श्री राधारमणो विजयते
भगवान को पाने का जब संकल्प हो जाए और तुम उसको पा लो। तब वहीं पर मत रह जाना। रस इसी में है कि तुम प्यासे बने रहो। उसको आने दो और फिर आने दो और फिर जाने दो फिर आने दो। यही बात भागवत जी का तीसरा श्लोक कहता है-
निगम कल्पतरोर्गलितम् फलम्….. रसिकाः भुविभावुकाः॥
पिबत्… पीते रहो… पीते रहो…। एक बार संकल्प करके और अपने संकल्पित वस्तु को प्राप्त करके अगर तुम तृप्त हो गए तो अध्यात्म से चूक जाओगे।
यह रास्ता अतृप्ति का है, तृप्ति का नहीं। चीज वही है पर एक चीज के लिए प्यासे बने रहना यह आध्यात्मिक का रियाज़ है। दुनिया में एक चीज के लिए प्यासे नहीं रह सकते, हर रोज नई चीज चाहिए।
प्यास वही है चीज नहीं चाहिए। अध्यात्म इससे उल्टा है। अध्यात्म में चीज वही है प्यास हर रोज नई होनी चाहिए।
दुनिया में चीज नई है प्यास वही है, अध्यात्म में चीज वही है, प्यास नई है। इस चीज का परिवर्तन ही तो भक्ति है। पीते रहो… पीते रहो… तृप्त मत हो जाना।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When you do the Sankalpa or decide to attain God and you attain Him! Please don’t stop there. The Rasa is only in your being thirsty! Let Him come, come, and then let Him go and return back. This is stated in the third Shloka of Srimadbhagwat-
‘Nigam kalpatarorgalittam phallam……Rasikaha bhuvibhaavikaha||’
‘Pibbat’…..keep on drinking…..go on drinking…. After deciding to get something and after getting what you decided, if you are satisfied then you will miss the spiritual quest!
This is the path of remaining thirsty for more or ‘Atripti’. The thing is the same but to remain thirsty for more is the practice of spirituality. You cannot remain thirsty for the same thing in the world, you need something new everytime!
The thirst is the same but here it is not for a worldly object! In spirituality, it is just the opposite. In spirituality it is the same thing but everyday the thirst is renewed.
In the world the thirst is the same but the thing is new, wheras in spirituality, the thing is the same but the thirst is new! This is what is called Bhakti. Keep on drinking….go on drinking…..don’t get quenched!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||