर श्रीकृष्ण से ये भी प्रेरणा लेनी चाहिए आज वासना से भरा हुआ षोडश वर्षीय युवक क्या किसी स्त्री के शील की रक्षा के लिए वस्त्र देने को तैयार है? ये भगवान का संदेश है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Shree Thakurji performed the ‘Cheera Haran Leela’. The little Gopal hid the clothes of the Gopis. The clothes are akin to ‘Dehatyasa’. Our body is a garment of the soul. What does the Guru do? He takes away the physical body and gives us a spiritual body. This is the eligibility or the ‘Paatrata’ of the physical body.
When one goes for the ‘Deeksha’ or initiation then, first of all the clothes need to be taken off, followed by the ‘Mundan’ or shaving of the head, in a way the removal of the ‘Panchkosha’. Sadguru takes away the worldly form and grants the spiritual form.
Shree Govind is the Guru of the Gopis. That is why, He took away the outer garment or clothes. He took away the outer form and granted the spiritual swaroop. This is the original form or swaroop.
People ask that what was the reason Shree Thakurji stole the clothes? When He performed this Leela, He was only 6/7 years old and when He gave Draupadi the clothes then He was 16 years old. One needs to make a note of this fact!
If in his playfulness, a 6 years old child just picks up the clothes then is it a big deal? But, we also need to learn this from Shree Krishna that a 16 year old youth should be willing to give clothes or protect the dignity of a lady! This is the Lord’s message!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
ठाकुरजी विवस्त्रं कर्म अकरोत् । लघु गोपालः गोपीनां वस्त्रं गृहीतवान्। एतानि वस्त्राणि एकप्रकारेण ग्राम्यक्षेत्रस्य कृते मुखं न्यस्यन्ति । देहत्याः वस्त्रमात्रम् । इदं शरीरं केवलं पटम् अस्ति। गुरुः किं करोति ? लौकिकं शरीरं गृहीत्वा आध्यात्मिकं शरीरं ददाति। स एव देहस्य अधिकारः।
यदि कश्चित् दीक्षायै गच्छति तर्हि प्रथमं सः वस्त्रं उद्धृत्य ततः तं टोन्सुरं कृत्वा पञ्चकेशशिरः निवृत्तः भवति स्म। सद्गुरुः लौकिकं रूपं गृह्णाति ततः आध्यात्मिकं रूपं ददाति।
गोपिस्य गुरुः अपि गोविन्दः अस्ति। अत एव ते तत् विदारयन्ति स्म। एतां देहत्यां गृहीत्वा ततः आध्यात्मिकं रूपं दत्तवान्। एतत् तस्य वास्तविकं रूपम्।
किमाभवत्? श्री ठाकुरजी वस्त्रं चोरितवान् इति जनाः वदन्ति। यदा सः तत् अपहृतवान् तदा सः षड्-सप्तवर्षीयः आसीत् किन्तु यदा सः द्रौपदीय दत्तवान् तदा सः षोडशवर्षीयः आसीत् । भवता उभयम् अपि मनसि स्थापयितव्यम्।
यदि षड्वर्षीयः बालकः क्रीडन् कस्यचित् वस्त्रं उद्धृत्य किं महत् कार्यं भवति? परन्तु अस्माभिः श्रीकृष्णात् अपि प्रेरणा ग्रहीतव्या। अद्य किं कामपूर्णः षोडशवर्षीयः युवकः स्त्रियाः विनयस्य रक्षणार्थं स्ववस्त्रं त्यक्तुं सज्जः अस्ति ? एषः ईश्वरस्य सन्देशः अस्ति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ..