श्री राधारमणो विजयते
माखन हर गोपी के घर में से चुर जाता है पर उस-उस गोपी के घर में से चुरता है जो रोज माखन बनती है।
घड़ा मन का तुम्हारे पास है, नेति माला की तुम्हारे पास है, मथनी श्रद्धा की तुम्हारे पास है, महामंत्र का दुग्ध भी शास्त्रों की गैया से तुमको प्राप्त हो गया है। बस एक काम करो
इस माला की नेति से, श्रद्धा की मथनी को, हृदय के घड़े में महामंत्र के दुग्ध को डालकर डाल करके तुम चलाना शुरु करो, चलाना शुरू करो, मंथन करना शुरू करो।
धीरे-धीरे जितने छाछ हैं, जितने भी विकार हैं सब निकलना शुरू कर देंगे। निकल कर खत्म हो जाएंगे और खुद ब खुद भाव का प्यार का माखन ऊपर तैरने लग जाएगा।
तुमको घड़े में से मक्खन निकालने में देर लगेगी कि माखनचोर उससे पहले दरवाजे पर आकर खड़ा हो जाएगा।
बस मक्खन तैयार करना है।
मक्खन बनाने का एक अर्थ है- उसको देने का, उससे लुट जाने का मन बना लेना।
गुरुदेव कहते हैं- काम हो जाएगा। मन तो बना लो अपना, तैयारी तो कर लो अपनी। आर यू रेडी? तुम तैयार हो? मन बन गया है? मन बन गया है तो सब काम हो जाएगा।
माखन बना लो मतलब इतना सा काम करो- एक दिन वो जाकर के इस दुनिया की सारी वासना को लूट करके ले जाए और उसके भीतर दबे हुए तुम्हारे हृदय को लूट करके तुम्हारे प्यार को लूट करके ले जाए। उससे लुटने का मन तो बना लो।
और वह मन हो गया तो न तन की परवाह होगी, ना धन की परवाह होगी, ना यौवन की परवाह होगी, ना जीवन की परवाह होगी। प्रवाह होगी तो केवल एक चीज की; मदनमोहन की परवाह होगी।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
‘Maakhan’ was there in each Gopi’s house but it would be stolen only from the house of the one who herself had become ‘Maakhan’.
The pot of your mind is with you, the ‘Neti’ or the rope of the Mala is in your hand, the ‘Mathani’ or the churner of Shraddha is there with you, the milk in the form of the Mahamantra has been given by the cow in the form of the scriptures. Just do this;
With the rope of the Mala, the churner of Shraddha, churn the milk of Mahamantra and go on churning it in the pot of your mind.
Slowly and gradually, all the impurities will start coming out leaving the buttermilk behind and pure butter in the form of devotional love will start floating on the surface.
You might take sometime to take out the ‘Maakhan’ from the pot but the ‘Maakhan-Chor’ will be at your doorstep before that.
Only the butter has to be ready!
One meaning of making ‘Maakhan’ is – give it to Him, open yourself to become suitable to be stolen!
Shree Gurudev says, your work will be done or accomplished. Makeup your mind, do all the necessary preparations. Are you ready? Have you madeup your mind? If your mind is madeup then your work will be done!
Make ‘Maakhan’ means just do this much- one day He will go and take away all the Vaasanas of the world and shall finally take away your mind and your Divine Love! Just be ready to get stolen by Him!
If you are ready then you won’t be bothered about your body or your wealth or your youth and neither your life. If at all you will be bothered, it will be Shree Madan Mohan and nothing else!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
प्रत्येकं गोपीगृहात् घृतं अपहृतं भवति, परन्तु तेषां गोपीनां गृहात् अपहृतं भवति ये प्रतिदिनं घृतं निर्मान्ति।
भवतः मनसः घटः अस्ति, भवतः नेति माला भवतः अस्ति, भवतः श्रद्धा मथनी अस्ति, भवतः अपि महामन्त्रस्य दुग्धं शास्त्रस्य गैयात् प्राप्तम्। केवलं एकं कार्यं कुरुत
अस्याः मालास्य मार्गदर्शनेन श्रद्धायाः मथनं क्षोभयितुं आरभत, महामन्त्रस्य दुग्धं हृदयस्य कलशे पातयित्वा, क्षोभं आरभत, मथनं आरभत।
क्रमेण सर्वाणि अशुद्धयः, दुर्गुणाः च बहिः आगन्तुं आरभन्ते । बहिः आगत्य स्वयमेव समाप्तं भविष्यति तथा च स्वयमेव प्रेमस्य घृतं उपरि प्लवितुं आरभेत।
घटात् घृतं बहिः निष्कासयितुं पूर्वं घृतचोरः आगत्य द्वारे तिष्ठति ।
केवलं घृतं सज्जीकर्तुं भवति।
घृतनिर्माणस्य एकः अर्थः अस्ति यत् तत् दातुं मनः कृत्वा तस्य लुण्ठनं करणीयम् ।
गुरुदेव कहते- कार्य हो जाएगा। मनः कृत्वा, सज्जतां कुरुत। भवान् सज्जः अस्ति वा ? भवान् सज्जः अस्ति वा ? किं भवता मनः कृतः ? यदि भवतः मनः निर्मितं तर्हि सर्वं भविष्यति।
घृतं कुरु अर्थात् एतत् अल्पं कार्यं कुरु – एकस्मिन् दिने एतत् गत्वा अस्य जगतः सर्वान् कामान् लुण्ठयिष्यति, तव अन्तः निहितं हृदयं लुण्ठयिष्यति, भवतः प्रेम च लुण्ठयिष्यति। तं लुण्ठयितुं मनः कुरु।
यदि च भवतः तत् मनः अस्ति तर्हि भवतः शरीरस्य चिन्ता न भविष्यति, न धनस्य, न यौवनस्य, न भवतः जीवनस्य चिन्ता भविष्यति। एकस्यैव वस्तुनः प्रवाहः भविष्यति; मदनमोहनस्य परिचर्या भविष्यति।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥