श्री राधारमणो विजयते||
इस जीवन में सबसे सावधानी अगर कहीं चाहिए तो शब्द में चाहिए। शब्द ब्रह्म का स्वरूप है। तुम्हारे मन में गुस्सा भी हो तो चाहे एक्शन में कितना भी गुस्सा दिखा लो पर शब्द ऊॅंचा ही बोलना क्योंकि शब्द में ईश्वर बसता है। शब्द का प्रभाव बहुत ऊॅंचा है।
किसी को तुमने मार भी दिया तो उसको वो इतना hurt नहीं करेगा, जितना तुम्हारे मुंह से निकले हुए शब्द उसको hurt कर सकते हैं।
तुम्हारे मुंह में ऐसे ही शब्द होने चाहिए जैसे मन्दिर में भगवान होते हैं। आपके घर के मन्दिर में राधाकृष्ण जी बैठे हैं, गोपालजी बैठे हैं, श्यामसुन्दर बैठे हैं बिलकुल सजे-धजे, माला-मुकुट, बढ़िया पोशाक में, ऐसे ही तुम्हारा मुंह भी एक गर्भगृह है और उसमें श्रीठाकुरजी बैठे हैं शब्द के रूप में।
मुंह में शब्द ऐसे ही हो जैसे मन्दिर में भगवान बैठा होता है। वो हृदय तक जाता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
One must be most careful about the spoken words. We believe the Shabd to be a form of Brahman. If you are very angry then maybe you can express it through your actions but please control your words because the Almighty resides in the word! The words are highly effective.
Even if you hit someone, it will not hurt so much as the wound your words will create.
Your words should be just like the idol of God you see in the temples. Shree Radha Krishna are there in the pooja room at home, Shree Shyamsundar is seated all decked up with Mala, Mukut, silken dress,etc, similarly your mouth too is the sanctum sanctorum where Shree Thakurji is seated in the form of the word!
Your words should be akin to the Lord seated in the temple. He goes right upto your heart!
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
यदि अस्मिन् जीवने कुत्रापि अत्यन्तं सावधानी आवश्यकी भवति तर्हि तत् वचने एव भवेत्। शब्दः ब्रह्मरूपः । मनसि क्रुद्धः अपि कर्मणि कियत् अपि क्रोधः दर्शयतु, उच्चैः वचनं वदतु यतः ईश्वरः वचनेषु निवसति। शब्दानां प्रभावः अतीव अधिकः भवति।
त्वं कञ्चित् हन्ति चेदपि सः तं न क्षतिं करिष्यति यथा भवतः मुखात् निर्गच्छन्तः वचनं तस्य क्षतिं कर्तुं शक्नोति ।
भवतः मुखस्य वचनं मन्दिरे ईश्वरस्य इव भवेत्। भवतः गृहस्य मन्दिरे राधाकृष्ण जी उपविष्टः, गोपाल जी उपविष्टः, श्यामसुन्दरः पूर्णतया अलङ्कृतः, माला-मुकुटं धारयन्, सुन्दर-वेषेण उपविष्टः अस्ति, तथैव भवतः मुखम् अपि गर्भगृहम् अस्ति तथा च श्री ठाकुर जी तस्मिन् उपविष्टः अस्ति शब्दस्य रूपम् ।
मुखे वचनानि भवेयुः यथा ईश्वरः मन्दिरे उपविष्टः अस्ति। हृदयं गच्छति।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥