जब कभी-कभी भजन में मन नहीं लगता तो उदास नहीं होना चाहिए।
कॉविड-19 के समय मैंने साइकिल चलाई तो मैंने एक चीज अनुभव किया कि कोई-कोई ऐसी जगह आती थी जहाँ पैडल नहीं मारना पड़ता था। ढलान के कारण अपने आप चलती थी। और कोई-कोई ऐसी जगह थी जहाँ जितना पैडल मारो उतना आगे बढ़ती थी।
वो चलाते हुए अनुभव हुआ की साधना और मन भी ऐसे ही चलता है।
कई बार बिना प्रयास के भी मन भगवान में लगा रहता है। तीर्थ में रहने का मतलब है कि अभी आपकी साइकिल इस समय ढलान पर है। आप कोशिश ना भी करो तो अभी कहीं दूर से मंत्रों की आवाज सुनाई देगी, घंटियों की आवाज सुनाई देगी, श्लोकों की आवाज सुनाई देगी। सारी ऊर्जा एक ही केंद्र पर आ रही है।
वृंदावन आप रहो तो समझना मैं ढलान पर साइकिल ले आया। कोई किसी से नाराज भी होगा तो रहेगा राधे-राधे।
फिर कई ऐसी जगह होती है जितना पैडल मारो, उतना साइकिल आगे बढ़ेगी। मतलब जितनी देर भजन होता है, उतनी देर भगवान में मन लगा रहता है। या तो ढलान पर है पैडल ना भी मारो, माला न भी करो तो भी मन बिल्कुल वही अपने आप जा रहा है।
और फिर कभी-कभी होता है कि चढ़ाई आती है। हम सबके जीवन में आती है। चाहे भजन हो, चाहे जीवन हो, चाहे व्यापार हो चाहे जो हो। सब जगह ढलान भी आती है चढ़ाई भी आती है।
मुंबई में कथा का आयोजन करो तो व्यवस्था की दृष्टि से आसानी है पर अवस्था की दृष्टि से कठिनाई है। व्यवस्था ढलान पर है पर मन चढ़ाई पर होगा। और वाराणसी में विराजमान हो जाओ तो हो सकता है की थोड़ी व्यवस्था के लिए हम चढ़ाई पर हो पर मन के लिए तो हम ढलान पर हैं।
कभी-कभी आएगा जीवन में। व्यापार में भी आएगा, भजन में भी आएगा तो कथा सुनने में भी आएगा। श्रोता को भी कभी-कभी मन बार-बार लाना पड़ता है।
जब चढ़ाई पर साइकिल होती है तो तुमने अगर पैदल मारना छोड़ दिया तो पलटी खाकर नीचे आ जाएगी। उस समय और जोर से पैडल मारा जाता है। जितना जोर लगाओगे, जोर लगाने में आलस्य नहीं करना। क्योंकि रिस्क बनी है। जोर से पैडल मारोगे, चढ़ाई आई है तो ढलान भी जरूर आएगी। जहाँ चढ़ाई है, वहाँ ढलान भी है।
चिंता नहीं करना। इसलिए
जब भगवान में मन नहीं लगता हो तो प्रयास और ज्यादा जोर करना चाहिए। हम विपरीत करते हैं, जब भगवान में मन नहीं लगता तो हम भजन से मुक्त हो जाते हैं। और पैडल मारिए तब साइकिल और आगे बढ़ सकेगी। यही उसकी व्यवस्था है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Whenever if you are unable to concentrate your mind on Bhajan, please don’t feel depressed!
During Covid-19 when I rode the bicycle, I realised that there are some places on the road when you don’t need to pedal. Because of the slope, the cycle would move gaining momentum from the slope! Certain points would come where you had to exert pressure and pedal hard in order to move forward.
While riding the cycle I realised that the mind and the Sadhana too have a similar trajectory!
Many a times we see that without any effort the mind is focussed on the Divine! When you are residing in a Teertha, it means that now your cycle is moving down a slope! Even if you don’t try, you will get to hear the chanting of the Mantras at a distance, bells tolling and the Shlokas being recited at different places. The divine energy is focussed at one point!
When you are residing at Vrindavan then think that your cycle is moving on its own momentum! Even if someone is cross with another, he/she will say, ‘Radhey-Radhey’!
Then there are places which are either plain or slightly inclined where you need to pedal in order to move forward. It means that as long as you are involved in Bhajan, your mind is concentrated on the Almighty! In the previous case, when you are on a slope then even without pedalling, the cycle moves on its own and that too at a reasonable speed depending on the slope!
When you approach an incline and you need to climb up! This comes in everyone’s life! Whether it is Bhajan or daily life or business or whatever the case maybe. We all come across slopes and inclines in our lives!
When you plan a Katha at Mumbai then from the organisational point of view it is easy but from the point of view of the means for organising, it is a bit steep! When the arrangements are like the slope then the mind is on the ascendant! If the same is done at Varanasi, then for some arrangements we might have to climb up the incline but the mind will be on a slope!
These situations are very common in life. It will be there is business, Bhajan as well when you want to hear the Katha. Even while listening, you will have to pull in your wandering mind again and again!
When you are on an incline and you stop pedalling, you run the risk of falling down. At that time, you need to pedal hard! You will have to exert yourself and don’t be lazy in applying pressure! Because it is risky! When you pedal hard and climb up the incline, be rest assured that on the other side you will get a slope also! Wherever you climb, on the other side is the slope or you come down!
Don’t worry! That is why;
When you are unable to focus your mind on the Divine then you need to double your effort with love! We just do the opposite, when we are unable to concentrate on the Divine, we turn away from Bhajan! Pedal hard, only then the cycle will move forward. This is the only way!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदा कदाचित् भवतः गायनस्य इच्छा नास्ति तदा भवतः दुःखं न भवेत्।
यदा अहं कोविड्-१९-काले सायकलयानं कृतवान् तदा एकं वस्तु मया अवगतम् यत् केचन स्थानानि सन्ति यत्र पेडल-यानस्य आवश्यकता नासीत् । सानुकारणात् स्वयमेव चलति स्म । तथा च केचन स्थानानि आसन् यत्र भवन्तः यथा यथा अधिकं पतङ्गं कुर्वन्ति स्म तथा तथा भवन्तः अग्रे गच्छन्ति स्म।
वाहनचालनकाले अहं अवगच्छामि यत् ध्यानं मनः च अपि एवं कार्यं कुर्वन्ति।
बहुवारं मनः किमपि प्रयासं विना अपि ईश्वरं प्रति केन्द्रितं तिष्ठति। तीर्थे स्थातुं भवतः द्विचक्रिका सम्प्रति अधः गच्छति इति अर्थः । अप्रयत्नेऽपि दूरतः मन्त्रध्वनिं घण्टानादं श्लोकशब्दं श्रोष्यति। सर्वा ऊर्जा एकस्मिन् केन्द्रे आगच्छति।
यदि भवान् वृन्दावने निवसति तर्हि अवगच्छतु यत् अहं द्विचक्रिकाम् सानुं प्रति नीतवान्। कश्चित् कश्चित् क्रुद्धः अपि राधे-राधे एव तिष्ठति।
ततः एतादृशाः बहवः स्थानानि सन्ति यत्र भवन्तः यथा यथा अधिकं पेडलं कुर्वन्ति तथा तथा द्विचक्रिका अग्रे गमिष्यति। अर्थात् भजनं यावत्कालं यावत् भवति तावत्कालं यावत् मनः ईश्वरं प्रति केन्द्रितं तिष्ठति। सानुनि वा, न पादौ माला वा न कृत्वा अपि मनः स्वयमेव तथैव गच्छति।
ततः च कदाचित् किं भवति यत् आरोहः आगच्छति। अस्माकं सर्वेषां जीवनेषु आगच्छति। भजनं भवतु, जीवनं भवतु, व्यापारः भवतु, यत्किमपि। सर्वत्र सानुः अपि च आरोहणानि सन्ति ।
यदि भवान् मुम्बईनगरे कथां आयोजयति तर्हि व्यवस्थायाः दृष्ट्या सुलभं किन्तु मञ्चस्य दृष्ट्या कठिनम्। व्यवस्था अधः गच्छति परन्तु मनः आरोहणे एव भविष्यति। यदि च वयं वाराणसीयां निवसामः तर्हि भवतु यत् केनचित् व्यवस्थायाः कृते वयं ऊर्ध्वारोहे स्मः, परन्तु मनसः कृते वयं सानुषु स्मः।
कदाचित् जीवने आगमिष्यति। व्यापारे आगमिष्यति, भजनेन आगमिष्यति कथाश्रवणे अपि आगमिष्यति। कदाचित् श्रोतृणामपि मनः पुनः पुनः आनेतव्यं भवति।
यदा द्विचक्रिका ऊर्ध्वं गच्छति तदा यदि भवन्तः पादचालनं विरमन्ति तर्हि सा परिवर्त्य अधः आगमिष्यति। तस्मिन् समये पेडलः अधिकबलेन आहतः भवति । यथाशक्ति बलं प्रयोक्तुं आलस्यं मा कुरुत। यतः जोखिमः तत्रैव अस्ति। यदि भवन्तः कठिनतया पेडलं कुर्वन्ति, यदि चढावः आरोहणं भवति तर्हि अवश्यमेव अवरोहणं भविष्यति। यत्र आरोहणं भवति तत्र सानुः अपि भवति ।
चिन्ता मा कुरुत। अतः
यदा भवतः ईश्वरस्य विषये रुचिः नास्ति तदा भवतः अधिकं प्रयासः कर्तव्यः। वयं विपरीतं कुर्मः, यदा ईश्वरस्य रुचिः नास्ति तदा भजनविहीनाः भवेम। तथा च यदि भवन्तः अधिकं पेडलं कुर्वन्ति तर्हि द्विचक्रिका अधिकं गन्तुं शक्नोति। इति तस्य व्यवस्था ।
..परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।