श्री राधारमणो विजयते
ये सारा संसार किस रूप में चल रहा है एक आवेश है चारो तरफ नियन्त्रण में भय का। यहाँ तक की भक्ति में भी कहीं न कहीं भय का स्वरूप है। आज समय भी ऐसा हो गया जब व्यक्ति भगवान से ज्यादा इंसान से भयभीत होने लगा। भय ही संदेह को जन्म देता है। ऐसा क्यों होता है? भय क्यों होता है?
क्योंकि भेद बुद्धि है। श्रीमनमहाप्रभु कह रहे हैं- अचिन्त्य भेदाऽभेद। भेद और अभेद बुद्धि की आवश्यकता नहीं है भेद और अभेद अचिन्त्य तत्व है वो चिंतन से परे है। वो भेद मनुष्य पशु का है। वो भेद सबसे पहले मनुष्यीय स्तर पर है। फिर जाति स्तर पर भेद है योनीय स्तर पर भेद है लिंगीय स्तर पर भेद है आयु के स्तर पर भेद है। फिर अर्थीय स्तर पर भेद है।
भेद ही भय को जन्म देता है। जहाँ भेद नहीं होता जहाँ अभेदत्व होता है वहाँ उच्छेदत्व कभी नहीं आता।
श्रीकविराज महानुभाव कह रहे हैं- जीवेर स्वरूपे होय नित्य कृष्ण दास॥ इसलिए महाप्रभु ने कहा नाहम् वर्णी। मेरा कोई वर्ण नहीं है कोई आश्रम नहीं है। मैं पुरुष हूँ ये स्त्री है मैं ब्राह्मण हूँ ये क्षत्रिय है मैं वृद्ध हूँ ये बालक है मैं धनवान हूँ ये निर्धन है। ये भेद भय को जन्म देंगे।
आज मैं धनवान हूँ ये निर्धन है ऐसा न हो जाय कल ये धनवान हो जाय मैं निर्धन हो जाऊँ। ये भय ही भेद को जन्म देता है सुरक्षा की अपेक्षाओं को जन्म देता है और सारा जीवन कर्पूर की तरह उड़ जाता है।
कितनी बढ़िया बात है भेद नहीं है ये भी कृष्णदास है हम भी कृष्णदास हैं। शरीर बुद्धि मन के स्तर पर भेद है आत्मा के स्तर पर अभेद है।
इस स्तर पर खड़े होकर ये देश कहता है-
उदार चरितानाम् वसुधैव कुटुम्बकम् ॥
क्योंकि यहाँ आध्यात्म की अनुभूति आत्मिक विकास का चिंतन है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
What is the state of the world today? There is an upsurge all around of the fear of control or regulation. So much so that this fear is lurking in Bhakti as well! The times are such when a man is more scared of another man than fearing God! Fear gives rise to doubts. Why does this happen? Why do people feel afraid?
Because Bheda or differentiation is the Buddhi or the intellect. Shreemann Mahaprabhuji says, ‘Achhinttya bhedabheda’.Difference and non-differentiation is not a necessity of the intellect, they are both beyond human comprehension as they are ‘Achhinttya’! That difference is between man and animal. This difference is first seen at the human level. Then comes the caste differences, difference between male and female, genital difference, the difference in age. Then comes the difference between the level of wealth!
This difference gives rise to fear. Where there is no differentiation and there is equanimity then there is no possibility of any ‘Uchhedan’!
Shri Kaviraj Mahanubhava says, ‘Jeever swaroopey hoye nitya Krishna Das’|| That is why Mahaprabhuji says, ‘Naaham varni’. I have no Varna or Ashram. He is man, she is a woman, I am Brahmin and you are a Kshatreeya, I am old and he is a child, I am wealthy and you are poor! This difference gives rise to fear!
Today I am rich and he is poor, it shouldn’t happen that the tables are turned when you become poor and he becomes rich! This fear gives birth to fear, raises the need for expectation and have the entire life evaporates like camphor.
What a nice thing that there is no difference, I am Krishna Das and you too are Krishna Das. On the level of body, mind and intellect there is a difference but at the level of Atman, there is no difference at all!
Standing on this platform, this country proclaims – ‘Udaar charittannam vasudhaiva kuttumbhakam’||
Because, here there is spiritual realisation and the thinking to grow or nourish the soul!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
कथं एतत् सर्वं जगत् प्रचलति? परितः भयस्य आरोपः नियन्त्रणे अस्ति। भक्त्यापि भयरूपं क्वचित् । अद्य एतादृशः समयः आगतः यत् जनाः ईश्वरस्य अपेक्षया मनुष्येभ्यः अधिकं भयभीताः भवितुम् आरभन्ते। भयं केवलं संशयं जनयति। किमर्थमिदं भवति कस्मात् भयम् अस्ति।
यतः विवेकः बुद्धिः अस्ति। श्रीमन महाप्रभु कहते हैं – अचिन्त्य भेदभेद। भेदं भेदं च कर्तुं बुद्धेः आवश्यकता नास्ति, भेदः अविवेकः च अचिन्त्यतत्त्वानि, ते चिन्तनात् परे सन्ति। सः भेदः मनुष्यपशुयोः। सः भेदः सर्वप्रथमं मानवस्तरस्य एव अस्ति। अथ जातिस्तरस्य भेदः, लिङ्गस्तरस्य भेदः, लिङ्गस्तरस्य भेदः, वयःस्तरस्य च भेदः भवति। ततः आर्थिकस्तरस्य भेदः भवति।
भेद एव भयं जनयति। यत्र न भेदः, यत्र अभेद्यता, तत्र वियोगः नास्ति।
श्री कविराज महापुरुष कह रहे हैं – जीव स्वरूप होय नित्य कृष्ण दास। अत एव महाप्रभुः नहं वर्णी उक्तवान्। मम जातिः नास्ति, मम आश्रमः नास्ति। अहं पुरुषः, सा स्त्री, अहं ब्राह्मणः, सा क्षत्रियः, अहं वृद्धः, सा बालः, अहं धनिकः, सा दरिद्रः। एते भेदाः भयं जनयिष्यन्ति।
अद्य अहं धनिकः सः दरिद्रः, न स्यात् श्वः सः धनिकः भवति अहं च दरिद्रः भवेयम्। एतत् भयं विवेकं जनयति, सुरक्षायाः अपेक्षां जनयति तथा च समग्रं जीवनं कर्पूरवत् वाष्पितं भवति।
किं आश्चर्यं, न भेदः, सः अपि कृष्णदासः, वयम् अपि कृष्णदासाः। शरीरबुद्धिमानसस्तरस्य भेदः आत्मास्तरस्य च भेदः।
अस्मिन् स्तरे स्थित्वा अयं देशः वदति-
उदार चरितानं वसुधैव कुटुम्बकं।
यतः अत्र अध्यात्मस्य अनुभवः आध्यात्मिकविकासस्य चिन्तनम् एव।
.. परमाराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ..