महात्मा प्रस्तुति से निवृत्त हो जाता है। कथा प्रस्तुति नहीं है, कथा स्तुति है। कीर्तन प्रस्तुति नहीं है, कीर्तन स्तुति है। राधारमण जी में जो भी आए प्रस्तुति करने एक भी ना आए, जो भी आए वह गोपाल की स्तुति करने आए।
वह स्तुति सारंगी से पैदा हो सकती है, सितार से पैदा हो सकती है, वह तबला से पैदा हो सकती है, बंसी से पैदा हो सकती है, श्लोकों से पैदा हो सकती है, पद पदावलियों से पैदा हो सकती है।
कई बार कुछ न करने आने वाला केवल दर्शन करने वाला व्यक्ति भी प्रस्तुति कर सकता है क्योंकि वह दिखा रहा है कि वह दर्शन कर रहा है।
तुम्हारे दर्शन करने की विधा में अगर तुमने गोपाल के अलावा किसी और को केंद्र में रख दिया तो तुम्हारा दर्शन करना भी अन्य के प्रति तुम्हारी प्रस्तुति हो जाएगी।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The Mahatma becomes free from the presentation. Katha is not a presentation, it is a ‘Stuti’. ‘Kirtan’ is not any presentation, it is a ‘Stuti’. Whosoever comes to ‘Shree Radha Ramanji’ Please don’t come for doing a presentation, kindly come with devotion for doing a ‘Stuti’.
The ‘Stuti’ can even be performed on the ‘Sarangi’ or the ‘Sitar’ or the ‘Tabla’ or a flute, even through the recitation of ‘Shlokas’ or by singing the ‘Pada-Padavali’.
At times, a person who has just come for the Darshan can do a presentation because he is trying to portray that he is doing the Darshan with full concentration.
In your Darshan, if the center of your focus is anything else other than Gopal then your Darshan too will be a presentation or in other words an exhibition for others!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||