वृंदावन वास के लिए एक बात कही- अनिवेदित् वस्तु कभी नहीं खानी। असन व्यसन ना भी हो सके तो कम से कम भोजन में यह बात जरूर ध्यान में रहे। अनिवेदित वस्तु का त्याग। और एक बात कही- सर्वथा किसी ने किसी साधन भजन के रूप में लगे रहना।
भजन का अर्थ होता है-
भज धातु सेवायाम्॥
आप कोई भी कृत्य क्यों नहीं कर रहे हो, उसके मूल में परमात्मा का अनुभव हो। आप उसी रेल, उसी साधन, उसी गाड़ी से आए वृंदावन, पर आपकी यात्रा में उल्लास दूसरा था क्यों कि लक्ष्य राधारमणजी का दर्शन था।
उसी रास्ते से आप सैकड़ों बार अलग-अलग दिशा में निकलते होंगे पर उसका लक्ष्य ठाकुरजी हैं तो वह यात्रा भी भजन ही हो गया। वह हर कृत्य जिसका उद्देश्य ठाकुरजी हो जाय, वह भजन ही है। चाहे वो कोई सा भी कृत्य क्यों ना हो।
॥परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
वृन्दावनवासस्य कृते एकं वचनं उक्तवान् – अयाचितं वस्तु कदापि न खादतु। मुद्राव्यसनं नास्ति चेदपि न्यूनातिन्यूनं भोजनकाले एतत् वस्तु मनसि अवश्यं स्थापयितव्यम् । अयाचितवस्तूनाम् त्यागः। एकं च उक्तवान् – सदा कश्चित् स्तोत्ररूपेण प्रवृत्तः भवेत्।
स्तोत्रार्थः- १.
भज धातु सेवा।
किमर्थं त्वं किमपि कर्म न करोषि, तस्य मूले ईश्वरस्य अनुभवः भवितुमर्हति। त्वं वृन्दावनम् एकेन रेलयानेन, समानेन साधनेन, समानेन यानेन आगतवान्, परन्तु तव यात्रायां आनन्दः भिन्नः आसीत् यतः लक्ष्यं राधारमञ्जीं द्रष्टुं आसीत्।
भवद्भिः शतशः एकमेव मार्गं भिन्न-भिन्न-दिशि गतं स्यात्, परन्तु यदि तस्य लक्ष्यं ठाकुरजी अस्ति, तर्हि सा यात्रा अपि स्तोत्रं जातम्। प्रत्येकं कर्म यस्य प्रयोजनं ठाकुरजी भवेत्, तत् स्तोत्रम्। यद्यपि कीदृशं कर्म भवति।
॥ परमराध्य: पूज्य: श्रीसद्गुरु भगवान जू॥