श्री राधारमणो विजयते||
विद्या वधू जीवनम्।।
हमारी जो विद्या है, हमारी जो अकल है, ये जो हमारी समझ है, ये जो हमारी चतुराई है, ये जो हमारा अनुभव है यह सब जगह चंचला कन्या की तरह घूमती है हमारी बुद्धि।
इसको झुका दिया, इसको बढ़ा दिया, इसको दिखा दिया, इसको समझा दिया। बड़ी चंचला है। अरे हम बहुत जानकार हो गए हैं।
एक काम करो- सतगुरु के चरणों में बैठकर एक बड़ा सुंदर लड़का है अपनी बुद्धि का, अपनी मति का ब्याह कर दो। लड़का बड़ी जोरदार जोरदारी का है। एनआरआई का है।
कहाँ रहता है? साक्षात गोलोक वृंदावन में रहता है। मैया बाप का नाम है स्वयं राधाकृष्ण। लड़के का नाम क्या है? लड़के का नाम है उनका ही नाम विश्वास।
श्रीराधाकृष्ण के सुपुत्र विश्वास के साथ अपनी मति का ब्याह कर दो। और जिस दिन इस मति का व्याह कर दिया, यह मति जो चंचल होकर तुम्हें संसार में फंसाती है, वही इस संसार से निवृत्त करके अपने परमधाम श्रीकृष्ण की शरणागति प्रदान कर देगी।
विद्या वधू जीवनम्।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
विद्या वधू जीवनम् ।
अस्माकं ज्ञानं, अस्माकं प्रज्ञा, अस्माकं अवगमनं, अस्माकं चतुरता, अस्माकं अनुभवः, अस्माकं बुद्धिः लीला बालिका इव सर्वत्र भ्रमति।
वक्रं कुरुत, वर्धयतु, दर्शयतु, व्याख्यायतु। सा अतीव लीलालुः अस्ति। हे, वयं बहु ज्ञानिनः अभवम।
एकं कार्यम् कुरु – सतगुरुपादयोः उपविश्य, स्वस्य बुद्धिं स्वस्य इच्छां च अतीव सुन्दरेण बालकेन सह विवाहं कुरु। बालकः अतीव ऊर्जावान् अस्ति। प्रवासी भारतीयस्य अस्ति।
सः कुत्र निवसति ? साक्षात् गोलोकः वृन्दावने निवसति। माता पितुः नाम स्वयं राधाकृष्णः | बालकस्य नाम किम् ? बालकस्य नाम विश्वासः अस्ति।
श्री राधाकृष्णपुत्र विश्वासेन सह मनः विवाहं कुरु। यस्मिन् दिने च भवन्तः एतत् मनः त्यजन्ति, अयं चपलः मनः यः भवन्तं इह लोके फसयति, सः अस्मात् संसारात् निवृत्तः भूत्वा स्वस्य परमं पदं श्रीकृष्णं समर्पयिष्यति।
विद्या वधू जीवनम् ।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥