श्री राधारमणो विजयते
मैं आपसे सच कहूँ- पूरी दुनिया जो अपने आप को आधुनिक मानती हैं उसके पास शरीर का एनालिसिस है, बुद्धि पर भी वह विकास कर चुकी है, बहुत हद तक मन को भी सायको बायो थैरिपी से बहुत ज्यादा केन्द्रित करने का प्रयत्न करती है। पर चौथा बिन्दु जोकि वास्तविक और अस्तित्व का है जो आपका आत्मतत्व है। अगर उसपर पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा चिंतन हुआ है तो केवल भारत में हुआ है।
जब आप चारो बिन्दुओं को केन्द्रित कर लें, संचालित कर लें तब मानवत्व मनुष्यत्व कि ओर बढ़ता है।
स्कन्द पुराण कहता है- अगर तुमने भारत वर्ष में जन्म लिया मनुष्य शरीर में जन्म लिया और अगर उसके बाद भी आप आध्यात्मिक नहीं हुए तब तुमने आत्महत्या की है।
नहीं तो आप आत्महत्या कहाँ करते हैं आप तो देह हत्या कर सकते हैं शरीर मार सकते हैं आत्मा थोड़ी न मरती है। पर
जिसदिन भारत में मनुष्य शरीर में जन्म लिया और अगर तुम्हारे हृदय में रघुनाथ के चरणों की प्रीति नहीं है, कभी किसी रसिक साधु के चरणों में बैठकर तुमने रामायण की गाथा सुनी नहीं, एक बार मुख से राम नाम न लिया, एक बार जाकर राधारमण का दर्शन नहीं किया, एक बार किसी प्रेमी के पास बैठकर राधारानी का नाम नहीं सुना, एक बार दौड़कर जाकर श्रीगोवर्धन की परिक्रमा न लगाई, एक बार उद्दोलित बाहु होकर तुमने जयजय कार न करी तो तब
आत्मघातस्तु तैः कृतः।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
To tell you the truth; the entire world which considers itself to be ultra modern, they have done the physical analysis, they have developed their intellect, they try to focus their mind to a great extent through psycho bio therapy. But the fourth focus, which is very important and quite natural and eternal is the nurturing of your consciousness. If there has been any serious study and effort to develop it, it has been in India.
When you are able to focus on all the four points and activate them, then man grows towards being humane!
The Skanda Purana says- If you are born in India and have been blessed with a human birth and yet you have failed to develop your spiritual quotient then to put it very bluntly, you have committed suicide!
Factually speaking, you can’t kill your soul, you might destroy your physical body. The body perishes but the soul or the Atman is eternal. But;
If you are fortunate enough to have been born in India but you don’t have the divine love or Preeti for Shree Raghunath’s Divine Lotus Feet, if you have not been blessed with the opportunity of hearing the Ramayana Katha seated at the Lotus Feet of a Rasika Sadhu, have not uttered Rama Nama with devotional fervor, you have not gone for the darshsan of Shree Radha Raman Lalju, not even once you haven’t got the blessed opportunity to hear the divine sweet name of Radha Rani from a Premi Bhakta, have not even once done the Parikrama of Shree Govardhan, you haven’t even once raised your hands in ecstasy and chanted the Divine Name and done the Jai Jaikaar of the Lord then; ‘Aatmaghatastu ttaihi: kritaha:||’
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
सत्यं वदामि – यत् समग्रं जगत् स्वयमेव आधुनिकं मन्यते तत् शरीरस्य विश्लेषणं कृतवान्, बुद्धिः अपि विकसितवती, महता प्रमाणेन च, मनो-जैव-चिकित्सायाः माध्यमेन मनः अतिशयेन केन्द्रीक्रियितुं प्रयतते। चतुर्थः तु यः वास्तविकः अस्तित्वात्मकः च सः भवतः आत्मा अस्ति। यदि सम्पूर्णे विश्वे सर्वाधिकं चिन्तितम् अस्ति तर्हि भारते एव एतत् घटितम्।
यदा भवन्तः चतुर्णां बिन्दूनां एकाग्रतां कृत्वा संचालनं कुर्वन्ति तदा मानवता मानवतां प्रति गच्छति।
स्कन्दपुराणम् उक्तम् – यदि भवान् भारते जातः, मानवशरीरे जन्म प्राप्तवान् तथा च यदि तदनन्तरम् अपि भवान् आध्यात्मिकः न अभवत् तर्हि भवता आत्महत्या कृता।
अन्यथा त्वं कुत्र आत्महत्यां करोषि ? आत्महत्यां कर्तुं शक्नोषि, शरीरं मारयितुं शक्नोषि, आत्मा न म्रियते। किन्तु
यस्मिन् दिने भवता भारते मानवशरीरे जन्म अभवत् तथा च यदि भवतः हृदये रघुनाथस्य पादयोः प्रेम नास्ति तर्हि भवता कदापि कस्यचित् ऋषिस्य चरणयोः उपविश्य रामायणस्य कथां न श्रुतम्, भवता कदापि एकवारं नाम न उक्तम् रामस्य, त्वं कदापि एकवारं राधारमणं न गतः। न दर्शनं कृतवान्, एकदा कान्तेन सह उपविश्य राधारानीनाम न श्रुतवान्अहं श्रुतवान्, यदि एकवारं न धावित्वा श्री गोवर्धनस्य प्रदक्षिणं न कृतवान्, यदि एकवारं जयजयं न उद्घोषितवान् बाहून् उद्धृत्य, तर्हि
आत्मघातस्तु तै: कृत:।।
.. परमाराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज .