आस्वादन और आस्वाद्य यह दो चीज होती है। आस्वादन करने वाला और आस्वादन करने वाली वस्तु, इन दोनों का अनुभव आवश्यक है। बड़ी पद्धति से कोई खाने वाले वस्तु बनी हो और खाने वाला भी बड़े शुद्धि से उसका आस्वादन करे तभी संभव हो सकता है।
आस्वाद्य वस्तु और आस्वादन कर्ता इन दोनों के श्रेणी ही रस को अवस्थित करती हैं।
ऐसे ही श्रीकृष्ण को तो अनंत लोग ‘रसो वै सह’ का आस्वादन करते हैं पर उसकी सर्वोत्तम स्थिति सुदीप्त भाव में जो आस्वादन श्रीप्रिया जी कर सकती हैं वह कोई नहीं कर सकता। इसीलिए राधारानी हमारी महारानी हैं।
इसीलिए महारानी हैं। कोई और कारण नहीं है। ये बहुत धनवाली नहीं हैं, ये बहुत बड़े मन वाली हैं। इतना बड़ा मन किसी का नहीं है।
बड़े से बड़ा धनवान भी धन दे सकता है पर किशोरी कृपा कर दें दो अपने मन में बैठे मनमोहन को दे सकती हैं। और इस युक्ति का आनंद लेने के लिए वृंदावनवास है।
॥परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
To taste (Aasvadan) and delicacy or sweetness (Aasvadya) are two different things. The one who tastes and what one tastes, the experience of both is essential. If a dish has been prepared as per the correct recipe with a lot of care and the one who is tasting consumes it with purity only then it can be relished.
A very delicious dish and the person tasting it, both are equally important to create the Rasa.
Similarly, the world knows Shree Krishna as ‘Rasovai saha’ and experience it but in the extreme and the highest state of ‘Sudipta Bhava’, the experience which Shree Priyaju’ has is beyond human or in other words beyond description. That is why Radha Rani is our Maharani!
She is the Maharani of all the Maharanis. There is no other reason. She is the ultimate in wealth and has the largest heart! No one else can compare with her magnanimity and benevolence.
The wealthy can do big charity but Shree Kishoriju if she wills can bless you with giving Shree Manmohan who resides in her heart or is one with her. In order to experience this, the Rasika has to do ‘Vrindavan-Vaas’!
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
रसः रसश्च द्वौ पदार्थौ। स्वादकस्य, स्वादनीयस्य च उभयोः अनुभवः अत्यावश्यकः । भक्ष्यं महता विधिना निर्मितं भोक्ता अपि महता शुद्ध्या तस्य स्वादनं करोति चेत् एव सम्भवति ।
रसस्य च रसस्य च वर्गाः रसं निर्धारयन्ति ।
तथैव अनन्तजनाः श्रीकृष्णं प्रति ‘रासो वै साह’ इति आनन्दं लभन्ते, परन्तु श्रीप्रिया जी स्वस्य उत्तमानन्ददशायां यत् कर्तुं शक्नोति तस्य आनन्दं कोऽपि न लभते। अत एव राधारानी अस्माकं राज्ञी अस्ति।
अत एव सा राज्ञी अस्ति। अन्यत् कारणं नास्ति। सा अतीव धनिकः नास्ति, सा अतीव विशालहृदया अस्ति। एतादृशं महत् मनः कस्यचित् नास्ति।
धनिकतमः अपि धनं दातुं शक्नोति, परन्तु कृपया किशोरीं ददातु, सा हृदये उपविष्टस्य मनमोहनस्य कृते दातुं शक्नोति। एतस्य च युक्त्याः भोक्तुं वृन्दावनवासः।
॥ परमराध्य: पूज्य: श्रीसद्गुरु भगवान जू॥