श्री राधारमणो विजयते||
शिष्यत्व का दायित्व क्या है? वह मूल बात पर टिका रहे और अनुपस्थिति में भी आचरण की प्रधानता रखे। इतना रखेगा तो जीवन में ढूंढना नहीं पड़ेगा सूर्योदय जैसे होता है वैसे ही सद्गुरु की प्राप्ति होती है। और प्राप्ति हुई है इसका प्रमाण नहीं खोजना पड़ेगा। प्रमाण अंतःकरण प्रवृत्तयाः॥ हमारी आत्मा स्वयं इस बात का संकेत कर देगी कि हम इसके चरणों में शरणागत हो जाए। बस उसके स्वरूप को समझना होगा।
सूर्य दो चीज देता है प्रकाश देता है और ताप देता है। प्रकाश और ताप नहीं हो तो सूर्य का प्रमाण नहीं होगा। प्रकाश और ताप है तो सूर्य का प्रमाण हो जाएगा। बस उसी प्रकार से अगर सद्गुरु तत्वदर्शी हैं, सद्गुरु आचरण प्रधान हैं और सद्गुरु शिष्य हैं तो तुम्हारे भीतर भी वह परमात्मा के परम स्थापना को स्वीकार कर देगा।
फिर क्या करना? माँ और बच्चे के बीच में पोषण होता है, राजा और प्रजा के बीच में पालन होता है, गुरु और शिष्य के बीच बीच में सेवा होती है। भक्त और भगवान के बीच में प्रेम होता है। यह संबंध का स्वरूप है। वाद्य और व्यक्ति के बीच में संगीत होता है, वक्ता और श्रोता के बीच में प्रसंग होता है इसी प्रकार गुरु और शिष्य के बीच में सेवा होती है।
इसलिए गोस्वामी जी ने लिखा-
सेवा धर्म कठोरा।।
सेवा का धर्म बड़ा कठोर है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
II Shree Radharamanno Vijayatey II
What is the duty or the responsibility of the disciple? He should be firm on the basic principle given to him and even when his preceptor is not present, he should follow it diligently. If he follows this much then just like the Sun rises without fail, he will get the Divine grace of his Sadguru. And one will not need to look for any proof! ‘Pramaan antahakarana pravrattayaha: II’
Our atman itself shall give the indication that I should surrender at the Lotus Feet of this Divine personage! You will just need to understand his Swaroopa.
The Sun gives us two things, heat and light! The light and heat itself is the proof of Sun! In the same if the Sadguru is a ‘Tattvadarshi’, he gives importance to the actions or the behaviour and if the Sadguru himself has been a perfect disciple he will prove the eternal presence of the Divine in your heart!
Then what else remains? The mother nourishes her baby, the ruler is supposed to take care of the citizenry of his country, in the same way between Guru and ‘Shishya’ there is the connection of Sewa. Between the Bhakta and the Almighty, there is divine love or Prema. This is the Swaroopa of this Divine relationship. Between the artist and the musical instrument there is music, between the speaker and the listener there is a topic, in the same way between the Guru and his disciple there is Sewa!
That’s why, Goswamiji has written-
‘Sewa dharma ati kathora’ II
Sewa Dharma is very tough or very difficult to follow.
II Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj II
शिष्यत्वस्य किं दायित्वम् ? मूलभूतं लप्य स्वस्य अभावेऽपि आचरणं प्राधान्यं ददातु। यदि भवन्तः एतावत् धारयन्ति तर्हि जीवने अन्वेषणं न कर्तव्यं भविष्यति। यथा सूर्योदयः भवति तथा सद्गुरुमवाप्नोति। न च भवता तत् प्राप्तमिति प्रमाणं अन्वेष्टव्यम्। प्रमाणम् अन्तःकरणप्रवृत्तिः अस्माकं आत्मा एव तस्य चरणयोः समर्पणं कर्तव्यमिति सूचयिष्यति। भवद्भिः केवलं तस्य स्वरूपं अवगन्तुं भवति।
सूर्यः द्वे ददाति – प्रकाशः उष्णः च । यदि प्रकाशः तापः च न स्यात् तर्हि सूर्यस्य प्रमाणं न स्यात् । यदि प्रकाशः तापः च स्यात् तर्हि सूर्यस्य प्रमाणं भविष्यति। तथैव यदि सद्गुरुः तत्वदर्शी, सद्गुरुः आचरणस्य अग्रणी, सद्गुरुः च शिष्यः, तर्हि सः भवतः अन्तः ईश्वरस्य परमप्रतिष्ठाम् अपि स्वीकुर्यात्।
अथ किं कर्तव्यम् ? मातृबालयोः पोषणं, राज्ञः प्रजायाः च पोषणं, गुरुशिष्ययोः सेवा च अस्ति। भक्तस्य ईश्वरस्य च प्रेम अस्ति। इति सम्बन्धस्वभावः । वाद्यपुरुषयोः मध्ये सङ्गीतं भवति, वक्तुश्रोत्रयोः मध्ये सन्दर्भः भवति, तथैव गुरुशिष्ययोः सेवा भवति।
अत एव गोस्वामी जी लिखितवान्-
सेवा धर्मः च कठोरः अस्ति।
सेवाधर्मः अतीव कठोरः अस्ति।
परमाराध्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज।।.