श्री राधारमणो विजयते ||
जो साधन तुमने परमात्मा के लिए कर लिया फिर वो साधन क्यों तुम दुनिया को रिझाने के लिए कर रहे हो ? इसलिए साधु अब अपनी माला को भी दुनिया से छुपा लेता है, अपनी सेवा को भी छुपा लेता है छुपा लेता है ढक लेता है।
अभी ये साधन सबके लिए नहीं है। शंकर गुफा में बैठते हैं तो अलंकारों से सुसज्जित होते हैं और बारात में जब नन्दी पर बैठकर जाते हैं तो नग्न जाते हैं। यही तो बात है
साधक सबके सामने खुला जाता है अकेले में सज जाता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Whatever you have done to woo the world, why are you doing the same to woo the Divine? That’s why, the Sadhu tries to hide the Mala from the world, even his Sewa, he tries to conceal or cover it!
These means are not meant for everyone. When Lord Shiva sits in the cave all alone, He is adorned by His ornaments but when He is going in His marriage procession, He goes unclothed. This is what it is;
The true Sadhak goes as he is in public but when he is alone or in solitude, he adorns or decorates himself!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यत् साधनं त्वया ईश्वरस्य कृते कृतम्, तर्हि त्वं किमर्थं तानि कार्याणि जगतः प्रीतिं कर्तुं करोषि? अत एव साधुः इदानीं जगतः माला गोपयति, सेवां गोपयति, गोपयति, आच्छादयति।
सम्प्रति एतत् साधनं सर्वेषां कृते नास्ति। शङ्करः गुहायां उपविष्टः सति अलङ्कारैः अलङ्कृतः भवति, नन्दी उपविष्टः शोभायात्रायां गच्छन् नग्नः गच्छति। तत् एव विषयः
साधकः सर्वेषां पुरतः उद्घाट्य एकान्ते वेषं धारयति।
..परमराध्या: पूज्या: श्रीमन्ता: माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्या: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ..