श्री राधारमणो विजयते
वास्तव में जीव माया के आकर्षण में अपने जीवन में प्रभु को बुद्धि रूपी तर्क का वनवास दिया हुआ है। हम लोगों ने उसे वनवास ही दिया है आज का नवयुवक भगवान को वनवास दे देता है जब तर्क करता है कहाँ हैं भगवान…..? इससे बड़ा वनवास हो सकता है….?
जब तक ईश्वर तर्क में रहेगा तब तक समझना वन में रहेगा। अयोध्या का आसन श्रद्धा भक्ति का आसन है। वो हृदय में बैठता है हम बुद्धि से खोजते हैं। भगवान हृदय में बैठा हमारी प्रतीक्षा करता है और हम बुद्धि में बैठे उसकी प्रतीक्षा करते हैं। हम बुद्धि के तर्क में खोजते हैं और वो हृदय के समर्पण में बैठा है।
राम अयोध्या के अधिपति है और हम बुद्धि के तर्क रूपी वनवास उसे दे देते हैं… हम सबके जीवन में भी ये घटता है। हम सबके पास अवकाश है ये हृदयासन खाली है तर्क की वजह से राम बुद्धि पर खड़े हैं। आसन खाली रहा तो मालूम नहीं इसपर कब माया अपना अधिपत्य कर ले। इसलिए
सद्गुरु का आश्रय लेकर जब तिलक लगाया जाता है ये तिलक क्या है भगवान के चरणचिह्न का स्वरूप है। एक प्रकार से चरणचिह्न स्थापित हुए। अपनी इस हृदय की अयोध्या के ऊपर गुरु का आश्रय लेकर भगवान के दिव्य भाव स्थित हो जाय तो संसार की यात्रा सफल हो जाएगी।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
In fact, the Jeeva is disillusioned by Maya and has exiled his intellect to the woods instead of surrendering it to God. Today’s youth has also exiled the Divine when he enters into unnecessary argument about the Him! Can there be any bigger exile than this very argument, where is God?
As long as God is the subject matter of an argument, think that He is in exile. The throne of Ayodhya is the seat of ‘Shraddha and Bhakti’ or faith and devotion. He resides in our hearts and we wait for Him in the intellect! We argue about His very existence while He waits for our surrendered hearts!
Shree Rama is the ruler of our Ayodhya and we exile Him by our senseless arguments…. this is the story of most of us. We seem to have so much time to waste because we have kept our hearts empty, and the Lord is standing on the doorway of our intellect. If we leave this seat empty then who knows when Maya will enter and occupy it? So;
Taking the refuge of our Sadguru when we apply the Tilak on our forehead then this is the symbol of the Divine Lotus Feet of the Lord. In a way, His footprints have been planted on your forehead. Taking the refuge of our Sadguru when the ‘Bhava’ or the Divine feeling is established in the Ayodhya of our hearts, this life journey will become fruitful!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
वस्तुतः मायायाः आकर्षणात् भगवता जीवने तर्करूपेण भगवन्तं निर्वासितं कृतम् । वयं तस्मै निर्वासनं दत्तवन्तः। अद्यतनः युवकः ईश्वरं निर्वासयति यदा सः तर्कयति, ईश्वरः कुत्र अस्ति? अस्मात् बृहत्तरः निर्वासनः भवितुम् अर्हति वा ?
यावद् ईश्वरः तर्के तिष्ठति तावत् अवगमनं वने एव तिष्ठति। अयोध्यापीठं भक्तिभक्तिपीठम्। हृदये उपविशति वयं बुद्ध्या अन्वेषयामः। ईश्वरः अस्मान् हृदये उपविष्टान् प्रतीक्षते वयं च बुद्धौ उपविष्टान् प्रतीक्षामः। बुद्धियुक्तौ तं अन्वेषयामः हृदयसमर्पणे च निवसति।
रामः अयोध्यायाः शासकः अस्ति अतः वयं तस्मै बुद्धितर्करूपेण निर्वासनं दद्मः… अस्माकं सर्वेषां जीवने अपि एतत् भवति। अस्माकं सर्वेषां अवकाशः अस्ति, एतत् हृदयपीठं तर्ककारणात् शून्यं भवति, रामः बुद्धेः उपरि तिष्ठति। यदि आसनं रिक्तं तिष्ठति तर्हि माया कदा तत् गृह्णीयात् इति न ज्ञायते। अतः
सद्गुरुमाश्रित्य यदा तिलकं प्रयोज्यते तदा कः अयं तिलकः ? ईश्वरस्य पदचिह्नस्य रूपम् अस्ति। एकप्रकारेण पदचिह्नानि स्थापितानि आसन् । यदि गुरुस्य आश्रयं गृहीत्वा भवतः हृदयस्य अयोध्यायाः उपरि ईश्वरस्य दिव्यभावना स्थापिता भवति तर्हि जगतः यात्रा सफला भविष्यति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराजा:।।