परमात्मा तभी खीजता है जब हम प्राप्त वस्तु को रेलिस् नहीं करते। जो तुमपर है जब तुम उसका आनंद नहीं लेते हो तो जो है वो उसे छीन लेता है। फिर हम रोते रहते हैं।
हमारे पास जो होता है हम उसका आनंद कभी नहीं ले पाते हैं और जो नहीं होता उसके लिए सदा रोते रहते हैं। ठाकुर जी इस बात से खीज जाते हैं कि भले आदमी मैंने तुझको इतना दिया।
एक बाबा राधारमणजी आया और देखकर बोला- वाह! तु क्या दाता है तु कितना बड़ा आनंद है।। वो बाबा था बिल्कुल, शरीर पर लँगोठि थी वो भी फट रही थी कहीं कहीं से। एक जना आकर बोला- बाबा! तु कहता है ये दाता है दानी है; अपने को देख, तु इसको दाता कह रहा है? एक लँगोटी है वो भी फट रही है और तु कह रहा है ये दानी है?
बाबा बोला- भैया! जब पैदा हुआ था तब ये लँगोठि भी नहीं थी ये 3 मीटर का कपड़ा कमर बांधने के लिए दिया इसके लिए ये कम दाता नहीं है।
जो है जब हम उसका आनंद लेते हैं तो भगवान और बढ़ाता है। जो है उसी का आनंद हम नहीं लेते तो जो रहता है उसे भी फोड़ देते हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।