श्री राधारमणो विजयते
दुनिया में चीज नई है प्यास वही है, अध्यात्म में चीज वही है, प्यास नई है। इस चीज का परिवर्तन ही तो भक्ति है। पिबत्।। पीते रहो। पीते रहो। तृप्त मत हो जाना।
महामंत्र वही है पाँच सौ साल से चल रहा है। पाँच सौ साल से प्रकाशित हुआ है, पाँच हजार वर्ष से उदित हुआ है। करते जाओ उसमें तृप्ति कभी हो सकती है क्या? जितना कर लो उतना कम है।
जैसे सीढ़ी की शेप और साइज एक सी होती है पर सीधी की स्टेप एक सी होती है। एक सीढ़ी दूसरी सीढ़ी के ऊपर होती है। तीसरी उससे ऊपर, चौथी उससे ऊपर। साइज और नापतोल सब का एक सा होता है। ऐसे ही
महामंत्र के 16 अक्षर एक से ही होते हैं। उसकी साइज एक सी होती है। पर हर बार किए जाने पर उसकी स्टेप एक सी नहीं होती है। वह ऊर्ध्वगमन करती है।
इसलिए पीते रहो एक बार नहीं। प्यास है बारंबार पीते रहो।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
In the world the things are new but the thirst is the same whereas in spirituality the thing is the same but the thirst is different. This difference is what is Bhakti. ‘Pibbat’. Keep on drinking, go on drinking. Don’t get satisfied or quenched.
The Mahamantra is the same, going on for the last five hundred years. It has been revealed five hundred years earlier but arisen five thousand years ago! Go on chanting or repeating, can you ever be satisfied? You may do as much as you wish, it will never be enough!
The size and the shape of the stairs are the same but they fall in line, one after another. The first step followed by the second, the third and so on. The shape and measurement is the same. Similarly;
The 16 letters of the Mahamantra remain the same. Their size is also the same. But after you do it once, the next step isn’t the same. It gains ascension or elevation!
That is why, just keep on drinking, not just once! You are thirsty, so go on drinking!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||