अगर आपको ब्रजवास करना है तो उसके लिए अभ्यास करना पड़ेगा सबसे पहले परनिंदा से निवृत्ति।
अगर सच्ची बात जाननी हो तो यहाँ का अनुभव लिया जा सकता है। यह बाहर का परकोटा है जिसे पकड़ना पड़ेगा हिंसा की निवृत्ति, परनिंदा की निवृत्ति।
दोनों शब्द बनाए ब्रह्मा जी ने, निंदा और प्रशंसा। मैंने बहुत बालकपन में ही यह पढ़ लिया था कि निंदा लेने में हितकारी है, प्रशंसा देने में हितकारी है। यह दोनों व्यवस्था बनी ही इसके लिए है।
वह अमृत होती है निंदा जो ले ली जाए और अगर की जाए तो जहर हो जाती है और वही प्रशंसा जहर की तरह होती है जो आस्वादन की जाती है।
‘‘प्रतिष्ठा सूकरी विष्ठा’’ कहा है हमारे आचार्यों ने। और वही प्रशंसा अमृत की तरह हो जाती है अगर वितरण की जाय। क्या बात है आपकी!!
इसलिए बृजवास करना है तो एक बात कही, परनिंदा से निवृत्ति। हमारे यहाँ के ऐसे-ऐसे साधक कह रहे हैं-
मो सम कौन अधम खलु कामी॥
परनिंदा से बचना पड़ेगा। कोशिश करिए वो ना हो।
॥परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।