
||Shree Radharamanno Vijayatey||
Guru as the mother influences our life in three ways. Three types of Mothers affect the child’s life!
The first category of mother is like a bird!
This Guru protects the disciple like a bird! What does the new-born of the bird do? The chicks keep on wriggling in the nest while the mother bird has gone far away in search of some food to feed her hatchlings. At times, she keeps the poisonous worms in her beak, she deftly cuts it open, removes the poisonous portion and then bites it into tiny bits and carrying them flies back to her nest and feeds the hungry chicks!
This is one type of Guru, who is like the mother bird! He tells his disciple; you sit quietly and I shall fly around for your sake!
He travels through the thick forests of the scriptures and picks out selected Sutras and in the form of Bhajan, puts it into the mouth of his disciple. You don’t have to worry about anything. You be as what you are! I shall fly around and gather the Sutras from the scriptures. I shall first chew upon them, mull over them and once I am convinced that they are now ready for you to follow and act upon, transfer them to you.
A ‘Samarth’ Guru, picks up the sutras from the Shastras and once he is sure of their adaptability, gives them to you!
In the case of the Guru who acts like the bird, undoubtedly makes it as simple as he can for you but it becomes your duty to follow and abide by it! You will have to eat to fill your stomach! He creates all the necessary facilities to make it easy for you!
If you cannot do much but at least you can come to Shree Dham Vrindavan at least once a year or you can do one Mala in the morning! He simplifies what might be a very tough proposition!
The mother bird keeps a watch till such time as the hatchling doesn’t develop wings. It looks after only till then. The day the chicks develops their own wings, it just pushes them to fly! You have your own path to traverse. I have nourished you, now fly in this open sky and experience the universe!
Shree Ramkrishna Paramhansa showered his benevolence on Swami Vivekananda and gave him such wings to fly that he flew not only in India but covered the Western world as well! Many great men are like this!
In the case where the Guru is like the bird, the disciple does not have choice as to what he/she can eat or not! The chick doesn’t bother about the taste. It does not know the taste of what has been put in its mouth but only knows the taste of the mother bird or Guru-Mukh! The bird mixes up everything whatever she gets and just puts it in her chick’s mouth!
One form of Guru as mother works like this! Whether you like it or not, he comes and makes you practice austerities by force or in a way compels you to practice. Even though the disciple might not be ready or willing but with his own efforts, lovingly, affectionately and if the need be even by being a bit strict enlightens your heart with ‘Shree Krishna Prem’!
He showers his grace even upon the one who might not be qualified or is unworthy! That is why;
Who is coming at the doorstep of the Saint, please do not get into this quagmire of any sort of assesment! Be sure that only a sick person goes to see the doctor! The one who has come, maybe the person is non-deserving or even might be a wretch but when he/she has come in the refuge of the Saint and is showered by his benevolent unconditional grace, it completely changes the person instantly and when he/she comes out, you find that a totally new person has come, whose dormant consciousness has been awakened!
He establishes the connection with the divine grace! Even if the disciple is unworthy, the Guru’s grace makes him/her worthy!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
गुरुरूपेण माता अस्माकं जीवनं त्रिधा प्रभावितं करोति। त्रिविधमातृणां बालस्य उपरि प्रभावः भवति ।
पक्षी एकस्य श्रेणीयाः माता भवति ।
गुरुः शिष्यं पक्षिवत् रक्षति। शिशुः पक्षिणः किं करोति ? नीडे उपविश्य सः निरन्तरं दुःखं प्राप्नोति, पक्षी गत्वा स्वस्य बालकस्य कृते उपयोगी धान्यानि चिनोति । कदाचित् सा विषकीटं मुखे स्थापयति, छित्त्वा तस्य विषभागं विच्छिन्दति, ततः चर्वयित्वा भक्ष्यं करोति ततः स्वनीडम् आगत्य वेदनाग्रस्तानां पिण्डिकानां मुखं स्थापयति।
एकः गुरुः एवम्। यस्य स्वभावः पक्षिवत्। शिष्यमाह- त्वं उपविष्टः तिष्ठ, उड्डीयेम।
सः स्वयं शास्त्रवने उपयोगिनो आचारसिद्धान्तान् सङ्गृह्य मौनेन स्वस्तोत्ररूपेण शिष्यस्य मुखे स्थापयति । भवतः चिन्तायाः आवश्यकता नास्ति। यथा भवसि तथा तिष्ठ। वयं उड्डीय बृहत् शास्त्रेभ्यः स्रोतः आनयिष्यामः, ततः तान् पचयित्वा, तान् व्यावहारिकान् कृत्वा, भवतः विषये संशोधनं करिष्यामः। एते साधवः विश्वे भ्रमणं कृत्वा भवतः कृते व्यावहारिकं कुर्वन्ति।
पक्षी इव समर्थः गुरुः शास्त्रेषु सूत्राणि सम्यक् चर्वयित्वा भवतः मुखं स्थापयति।
पक्षिणा सह गुरुः तस्मिन् एकं वस्तु अस्ति, सः सुलभं करोति परन्तु भवता स्वयमेव व्यवहारः कर्तव्यः। भवता भोजनं कर्तव्यं भविष्यति। भवन्तः चर्वितुं प्रवृत्ताः भविष्यन्ति। सः भवतः उपयोगव्यवस्थां अवदत्।
यदि भवन्तः बहु कर्तुं न शक्नुवन्ति तर्हि भवन्तः न्यूनातिन्यूनं वर्षे एकवारं वृन्दावनम् आगन्तुं शक्नुवन्ति, यदि भवन्तः अन्यत् बहु कर्तुं न शक्नुवन्ति तर्हि भवन्तः न्यूनातिन्यूनं प्रातः उपविश्य माला परिवर्तयितुं शक्नुवन्ति। सः गम्भीरं वाद्यं सरलं कृतवान् ।
पक्षिणः स्वामी शिशुं यावत् तस्य पक्षाः न वर्धन्ते तावत् दृष्टिम् आचरति । तावत्पर्यन्तं पोषयति। यस्मिन् दिने तस्याः पिल्लाः पक्षं वर्धयन्ति, तस्मिन् दिने सा वदति – त्वं उड्डीयते! भवतः स्वकीयः मार्गः अस्ति। अहं त्वां पोषितवान्। उड्डीय जीवने आकाशस्य अनुभवं कुरुत।
रामकृष्णपरमहंसः स्वामी विवेकानन्दस्य आशीर्वादं दत्तवान् ततः तस्मै तादृशान् पक्षान् दत्तवान् यत् स्वामी विवेकानन्दस्य उड्डयनसमये तस्य पक्षाः न केवलं भारते अपितु सम्पूर्णे विश्वे प्रसरन्ति स्म । कति महापुरुषाः एवम्?
पक्षिणः स्वामिनः अन्यः स्वभावः अस्ति, कुक्कुटः स्वरुचितः अन्नं न खादति। न रसं मन्यते। कुक्कुरः अन्यत् किमपि न आस्वादयति, कुक्कुटः पक्षिणः मुखं आस्वादयति। पक्षी सर्वेषां भोजनानां पिष्टं कृत्वा बलात् पिण्डिकायाः मुखं पूरयति ।
गुरुरूपेण माता एवं कार्यं करोति। विश्वासः वा न वा, अभ्यासं बलात् जीवने आनयति। शिष्यस्य प्रति अरुचिः अस्ति किन्तु गुरुः स्वस्य प्रसादेन क्रमेण श्रीकृष्णस्य प्रेमं तस्मिन् प्रवर्तयति।
अयोग्यान् अपि आशीर्वादं ददाति। अतः
साधुद्वारे कः आगच्छति इति दुविधायां कदापि न फसन्तु। केवलं रोगी जनाः एव चिकित्सालयं आगच्छन्ति। यत् किमपि आगच्छति तत् दुष्टं भवेत्, परन्तु किञ्चित्कालं यावत् कस्यचित् साधुस्य आश्रयं कृत्वा तस्य आशीर्वादाः तस्य उपरि वर्ष्यन्ते, ततः पुनरागच्छन्तं व्यक्तिं अवलोक्य तस्य अन्तः कथं चैतन्यस्य विकासः अभवत् इति द्रष्टुं शक्यते
सः प्रसादं बलात् अन्वेषयति। शिष्यस्य मताधिकारविहीनोऽपि गुरुः तस्य अन्तः अधिकारं प्रयच्छति।
परम पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक जी महाराज।।
गुरु रूपी मैया तीन प्रकार से हमारे जीवन में प्रभावित होती हैं। तीन प्रकार की माता का प्रभाव बालक के ऊपर होता है।
एक दर्जे की मैया होती है चिड़िया।
एक गुरु चिड़िया की तरह अपने शिष्य की रक्षा करता है। चिड़िया का बच्चा क्या करता है? घोसले में बैठे-बैठे तड़पता रहता है, चिड़िया दूर जाती है अपने बालक के उपयोगी दाने को चुनती है। कभी-कभी विषैले कीड़े को मुंह में रखती है, उसको काटकर उसके विषैले अंश को अलग करती है फिर उसे चबाकर खाने योग्य बनाती है और फिर अपने घोंसले में आकर तड़प रहे अपने चूजों के मुंह में डाल देती है।
एक गुरु ऐसा होता है। जिसका स्वभाव चिड़िया जैसा होता है। शिष्य से कहता है- तू बैठा रह, हमको उड़ने दे।
वह स्वयं शास्त्रों के वनों में से आचरण के उपयोगी सूत्रों को ग्रहण करके चुपचाप अपने भजन की दृष्टि से अपने शिष्य के मुख में डाल देता है। तुझे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं। तू जैसा है वैसे रह। हम उड़ कर जाएंगे बड़े-बड़े शास्त्रों के सूत्रों को लाकर फिर उसकी जुगाली करके उसको आचरणीय बनाकर तुममे अनुसंधान कर देंगे। यह दुनिया भर में घूम-घूम कर संत आपके लिए आचरणीय बना रहे हैं।
समर्थ गुरु चिड़िया की तरह शास्त्र में उत्पन्न सूत्रों को बढ़िया तरह से चबा करके तुम्हारे मुख में दे देता है।
चिड़िया वाला जो गुरु है उसमें एक बात है वह सरल तो कर देता है पर आचरण तो तुमको ही करना होता है। खाना तुमको पड़ेगा। चबाना तुमको पड़ेगा। वह तुम्हारे उपयोग व्यवस्था बताया।
ज्यादा कुछ नहीं कर सकता तो वर्ष में एक बार वृंदावन तो आ ही सकता है, ज्यादा कुछ नहीं कर सकता तो सुबह बैठकर एक माला तो फेर ही सकता है। उसने गंभीर साधन को सरल बना दिया।
चिड़िया वाला गुरु तब तक नजर रखता है जब तक बच्चे के पंख न निकल आए। तभी तक पोषण करता है। जिस दिन उसके चूजों को पंख निकल आते हैं वो कहती है- तू उड़! तेरा अपना मार्ग है। मैंने तेरा पोषण किया है। उड़ कर अपने जीवन में आसमान का अनुभव कर।
रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद के ऊपर कृपा करी और फिर ऐसा पंख लगा दिया के स्वामी विवेकानंद जी उड़े तो केवल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में उनके पंख फैल गए। कितने महापुरुष ऐसे हैं।
चिड़िया वाले गुरु का एक और स्वभाव होता है, चूजा अपनी रुचि अनुसार भोजन नहीं करता। वह स्वाद का विचार नहीं करता। चूजे को अन्य का स्वाद नहीं आता है, चूजे को चिड़िया के मुख का स्वाद आता है। चिड़िया सारे आहार का घोल बना देती है और जबरदस्ती चूजे के मुंह में ठुसाती है।
एक गुरु रूपी मैया ऐसे ही काम करती है। माने ना माने, वह जीवन में जबरदस्ती जीवन में अभ्यास लेकर आती है। शिष्य के प्रति अरुचि है पर गुरु अपनी कृपा की रुचि से धीरे-धीरे उसके अंदर श्रीकृष्ण प्रेम का संधान करता है।
अयोग्य के ऊपर भी कृपा करता है। इसलिए
संत के द्वार पर कौन आ रहा है इस चक्कर में कभी मत फसना। अस्पताल में बीमार आदमी ही आता है। जो आता है हो सकता है वो खराब हो सकता है पर कुछ देर संत का आश्रय लेकर उसकी कृपा जब उसपर बरस जाए और फिर लौटने वाले व्यक्ति का अवलोकन करना कि कैसे उसके भीतर चेतना विकसित हुई है।
वह जबरदस्ती कृपा का अनुसंधान करता है। शिष्य अनाधिकार हो गुरु उसके भीतर अधिकार प्रदान करता है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
