अगर आप परमानंद की प्राप्ति करना चाहते हैं तो किसी के अभिमान में कभी नहीं बंधना। बल से नहीं बंधना, प्रेम से बंध जाना। भगवान बल से नहीं, प्रेम के बंधन से बंध जाते हैं।
आनंद का पथि, आनंद का owner बल से नहीं, प्रेम से बंधता है। आप अगर आनंद के रास्ते पर हो तो किसी के बल से प्रभावित नहीं होना, किसी के प्रेम से प्रभावित होना।
हम जीवन में सदा बल से ही प्रभावित होते हैं। ये human consciousness का एक स्वभाविक स्वरूप है। किसी का भी बल। वो बल उसका रूप हो, वो बल उसका धन हो, वो बल उसका संपर्क हो। कोई न कोई बल।
हो सकता है कई मेरे शब्द की वजह से प्रभावित हो, पर ये अधूरी बात है। शब्द का भरोसा नहीं कब साथ छोड़ देता है पर
प्रेम ऐसी वस्तु है जो उसके साथ हमेशा निभ सकती है। दोनों की क्रिया बहुत अलग है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।