आपकी प्रार्थना इमानदारी है। मैं आपसे सत्य कहूँ अभी तक आपने प्रेयर का एक्सपीरियंस ही नहीं किया। बहुत ऊपरी है।
अगर वह बहुत सच हो तो उसमें इतनी ऊर्जा है कि वह क्या-क्या नहीं कर सकती। बहुत शक्ति है प्रार्थना में। बहुत बड़े-बड़े डॉक्टर भी अंत में यही कहते हैं कि भैया प्रार्थना करो। अब दवा खत्म हो चुकी है, अब दुआ ही काम कर सकती है।
लेकिन वो बहुत रियलिस्टिक हो। सिचुएशनल होगी तो काम बिगड़ जाएगा। इमानदारी से भरी हो। हजारों बार मैंने अपने जीवन में, अपनों के जीवन में और आपने भी अपने जीवन में इस बात के महत्व को अनुभव किया होगा।
स्वार्थी होकर प्रार्थना नहीं करनी चाहिए। प्रार्थना स्वार्थी ना हो, प्रार्थना सहज हो, प्रार्थना समर्थवान हो, प्रार्थना सुशील हो। यह इसके गुण है। और बात कहूँ प्रार्थना अपनी हो, दूसरे की नहीं हो। आपकी अपने नितांत अनुभव से युक्त हो। फिर वह जैसी भी हो वैसी बढ़िया है। भीतरी हो।
किसी से कहो, प्रार्थना करो तो हाथ जोड़ कर बैठ गया। महाराज! हम रोज प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना रूटीन नहीं हो सकता। रूटीन कैसे होगा? कई बार कोई चीज रूटीन हो जाती है तो उसका महत्व समाप्त हो जाता है।
प्रार्थना कभी रूटीन नहीं हो सकता। वह तो ह्रदय से उत्पन्न हुई सहज अनुभूति है। प्रकट हो तो देखो कितनी खालिश होती है।
और मैं एक प्रार्थना करूँ; अपनी प्रार्थना को कभी ट्रायल मत करिएगा। आपकी प्रार्थना में उतनी ताकत होती है जितनी आपकी प्रार्थना में विश्वास होता है। ‘यह भी मैं कर लूँ शायद बात बन जाए’ इस बात से बात नहीं बनती। बहुत कैजुअल मत बनाना। प्रार्थना में बहुत सामर्थ होती है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
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श्री पुण्डरीक जी सूत्र (१४-०६-२०२३)
भवतः प्रार्थना निश्छलः अस्ति। सत्यं वदामि, भवतः प्रार्थनायाः अनुभवः अद्यापि न प्राप्तः। अतीव उच्चम्।
यदि अतीव सत्यं तर्हि तस्य एतावता ऊर्जा अस्ति यत् तस्य किमपि कर्तुं न शक्नोति। प्रार्थनायां बहु शक्तिः भवति। अतीव बृहत् वैद्याः अपि अन्ते वदन्ति यत् भ्राता प्रार्थयन्तु। इदानीं औषधं समाप्तम्, अधुना केवलं प्रार्थना एव कार्यं कर्तुं शक्नोति।
परन्तु अतीव यथार्थवादी भवतु। यदि परिस्थितिगतं तर्हि कार्यं दूषितं भविष्यति। प्रामाणिकतापूर्णा भवतु। मम जीवने, मम प्रियजनानाम् जीवने, भवतः अपि जीवने अपि अस्य वस्तुनः महत्त्वं सहस्रवारं मया अनुभवितं स्यात् ।
स्वार्थेन न प्रार्थयेत् । प्रार्थना स्वार्थी न भवेत्, प्रार्थना सुलभा भवेत्, प्रार्थना शक्तिशालिनी भवेत्, प्रार्थना सौम्या भवेत्। एषः तस्य गुणः । एकं अपि वदामि यत् प्रार्थना भवतः एव भवेत्, न तु अन्यस्य। भवन्तः स्वस्य अत्यन्तं अनुभवेन पूर्णाः भवेयुः। तदा सा यथा वर्तते तथा महान् अस्ति। अन्तः भव
कस्मैचित् प्रार्थयतु इति वदतु, ततः सः हस्ताञ्जलिः उपविष्टवान्। राजा! वयं प्रतिदिनं प्रार्थयामः। प्रार्थना नित्यं न भवितुम् अर्हति। दिनचर्या कथं भविष्यति ? कदाचित् यदि किमपि नित्यं भवति तर्हि तस्य महत्त्वं समाप्तं भवति।
प्रार्थना कदापि नित्यं न भवितुम् अर्हति। हृदयात् जातः स्वतःस्फूर्तः भावः । यदि दृश्यते तर्हि पश्यन्तु कियत् शून्यम् अस्ति।
अहं च प्रार्थनां करोमि; कदापि भवतः प्रार्थनायाः परीक्षणं न कुर्वन्तु। भवतः प्रार्थनायाः तावत् एव शक्तिः अस्ति यथा भवतः प्रार्थनायां विश्वासः। ‘अहम् अपि करिष्यामि, कदाचित् विषयः भविष्यति’ इति एतत् वस्तु न कार्यं करोति। अति आकस्मिकं मा कुरुत। प्रार्थनायां महती शक्तिः अस्ति।
-परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।
II Shri Radharamanno Vijayatey II
Honesty is your prayer. To tell you the truth, up till now, you have not experienced prayer or in other words, you have not prayed in its truest sense. It was just done outwardly.
If your prayer is real, then it has so much energy that nothing is impossible! The prayer is very powerful. Even the well known doctors say that now only your prayers can work. We have exhausted all that we could do, now only the ‘Dua’ can do miracles!
The condition is that it has to be very realistic. If it is just situational then you won’t get the desired result. It should be honest and a very sincere prayer. So many times in my life, in the life of my own family and I am sure you might have also experienced the importance of prayer in your own life.
Please don’t pray with any selfish motive. Prayer should be unselfish, it should come naturally from your heart, it should be virtuous as it is all powerful or all capable. These are its qualities. I would like to add that the prayer has to be personal, it should not be borrowed or stolen. It should be filled with your inner feelings and experiences. If it is so then be sure that whatever it is, it is the best! It should be the calling of your heart!
There cannot be a set routine for prayer. It is something which is the outpouring of your heart. If it is spontaneous and natural, you can very well imagine its purity.
I would like to submit with utmost humility that please don’t test or try out your prayer. As much faith you have, your prayer will be as powerful. ‘Let me also try this, maybe it works’, this attitude does not work. Don’t be casual about it, please! PRAYER IS ALL POWERFUL!
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shri Pundrik Goswamiji Maharaj ||