श्री राधारमणो विजयते
साधना का एक पक्ष यह भी है जब आप भजन करते हो तो भजन में क्या होता है? मन का मंथन होता है। मन समुद्र की तरह है। रघुनाथ दास गोस्वामी जी ने स्वयं लिखा है।
मन समुद्र की तरह है। भजन में सबसे पहले मन का ही मंथन होता है। जब मन का मंथन होता है तो जितने पुराने संस्कारों के विष हैं वो निकलते हैं, संबंध की चंद्रिकाएं हैं वह निकल जाती हैं, अभिलाषाओं के कल्पवृक्ष है वह निकल जाते हैं, आकर्षण की अप्सराएं है वह निकल जाती हैं। सब निकल जाते हैं। और अंत में क्या रह जाता है? केवल हरिनाम का अमृत तुम्हारे मन से पैदा हो जाता है।
हरिनाम का अमृत भी तुम्हारे सामने आ जाए फिर भी एक सावधानी हमेशा साथ रखना। विलग मत हो जाना। अब तो सब हो गया। उसके बाद भी सावधान जरूर रहना।
देवता तो नाचने लग गए, कूदने लग गए अमृत कलश मिला तो। इस नाचने कूदने में मुसीबत यह हो गई की दैत्य उसे फिर से चुरा कर ले गए।
इसलिए हरिनाम के साथ हरिनाम की रुचि होना जरूरी है। हरिनाम सरल है पर हरिनाम की रुचि ही वह सावधानी है जो आपकी हरिनाम की अमृत को दुनिया के आकर्षण रूपी दैत्य से बचा करके रखेगा।
नाम तो मिल गया,नाम की रुचि मिली है कि नहीं मिली है? देवताओं को अमृत तो मिल गया फिर वह लापरवाह हो गए कोई बात नहीं; दैत्य फिर से चुरा ले गए अमृत। इसलिए सावधानी रखनी चाहिए।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
One aspect of Sadhana which we need to understand that, what is Bhajan? It is the churning of your mind! The mind is like the ocean. Shree Raghunath Das Goswami says;
The mind is an ocean. The very first step of Bhajan is the churning of the mind. When the mind is churned then the accumulated poison of the Sanskaras is expelled, the Chandrikas of relationships drop off, the never ending desires get destroyed, the Apsaras of attraction or enchantment are shown the door. What remains? The nectar or the Amrit of Hari Naam arises in one’s heart!
Please be cautious even after you get the nectar of Hari Naam and don’t become careless that I have got everything. You need to be very careful!
The moment the Devas saw the Amrit Kalash, they started dancing in glee! They were lost in the merry making and in this carelessness, the demons stole the pot of nectar.
Therefore, along with the Hari Naam, you need to have the ‘Ruchi’ or keen interest in it! Hari Naam is easy but the interest in it will keep the demon of attraction at bay.
You have got the Hari Naam but have you got the ‘Ruchi’? The Devtas got the Amrit and became careless, which gave an opportunity to the demons to steal it. That is why, you need to be careful!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
आध्यात्मिक-अभ्यासस्य अन्यः पक्षः अस्ति यत् यदा भवन्तः भजनं कुर्वन्ति तदा भजनस्य किं भवति ? मनः मथति। मनः समुद्रवत् । रघुनाथ दास गोस्वामी इत्यनेन एव लिखितम् अस्ति।
मनः समुद्रवत् । भजने प्रथमं मनसः मथनं भवति । यदा मनः मथ्यते तदा वृद्धसंस्कारस्य सर्वे विषाः निर्गच्छन्ति, सम्बन्धचन्द्राः निर्गच्छन्ति, काल्पनिकाः कामवृक्षाः निर्गच्छन्ति, आकर्षणस्य अप्सराः निर्गच्छन्ति। सर्वे गच्छन्ति। अन्ते च किं अवशिष्टम् ? केवलं हरिनाममृतं ते मनसा जायते।
हरिनाममृतं पुरतः आगच्छति चेदपि सदा एकं सावधानतां स्वेन सह स्थापयन्तु। मा विरहन्तु। इदानीं सर्वं कृतम्। तदनन्तरमपि सावधानाः भवन्तु।
अमृतघटं प्राप्य देवाः नृत्यं कूर्दनं च आरब्धवन्तः । अस्य नृत्यस्य कूर्दनस्य च समस्या आसीत् यत् राक्षसाः पुनः तत् अपहृतवन्तः ।
अतः हरिनामसहितं हरिनाम् विषये रुचिः भवितुं महत्त्वपूर्णम् अस्ति। हरिनाम सरलं किन्तु हरिनमस्य रुचिः सा सावधानता अस्ति या लौकिक आकर्षणस्य राक्षसात् भवतः हरिनामस्य अमृतं सुरक्षितं करिष्यति।
भवता नाम प्राप्तम्, नाम रुचिः प्राप्ता वा न वा? देवाः अमृतं प्राप्तवन्तः ततः ते प्रमादं कृतवन्तः, कोऽपि समस्या नासीत्; दानवः पुनः अमृतं अपहृतवन्तः। अतः सावधानः भवेत् ।
॥परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।