श्री राधारमणो विजयते||
ज्ञान कैंची की तरह है उससे मोह को काटा जाता है। पर ये काम ऐसा आसान नहीं है। आपको दरजी बनना पड़ेगा। कपड़ा को काटा जाता है चीज को सिलवे के लिए और काटना ही तो सबसे बड़ी निपुणता है। ऐसे न काट देना कि कतरने पैदा हो जाय।
जीवन में बड़ेबड़े लोगों ने ज्ञान की असी से बड़ी बड़ी कतरने पैदा किए हैं जो केवल घूरे में डालने लायक है।
ज्ञान की असीं से मोह के जीर्ण को निवृत्त करके फिर ऐसा सिलो, ऐसा सिलो जिसका दरशन करके वासना का उदय नहीं हो उसके स्वरूप में उपासना का उदय हो।
मीरा ने ऐसी कैंची चलाई है कि उसके स्वरूप में सबको श्रीकृष्ण की ही पराभक्ति का दरशन होता है।
मोह बंधन काट दो। पहले मोह के कपड़ा को काटकर कथा में बैठकर इसको सिलो। पर कैसे सिलो? चीर आया तो उसको ऐसा काटो कि यही श्रीराधारमण जी के पोशाक बनने के काम में आ जाए। तब तो या कपड़े को काटने का फायदा है। किसी के पहनने योग्य बन सके।।
कैंची कोई भी रख सकता है पर दरजी के पास कैंची चलाने का ज्ञान है। गुरुचरणों में बैठकर मोह को भी कैसे ज्ञान से काटना है उसका अभिज्ञान पता चल जाता है। जिससे निर्मोही नहीं होना, विमोही नहीं होना, ऐसा काटा की संसार का मोह निवृत्त हो गया और श्रीराधारमण जी का वही मोह प्रेम रूप में प्रकट हो गया। यही अभ्यास का विशुद्ध स्वरूप है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
‘Gyan’ or knowledge is like a pair of scissors by which you can cut ‘Moha’ or attachment. But it is not so easy! You will have to become a tailor first. The cloth needs to be cut before stitching and this cutting is an art! If you don’t know how to cut then just cut-pieces will remain.
Many a big big people have only made cut-pieces from this cutter of knowledge which is of no use!
By using the scissors of knowledge cut out the decadent ‘Moha’ and then stitch in such a manner that by seeing it no passion is aroused instead
‘Upasana’ is born.
Meera used her scissors so deftly that in her garment, one only had the Darshan of Shree Krishna’s ‘Para-Bhakti’.
Cut out your bond of ‘Moha’. First cut the fabric of attachment and stitch it by sitting and listening to the Bhagwad Katha. How will you stitch it? When you get a piece or ‘Cheera’ then use it to make Shree Radha Raman Lalju’s poshak! Then only you are a master cutter. What you stitch should be wearable!
Anyone can use the scissors but the master tailor knows how to use it. By sitting at the Lotus Feet of your Sadguru you will learn the art of cutting out the ‘Moha’ by ‘Gyan’. You don’t need to become totally detached, or become a ‘Vimohi’ but cut it in a manner that ‘Moha’ is not destroyed but it gets converted into the Param-Prema for Shree Radha Raman Lalju. This is the true form or method of practice.
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
ज्ञानं कैंची इव, आसक्तिं छिनत्ति। परन्तु एतत् कार्यं तावत् सुलभं नास्ति। भवता दर्जी भवितुम् अर्हति। वस्त्रं वस्तूनि सिवितुं छिनत्ति, कटनं च बृहत्तमं कौशलम् अस्ति। यथा कतरणं भवति तथा न छिन्दन्तु।
जीवने महान् जनाः अनेके महान् ज्ञानस्य खण्डाः निर्मितवन्तः ये केवलं नेत्रेषु स्थापयितुं योग्याः सन्ति।
विद्यापीठात् आसक्तियुगं हृत्वा तथा सवन् यथा दृष्ट्वा कामो न उत्पद्यते, तद्रूपेण पूजा उत्पद्यते।
मीरा कैंचीनां प्रयोगं तादृशरीत्या कृतवती यत् श्रीकृष्णस्य भक्तिं सर्वे तस्याः रूपेण द्रष्टुं शक्नुवन्ति।
आसक्तिबन्धं छिनत् । प्रथमं आसक्तिवस्त्रं छित्त्वा कथायां उपविश्य सिवन्तु। परन्तु कथं सिवनीया ? यदि कश्चित् चीर आगच्छति तर्हि तत् एवं छिनत्तु यत् तस्य उपयोगेन श्री राधारमण जी इत्यस्य वेषः निर्मातुं शक्यते। अथ पटच्छेदस्य लाभः । केनापि धारयितुं शक्यते।
कोऽपि कैंची धारयितुं शक्नोति परन्तु दर्जी कैंचीप्रयोगस्य ज्ञानं धारयति। गुरुचरणेषु उपविश्य ज्ञानेन आसक्तिं हन्तुं ज्ञायते । यस्मात् कारणात् असङ्गमुक्तं न भवितुमर्हति, संसारसङ्गः गतः, श्री राधारमण जी प्रति स एव आसक्तिः प्रेमरूपेण प्रकटितः। एतत् शुद्धं अभ्यासरूपम्।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥