
हैप्पीनेस इज ऑलवेज ए च्वाइस। दुख तो आपके पास खुद चलकर आएगा। पर आपको प्रसन्नता को अचीव करना पड़ेगा।रोना बहुत आसान है, हँसने का इंतजाम करना पड़ता है।
रो तो कोई भी लेता है, बिल्ली कुत्ता भी रोते हैं हंसना कोई नहीं जानता। कुत्ता, गधा, घोड़ा सब रोना जानते हैं पर कोई हंसना नहीं जानता। रात में आप 12:00 बजे घर लौटे और बिल्ली आपको हंस-हंसकर देखें तो डर लगेगा घर आने में।
प्रसन्नता जीवन का आधार है। हमें दुखी दुनिया में खुशी रहकर चलना है। यह मैत्रेय का सूत्र है। श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं- दुखालयम् अशाश्वतम्॥
दुनिया के क्वालिटी में यहाँ दो चीज हैं, यह दुःखालय है और अशाश्वत है और अस्थाई है। यह वास्तव में इसका नेचर है। तो दुखी दुनिया में सुखी रहना है। हम क्या सोचते हैं सुखी दुनिया में दुखी रहना…
80% परसेंट लोग choose करते हैं दुखी दुनिया में दुखी रहना। जबकि चुनना चाहिए दुखी दुनिया में सुखी रहना। मजा आ जाएगा। कुछ भी हो जाए।
एक बात कहूँ जिसके जीवन में भरोसा है भगवान का, जिसके जीवन में दृढ़ भक्ति है वह बड़ी से बड़ी परिस्थिति में भी दुखी नहीं हो सकता।
लोग कहे मीरा भई बाँवरी, सास कहे कुलनाशी रे…
घरवाले गाली दे रहे हैं, सास ने घर से निकाल दिया, परिस्थिति दुख की है पर वो सुखी हैं। अगर यह सिचुएशन किसी और के जीवन में एक्सप्लेन करो; पति धिक्कार रहा है, घर वालों ने गालियां दी है, मोहल्ले वालों ने निकाल दिया है तो आपका ईमैजिनेशन होगा वो तो सुसाइडल एक्ट करने जा रही है पर नहीं
राणा भेज्यो विष को प्यालो, पीवत मीरा हाँसी रे
पग घुँघरू बांध मीरा नाची रे…
इसके बाद नाची हैं। यही जीवन जीने की सर्वोत्तम कला है
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
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|| Shree Radharamanno Vijayatey ||
Happiness is always a choice. Sorrow comes to you on its own! But, you have to achieve happiness. Crying is easy but to laugh you need to make an effort.
Anybody can cry, even the cats and dogs cry but no one knows how to laugh. A dog, an ass or a horse, they all can cry but they don’t know how to laugh. If you return home at 12 AM and the cat stares at you laughing baring her jaws, you will feel scared.
Happiness is the foundation of life. In this world, full of miseries, we need to learn the art of being happy. This is the ‘Sutra’ of ‘Maitrya’. Lord Krishna says in the Gita; ‘Dukhhalayam ashaashwattam’.
These are the two qualities of this world, A) It is full of miseries and B) It is impermanent or in other words temporary! This in fact is its nature. Therefore, we have to be happy in this miserable world. What do we think, in this happy world, we remain sad…?
80% people choose to be sad in this world of sorrow! Whereas, we need to choose happiness in this miserable world. You will enjoy it, whatever happens!
I would like to say that one who has a firm faith in God, one who has profound ‘Bhakti’, that person will never be miserable, in spite of the greatest calamity.
‘Loga kahey Meera bhayee baawari, Saas kahey kulnaashi rey….
The family is cursing her and her mother-in-law kicks her out of the house, her situation was miserable yet, she was happy! If we try to explain it in today’s situation say, the husband is cursing, the family members are abusive, the people of the community force the woman to leave the house or the area, then you may imagine that she might go and commit suicide, but no;
‘Rana bhejyo vish ko pyalo, peevat Meera haasi rey,
Paga ghungroo bandh Meera naachi rey ….
She danced in merriment. This is the greatest art to learn in life!
|| Param Aaradhya Poojya Shreemann Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj ||
श्री पुण्डरीक जी सूत्र (१४-०६-२०२३)
भवतः प्रार्थना निश्छलः अस्ति। सत्यं वदामि, भवतः प्रार्थनायाः अनुभवः अद्यापि न प्राप्तः। अतीव उच्चम्।
यदि अतीव सत्यं तर्हि तस्य एतावता ऊर्जा अस्ति यत् तस्य किमपि कर्तुं न शक्नोति। प्रार्थनायां बहु शक्तिः भवति। अतीव बृहत् वैद्याः अपि अन्ते वदन्ति यत् भ्राता प्रार्थयन्तु। इदानीं औषधं समाप्तम्, अधुना केवलं प्रार्थना एव कार्यं कर्तुं शक्नोति।
परन्तु अतीव यथार्थवादी भवतु। यदि परिस्थितिगतं तर्हि कार्यं दूषितं भविष्यति। प्रामाणिकतापूर्णा भवतु। मम जीवने, मम प्रियजनानाम् जीवने, भवतः अपि जीवने अपि अस्य वस्तुनः महत्त्वं सहस्रवारं मया अनुभवितं स्यात् ।
स्वार्थेन न प्रार्थयेत् । प्रार्थना स्वार्थी न भवेत्, प्रार्थना सुलभा भवेत्, प्रार्थना शक्तिशालिनी भवेत्, प्रार्थना सौम्या भवेत्। एषः तस्य गुणः । एकं अपि वदामि यत् प्रार्थना भवतः एव भवेत्, न तु अन्यस्य। भवन्तः स्वस्य अत्यन्तं अनुभवेन पूर्णाः भवेयुः। तदा सा यथा वर्तते तथा महान् अस्ति। अन्तः भव
कस्मैचित् प्रार्थयतु इति वदतु, ततः सः हस्ताञ्जलिः उपविष्टवान्। राजा! वयं प्रतिदिनं प्रार्थयामः। प्रार्थना नित्यं न भवितुम् अर्हति। दिनचर्या कथं भविष्यति ? कदाचित् यदि किमपि नित्यं भवति तर्हि तस्य महत्त्वं समाप्तं भवति।
प्रार्थना कदापि नित्यं न भवितुम् अर्हति। हृदयात् जातः स्वतःस्फूर्तः भावः । यदि दृश्यते तर्हि पश्यन्तु कियत् शून्यम् अस्ति।
अहं च प्रार्थनां करोमि; कदापि भवतः प्रार्थनायाः परीक्षणं न कुर्वन्तु। भवतः प्रार्थनायाः तावत् एव शक्तिः अस्ति यथा भवतः प्रार्थनायां विश्वासः। ‘अहम् अपि करिष्यामि, कदाचित् विषयः भविष्यति’ इति एतत् वस्तु न कार्यं करोति। अति आकस्मिकं मा कुरुत। प्रार्थनायां महती शक्तिः अस्ति।
-परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।