श्री राधारमणो विजयते
वो आँखें जो किसी की असुविधा को समझे वो बड़ी हैं। क्या हमारी आँखें देख पायीं किसी के uncomfort को? हमारे कान क्या सुन पाए वो जो सामने वाला नहीं सुना पा रहा है? क्या हमने अपने कान को इतना उदार बनाया कि हम उसके मन की बात को सहज सुन लें? जिस दिल में भगवान को बसाना है उस दिल को तो बड़ा करना पड़ेगा।
वंशी वाला दिखता है वंशी अभी सुनाई नहीं देती सम्भवतः यही बात होगी। हम बहुत बाहर से सज आए उसमें कोई द्रोह नहीं है आप बाहर से भी अच्छा है सजिए। साधन है व्यवस्था है बढ़िया से बढ़िया सजिए। पर किसी सुन्दर मुख वाले मुख से सुन्दर शब्द निकले तो सोने की अँगूठी में हीरा लगा हो ऐसा लगता है।
सकल तो बड़ी अच्छी है पर बोले तो ऐसा लगे कि पर्वत से ज्वालामुखी फूट गया हो। तो कैसा विचित्र होगा?
वो आँखे जो कभी किसी के लिए नरम भी हो सकती है क्या? इतनी उसमें उदारता हो। जीवेर दया।। श्रीमनमहाप्रभु जी कहते हैं। जीव मात्र के प्रति दया उसके हृदय में जागृत हो जाय।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
The eyes that can visualise the discomfort of others are indeed blessed. Can our eyes see the miseries of others? Are our ears able to hear what the other person is unable to say? Have we equipped our hearing capabilities in a manner that we are able to hear the cry of the troubled heart easily? The heart where we want the Almighty to reside should be large enough to accomdate Him!
We are able to see Lord Krishna holding the flute in His hands but are we able to hear the Divine melody? We have powdered and done a lot of makeup from the outside, I have no issues with it, please stay and look fit and fine. If you have the means and the inclination to dress up, please do so with pleasure. But when a beautiful face utters beautiful words then it is akin to a priceless diamond encrusted in a ring!
God has given you a beautiful face but the moment you open your mouth, it seems like a volcanic eruption. How absurd it is?
Can these eyes turn teary seeing the pain of others? Pray that they become so compassionate. Shreemann Mahaprabhuji says, ‘Jeever doya’|| The heart should be filled with compassion for the entire creation!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
ये नेत्राणि कस्यचित् असुविधां अवगच्छन्ति ते बृहत् भवन्ति। किं अस्माकं नेत्राणि कस्यचित् असुविधां द्रष्टुं शक्नुवन्ति स्म ? किं श्रोतुं शृण्वन्ति परः श्रोतुं न शक्नुते । किं वयं कर्णाः एतावत् उदाराः कृतवन्तः यत् तस्य मनसि यत् अस्ति तत् सहजतया श्रोतुं शक्नुमः? यस्मिन् हृदये ईश्वरस्य निवासः भवितुम् अर्हति तस्य विस्तारः कर्तव्यः भविष्यति।
वंशीतः एकः दृश्यते, वंशी अद्यापि न श्रूयते, सम्भवतः एतत् एव स्यात्। वयं बहिः वेषं धारयन्तः आगताः इति निष्ठा नास्ति, भवन्तः बहिः अपेक्षया वेषं श्रेष्ठाः सन्ति। संसाधनाः सन्ति, व्यवस्थाः सन्ति, उत्तमाः अलङ्कृताः। किन्तु सुन्दरं मुखात् सुन्दरं वचनं निर्गच्छति तदा सुवर्णवलयस्य हीरकं भवति इव दृश्यते।
समग्रः शब्दः अतीव उत्तमः अस्ति, परन्तु उक्ते सति पर्वतात् ज्वालामुखी उद्भूतः इव दृश्यते । अतः कियत् विचित्रं स्यात् ?
तानि नेत्राणि ये कदाचित् कस्यचित् कृते मृदुः भवितुम् अर्हन्ति? तस्मिन् एतावता उदारता भवितुमर्हति। जीवने दया.. श्रीमनमहाप्रभु जी कहते। तस्य हृदि जीवेषु करुणा जागर्तुमर्हति।
परमाराध्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।