श्री राधारमणो विजयते
तुम सबकुछ छोड़कर आए पर वस्तु को तो छोड़ आए, उस वस्तु को छोड़ने की प्रतिष्ठा को तुमने नही छोड़ा और जब तक प्रतिष्ठा के पीछे लगे रहते हो तब तक ईष्ट कभी नहीं मिल सकता।
क्योंकि जब ईष्ट एक हो जाता है तब प्रतिष्ठाओं की परवाह नहीं होती, परम्पराओं की परवाह नहीं होती, न हुई।
पहुँच गए ठाकुर बाबा के पास, बाबा क्या कर रहे हो? ईष्ट नारायण हैं और इधरउधर की पूजाएं करते फिर रहे हो? नहीं। प्रतिष्ठाओं की चिंता मत करो, परंपराओं की चिंता मत करो, करो तो अपने इष्ट की चिंता करो। करा दी गिरिराज जी की पूजा।
हम सुनाए जा रहे हैं इसलिए प्रतिष्ठा के कारण ही पिपासा को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
You have given up everything, meaning things per se, but you could not leave the pride or the fame of leaving. Till such time you are unable to leave the pride, you can’t ever attain you Eeshtha!
Because, when you attain the Eeshtha, the hankering for fame is not there or you don’t bother for anything else like traditions, etc.
You have gone to Thakur Baba, Baba what is happening? Your Eeshtha is Narayana and you are busy doing this pooja or that Pooja! No! Don’t worry about any name or fame, or traditions, just think about your Eeshtha! He made you do Shree Giriraj’s pooja.
We keep on saying and beating our own drum of fame, that is why till now, the longing or the intense thirst of the the Lord is missing!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
त्वं सर्वं त्यक्तवान् किन्तु एकं वस्तु त्यक्तवान्, त्वं तत् वस्तु त्यक्त्वा प्रतिष्ठां न त्यक्तवान् तथा च यावत् त्वं प्रतिष्ठायाः अनुसरणं कर्तुं व्यस्तः असि तावत् त्वं कदापि प्रेमं न प्राप्नोषि।
यतः यदा इष्टा एका भवति तदा प्रतिष्ठायाः चिन्ता नास्ति, परम्परायाः चिन्ता नास्ति, न अभवत्।
ठाकुरः बाबां प्राप्य बाबा किं करोषि ? इष्टनारायणः अस्ति त्वं च तत्र तत्र पूजां कुर्वन् परिभ्रमसि? न प्रतिष्ठानां चिन्ता मा कुरु परम्पराणां चिन्ता यदि करोषि तर्हि प्रियजनानाम् चिन्ता। प्राप्त गिरिराज जी पूजित।
श्रूयमाणाः स्मः अतः प्रतिष्ठायाः कारणात् कामं प्राप्तुं न समर्थाः स्मः।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥