जैसे हम किसी को राधारमणजी की कुलिया दें तो वो विभिन्न प्रकार के व्यक्ति हो सकते हैं। एक व्यक्ति वो हो सकता है जो भक्त है। दूसरा, भक्त में भी वो किस श्रेणी का है। तीसरा वो व्यक्ति जो भक्त तो है, धार्मिक तो है पर उसकी कोई ऐसी विशेष राधारमणजी में निष्ठा नहीं है।
भावान्तर से रसान्तर का अनुभव होता है। जैसा सम्बन्ध है, जैसा अनुभव है, जैसी अनुभूति है तदवत् उस वस्तु का महत्व प्रकट होता है। जिसके लिए राधारमणजी सच में प्राणधन हैं उनकी भाव की सिद्धि अपनी अलग होगी।
हम जानते हैं अगर राधारमणजी का पूरा प्यारा है कुलिया न भी मिल रही हो, कुलिया के बिलकुल अंतिम जो नीचे घुसी रहती है शायद उतनी रह गई थी, एक माता कुलिया न मिलने पर भावुक होकर, जो कुलिया पाने के बाद त्याग योग्य हो गई थी उसको लेकर नीचे बची कुलिया को खुरच कर पा गई।
ये तो अपने उस भाव की स्थिति है। कोई ऐसा भी है जो देते समय विचार कर सकता है कि इसने हाथ भी धोए थे कि नहीं और कोई ऐसा भी है जो किसी के द्वारा पाई हुई में भी की अंतिम कणिका का मुख में आस्वादन करे क्योंकि वो स्वाद कुलिया का नहीं, वो स्वाद तो लालजी का ले रहा था
॥परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।