श्री राधारमणो विजयते
धर्म उसे नहीं कहते जो आज्ञा देता है धर्म उसे कहते हैं जो प्रज्ञा देता है। आज्ञा प्रत्येक परिस्थिति पर घटित नहीं हो सकती। ये बात पक्की है। क्योंकि हर व्यक्ति की स्थिति अनुभव स्तर अलग है। एक बात सबके लिए कैसे आम हो सकती है? ये बड़े महाराज श्री की वाणी है।
सनातन धर्म वो नहीं है जो आज्ञा बाँटता है सनातन धर्म वो है जो व्यक्ति को प्रज्ञावान बनाता है। और वो फिर अपने जीवन की निज परिस्थिति में निज जीवन को उस प्रकार चलाए।
बात पक्की है कि संसार स्वप्न है और ईश्वर ही सत्य है पर ये बात अनुभव में आई है या ऊपर से बोल रहे हो? क ई जगह आश्चर्य होता है सोने और चाँदी के सिंहासन पर बैठकर व्यक्ति कहता है कि जगत सपना है। थोड़ा अप्रासंगिक लगती है ये बात। धन माया है। अप्रासंगिक लगती है। यही प्रज्ञा का स्तर है कौन सा दर्शन किस समय आवश्यक है। यही प्रज्ञा है।
संसार का परित्याग भी जीवन में महत्वपूर्ण है पर ये जीवन में घटे कब इसका निर्णय करना प्रज्ञा का स्वरूप है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
That which commands is not Dharma, instead that which provides insight or sapience is Dharma. In reality, the command cannot be followed in all circumstances. Because the state or experience of each individual is different. How can one instruction be common to all? These are the words of ‘Baddey Maharajshri’!
The Sanatana Dharma is not that which goes on instructing to all and sundry, but the Sanatana Dharma empowers the person’s intellect! And then the individual manages and moulds his life according to the situation.
It is certain that the world around us is a dream or illusory and only the Almighty is real or the truth! Now, whether this is your realisation or it is just a statement being made without any realisation? At many a places, to our utter amazement we see that the person seated on a gilded throne is saying that the world is a dream! The statement seems a bit out of place here! Money is Maya, it seems out of context! What is contextual and proper indicates the level of one’s intellect. This is what is Pragya or insight!
Giving up the worldly pleasures or comforts are necessary in life but how and when one needs to take a call at the right time and it comes only from an insight!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
धर्मः न आज्ञापयति, धर्मः प्रज्ञाप्रदः इति उच्यते। अज्ञः प्रत्येकस्मिन् परिस्थितौ भवितुं न शक्नोति। एतत् वस्तु निश्चितम् अस्ति। यतः प्रत्येकस्य व्यक्तिस्य स्थितिः अनुभवस्तरः च भिन्नः भवति । एकं वस्तु कथं सर्वेषां सामान्यं भवेत् ? इति बडे महाराज श्री.
सनातन धर्मः न सः आदेशं वितरति, सनातन धर्मः सः व्यक्तिं बुद्धिमान् करोति। ततः च स्वपरिस्थितौ तथैव जीवनं यापयेत्।
जगत् स्वप्नः ईश्वरः च सत्यः इति निश्चितम्, परन्तु भवता एतत् अनुभवितं वा उपरिष्टात् वदसि वा? सुवर्णरजतस्य सिंहासने उपविष्टः जगत् स्वप्नमिति वदति बहुषु स्थानेषु आश्चर्यम् । एतत् किञ्चित् अप्रासंगिकं दृश्यते। धनं भ्रमः एव । अप्रासंगिकं प्रतीयते। कस्मिन् काले कः दर्शनः आवश्यकः इति प्रज्ञास्तरः एषः एव । एषा प्रज्ञा।
जीवने अपि जगतः त्यागः महत्त्वपूर्णः अस्ति, परन्तु जीवने कदा भवितुम् अर्हति इति निर्णयः प्रज्ञारूपः अस्ति ।
..परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ..