
श्री राधारमणो विजयते
हीरा अगर तुमने बिना डिब्बी के रख दिया तो नजर ज्यादा पड़नी चाहिए। सावधानी ज्यादा रहनी चाहिए। अगर मन आगे है तो फिर ज्यादा रिस्क है। अगर हीरा खुला पड़ा है तो घर के बाहर चौकीदारों को नियुक्त कर देना जरूरी है। अगर चौकीदार होंगे तभी रखे हुए हीरे की निगरानी रखेंगे और उसको बचा पाएंगे। तदनुसार ही
अगर बुद्धि के समझ के संश्लेष को (डिब्बी को) अगर तुमने मन से निकाल के एक पवित्र मन को सामने धर दिया है तो एक काम करो गुरु को पहरेदार की तरह तुम्हें सामने खड़ा करना पड़ेगा।
वही डंडा लेकर चलेगा जो तुम्हारे मन को बचा सकता है। चोर आएंगे माया का रूप धारण करके, वासनाएं डकैतों के रूप में घुसी चली आएंगी और अगर मन इतना बाहर रखा हुआ है तो तुम रिस्क में हो।
कृष्ण रिस्क से ही प्राप्त होता है। ऐसे ही नहीं मिलता।
मुसीबतों में जाना पड़ेगा। कूदना पड़ेगा। रिस्क में ही तो प्लेजर है। जहाँ रिस्क नहीं है वहाँ प्लेजर क्या है?
कांटों से बचकर के जो गुलाब तक पहुँचा है उसने दूसरे मजे को प्राप्त किया है। जिसने कांटों को ही काट दिया गुलाब तक पहुँचने के लिए, वो समझदार रहा है, वो इंटेलिजेंट रहा है पर गुलाब कै महत्व को इतना नहीं जान पाएगा, जितना कांटो से बचकर गुलाब तक जो पहुँच पाया है।
इसलिए उस समय अगर ऐसा पहरेदार तुम्हारे पास होगा। ऐसी पहरेदारी करने लायक इस ब्रह्माण्ड में या तो तुम्हारे नजदीक बैठा तुम्हारा गुरु है और अगर न हो तो परवाह मत करना, गोविन्द है
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
वो बैठा हुआ है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
If you leave a diamond in the open then it attracts more attention! It will need more precautions and proper security. If your mind is racing ahead, it is risky. Like in a jewellery shop where the diamond pieces are on display, tight security is required inside as well as outside. If proper security is in place then the jewels are safe! In the same way;
With the proper understanding of your intellect, if you take out your pure and clean mind out from the mundane and place it outside then please appoint your Guru as the security guard to protect it.
He will guard it holding a stick in the hand which will protect it. The theives will come in the guise of Maya, the sense pleasures will attack you like dacoits and if your mind is fully exposed then it is very risky.
If you are willing to take risks then you can attain Lord Krishna. He is not so ordinary or cheap that you can get Him just like that.
You should be prepared to cross over the obstacles. You may need to jump over! In fact there is an element of thrill in the risks! Where there is no risk, it becomes dreary or dull!
The one who has got the Rose finding a way out of the thorns has experienced a different joy! The one who has removed the thorns intelligently can get the Rose very easily but he will not understand the value as much as the one who has plucked it inspite of the thorns and yet protected himself!
That is why you need a watchman just like the thorns. Such a security can only be provided by your Guru, in case he is not there, please don’t worry, Shree Govind is there, ‘Manmana bhava maddbhakto maddyaji maam namaskuru’!
“Don’t despair, I am there!”
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
यदि भवन्तः हीरकं पेटीरहितं धारयन्ति तर्हि तत् अधिकं दृश्यमानं भवेत्। अधिकं सावधानता भवितुमर्हति। यदि मनः अग्रे अस्ति तर्हि अधिकं जोखिमम् अस्ति। यदि हीरकं मुक्तं शयितं तर्हि गृहात् बहिः प्रहरणकर्तृणां नियुक्तिः आवश्यकी भवति। यदि प्रहरणकर्तारः सन्ति तर्हि एव ते रक्षितं हीरकं प्रति दृष्टिपातं करिष्यन्ति, तस्य त्राणं कर्तुं च शक्नुवन्ति। तदनुसारमेव
यदि भवता मनसा बुद्धिबोधस्य संश्लेषणं (पेटी) अपसारयित्वा पुरतः शुद्धं मनः स्थापितं तर्हि एकं कार्यं कुरुत, गुरुः भवतः पुरतः रक्षकः इव स्थातव्यः भविष्यति।
यः तव मनः तारयितुं शक्नोति सः एव यष्ट्या सह चरति। चोराः मायारूपेण आगमिष्यन्ति, कामाः डाकूरूपेण आगमिष्यन्ति तथा च यदि मनः एवं बहिः स्थापितं भवति तर्हि भवन्तः जोखिमे सन्ति।
कृष्णः जोखिममात्रेण सिद्ध्यति। न एवमेव लभ्यते ।
विपत्तौ गन्तव्यं भविष्यति। कूर्दनं कर्तव्यं भविष्यति। सुखं जोखिमे एव निहितम् अस्ति। यत्र जोखिमः नास्ति तत्र किं भोगः ?
कण्टकेभ्यः पलायितः गुलाबं प्राप्तः स अन्यत् सुखं प्राप्तवान्। यः कण्टकान् छिनत्ति गुलामप्राप्त्यर्थं सः बुद्धिमान् अभवत्, सः बुद्धिमान् अभवत्, परन्तु सः कण्टकपरिहारेन गुलाबं प्राप्तुं समर्थः इव गुलाबस्य महत्त्वं न अवगन्तुं शक्नोति .
अतः यदि भवतः तस्मिन् समये तादृशः रक्षकः अस्ति। अस्मिन् विश्वे वा भवतः समीपे उपविष्टः भवतः गुरुः अस्ति यः एवं रक्षणं कर्तुं समर्थः अस्ति, यदि न तर्हि चिन्ता मा कुरुत, गोविन्दः अस्ति।
मन्मना भव मद्भक्तो मद्यजी माँ नमस्कुरु।
सः उपविष्टः अस्ति।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज ॥
