भिक्षा और भीख में फर्क है। साधु को भिक्षा दी जाती है, भीख तो भिखारी को दी जाती है। जिसको देने से लेने वाले का उद्धार हो जाय उसको भीख कहते हैं और जिसको देने से देने वाले का उद्धार हो जाय उसको भिक्षा कहते हैं।
संत को भीख नहीं दी जा सकती, भिक्षा ही दी जा सकती है। भीख तो बड़ा आदमी देता है पर भिक्षा तो छोटा आदमी ही दे सकता है। भीख छोटा आदमी ले सकता है, भिक्षा बड़ा आदमी ले सकता है। दोनों में फर्क है। कोई पहुंचा हुआ उपलब्ध हुआ ही भिक्षा ग्रहण कर सकता है।
यज्ञोपवीत में सबसे पहले ब्रह्मचारी को घर के सदस्यों से भिक्षा लेनी पड़ती है। ये बहुत बड़ा अभ्यास है।
भगवान बुद्ध किसी को दीक्षा देते तो सबसे पहले उसको यही अभ्यास कराते थे कोई भी हो, नित्य भिक्षा करनी पड़ेगी।
हमारे ब्रज में संत मधुकरि करते हैं। व्रज मे रहने वाले बड़े बड़े महात्मा जिनके यहाँ हजारों लोगों का भंडारा रोज होता हो पर जब वो भोजन करते हैं तो किसी ब्रजवासी से भिक्षा लेकर करते हैं। पहली रोटी ब्रज रह रहे हैं तो ब्रजवासी से ही भिक्षा लेकर पाओ। उसका आनन्द दूसरा है।
और एक बात कहूँ
भीख में अंतिम रोटी दी जाती है, भिक्षा में प्रथम रोटी दी जाती है। सही बात तो ये है हम लोग भीख तो बहुत दे देते हैं पर भिक्षा नहीं दे पाते। भीख तो हर घर से निकलती है पर भिक्षा नहीं निकल पाती। भिक्षा लेने वाले को घर बुलाने के लिए एक बहुत लम्बा संस्कार चाहिए। एक बहुत लम्बी उपासना चाहिए।
घर का वो माहौल चाहिए तब वो महापुरुष किसी दिन घर में भिक्षा लेने आता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।