श्री राधारमणो विजयते
अगर आप भिक्षुक हो, केवल प्राप्त करने पिपासा है, केवल लेने कि रुचि है, तो दाता तो केवल राधारानी हैं, दाता तो केवल श्रीमनमहाप्रभु हैं। ‘‘हरिनाम के दाता’’।।
अगर इसी पिपासा के साथ आगे चलते रहे; पिपासा रुचि एक ही आसपास के अक्षर हैं। तब एक स्थिति ऐसी आएगी जब नाम जीभ से भी निवृत्त होकरके, रोमरोम में बस जावेगा।
पिपासा तभी जगेगी, जब उस वस्तु से प्यार हो जो वस्तु मेरे प्यारे की हो। वो स्थिति पिपासा की है। पिपासा और रुचि की ये दशा है उस वस्तु से प्यार जो प्यारे की है।
बात क्या है हम उससे प्यार कर लेते हैं जो हमारी है। और उस हमारी से निवृत्त होने के लिए भागवत जी का निर्माण किया गया है। पितामह ब्रह्मा जी का भी यही प्रश्न था; हे भगवन! आप कह रहे हैं कि इस सृष्टि का सृजन करो। अपनी बनाई चीज में फंस जाऊंगा। भगवान ने चार श्लोक में भागवत जी प्रदान करी कि अगर उसका चिंतन करता रहेगा तो अपने द्वारा किए गए सृजन से निवृत्त रहेगा।
हम अपने से प्यार करते हैं ये पिपासा का लक्षण नहीं है। गोपी का कोई अपना है ही नहीं।
मातर: पितर: पुत्रा भ्रातरः पतयश्च व
रिश्तेदारी नातेदारी श्रीकृष्ण दिखा रहे हैं। गोपी कहती हैं- कोई है ही नहीं, ठाकुर तुम्हारे अलावा। तुम हो तो वो सब हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
If you are a Bhikshuk, you have that intense thirst or longing, we are keen to take or absorb, if it be so then there is only one giver and i.e., Shree Radha Rani or Shreemann Mahaprabhuji!
“Harinaam kay daata”||
If you can move ahead with this thirst or desire; ‘Pipasa & Ruchi’ are similar words. Moving ahead on this path a stage will come when the Divine Name from the tip of your tongue will be absorbed in each and every pore of your being.
This thirst will only arise when you have love for that which is loved by your beloved. This is the state of intense thirst or Pipasa. In Ruchi or interest, you love whatever is of the beloved.
The thing is that we love whatever is ours. In order to get over this me and mine, Srimadbhagwat has been created. Grand Sire Brahmaji too had this question; ‘Hey Bhagwann! You are asking me to create this creation. If I do this then I fear that I will get entangled in it!’ The Lord gave him the Bhagwat in just four Shlokas and said that if you go on meditating on them, you will not get sucked in by your creation!
We love what is ours, this is not a sign of thirst or longing. Gopi has no one of her own.
‘Maataraha: Pitaraha: putra Bhrataraha: patayashch va’||
The relationship or connection is being shown by Shree Krishna. The Gopi says – ‘Thakur, there is no one other than you. If you are there then everything is there!’
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदि त्वं भिक्षुकः, केवलं ग्रहणपिपासा, केवलं ग्रहणे रुचिः, तर्हि दाता केवलं राधारानी, दाता केवलं श्रीमन्महप्रभुः। “हरि नाम दाता”।
यदि वयं एतेन तृष्णया अग्रे गच्छामः; पिपासा रुचिः स एव परितः अक्षराः। तदा एतादृशी स्थितिः आगमिष्यति यदा नाम जिह्वातः अन्तर्धानं कृत्वा शरीरस्य प्रत्येकस्मिन् छिद्रे निवसति।
तृष्णा तदा एव उत्पद्यते यदा मम प्रियस्य तस्य वस्तुनः प्रति प्रेम भविष्यति। सा तृष्णा अवस्था। इयं तृष्णाव्याजस्थितिः प्रियविषयप्रेमम्।
वस्तुतः यत् अस्माकं यत् अस्ति तत् वयं प्रेम्णामः। तस्याः समस्यायाः च निवृत्त्यर्थं भागवत जी निर्मितः अस्ति। पितामहः ब्रह्म जी इत्यस्य अपि एषः एव प्रश्नः आसीत्; अहो देव ! त्वं वदसि यत् एतत् विश्वं सृजतु। अहं स्वस्य निर्मितस्य किमपि कार्ये फसिष्यामि। ईश्वरः भागवतजीं चतुर्भिः श्लोकैः प्रदत्तवान् यत् यदि सः स्वस्य विषये चिन्तयन् एव तिष्ठति तर्हि सः स्वस्य कृतेन सृष्टेः मुक्तः एव तिष्ठति।
वयं स्वयमेव प्रेम कुर्मः इति तृष्णायाः लक्षणं न भवति। गोपिः स्वस्य कोऽपि नास्ति।
माता: पिता: पुत्र, भ्राता: पतयश्च वा
श्री कृष्णः ज्ञातित्वं दर्शयति। गोपी कथयति- त्वां विना कोऽपि नास्ति ठाकुर। यदि त्वं तत्र असि तर्हि ते सर्वे सन्ति।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥