||Shree Radharamanno Vijayatey||
The Guru influences our lives just like the mother in three ways. Three types of mothers mould the life of their progeny!
The second category of the mother is just like a cow!
The cow will never feed its calf defiled food. She doesn’t give whatever comes out of her mouth, instead, she gives whatever she pours out from her udder. The bird pecks on different grains and carries it to feed her chicks but the cow eats grass or hay or the cow feed that is given to her, she regurgitates it over and over, converts it into milk and gives it to her calf!
When the cow returns after grazing, she doesn’t have to put her mouth anywhere, instead the calf comes running and puts its mouth at the udder, instantly, the milk starts pouring out thereby satiating the calf and the cow also feels lighter!
The second type of Guru’s grace is of this type!
One Guru tries to simplify each and every action and explains it to the disciple whereas the second type of Guru behaves just like the cow, who collects everything within himself and while offering it to the disciple says; ‘My Dear! You are free to do whatever you like; do as it may please you but just do this one thing – sit down quietly for some time and repeat or chant the Lord’s Name! This is pure milk!
‘Jis desh mein, jis parivesh mein, ya jis vyavastha mein raho;
Radha Raman, Radha Raman, Radha Raman, kaho||’
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhv Gaudeshwara Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||
गुरुरूपेण माता अस्माकं जीवनं त्रिधा प्रभावितं करोति। त्रिविधमातृणां बालस्य उपरि प्रभावः भवति ।
माता द्वितीयश्रेणीमाता अस्ति।
गोः किं करोति ? गौः कदापि मृषावादिनं न पोषयति। मुखात् यत् निर्गच्छति तत् न ददाति, यत् उदरात् निर्गच्छति तत् ददाति। खगः भिन्नान् धान्यान् चित्वा स्वसन्ततिभ्यः पोषयति, परन्तु गोः वनस्य सर्वाणि धान्यानि चित्वा अन्तः पूरयति, सर्वाणि कण्डानि चर्वयति, सर्वाणि च दुग्धं करोति ।
गौः आगमनमात्रेण सा स्वयं मुखे न प्रहरति, वत्सः धावति तथा च सः धावति, गोउदरे मुखं प्रहरति तावत् एव कार्यद्वयं कृतं, वत्सस्य उदरं पूरयति, गोः अपि लघु भवति।
द्वितीयनिचे गुरुप्रसाद एवम्।
एकः गुरुः जीवनस्य प्रत्येकं आचरणं सरलतया व्याख्यायते अपरस्य गुरुस्य प्रभावः गैया इव भवति यः सर्वाचरणस्य सारं सङ्गृह्य कथयति – भ्राता यत् कर्तुम् इच्छसि तत् कुरु, यथा त्वं कुरु कर्तुम् इच्छन्ति, केवलं एकं कार्यं कुर्वन्तु। करो- बस रुचिपूर्वक किञ्चित् काल उपविश्य श्री ठाकुरजी का नाम स्मरण करें। एतत् क्षीरम् ।
भवान् कस्मिन् अपि व्यवस्थायां निवसति।भवन्तः यस्मिन् देशे निवसन्ति, यस्मिन् अपि वातावरणे निवसन्ति
बोलो राधारमण राधारमण राधारमण।
॥परमराध्य: पूज्य: श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य: श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज॥
गुरु रूपी मैया तीन प्रकार से हमारे जीवन में प्रभावित होती हैं। तीन प्रकार की माता का प्रभाव बालक के ऊपर होता है।
दूसरे दर्जे की माँ होती हैं गइया॥
गइया क्या करती है गइया कभी जूठा नहीं खिलाती है । उसके मुख से जो निकलता है वह नहीं देती, उसके थन से जो निकलता है वह देती है। चिड़िया तो अलग-अलग दानों को चुनकर लाकर बच्चों को खिलाती है पर गइया जंगल के सारे दानों को चुनती है, अपने अंदर भरती है, सबकी जुगाली करती है, सबका दूध बनाती है।
जैसे ही गइया आती है तो खुद मुँह में नहीं मारती, बछड़ा दौड़ता है और दौड़कर जैसे ही अपना मुंह गइया के थन में मारता है तो दोनों काम हो जाता है बछड़े का पेट भी भर जाता है और गइया भी हल्की हो जाती है।
दूसरे आले की गुरुकृपा ऐसे ही होती है।
एक गुरु वह है जो जीवन के हर आचरण को सरल करके कहता है और दूसरे गुरु का प्रभाव गइया की तरह है जो सारे आचरण का सार इकट्ठा करके कहता है- भैया तुझे जो करना है वह कर, जैसे करना है वैसे कर, बस एक काम कर- बस थोड़ी देर रुचि से बैठकर श्रीठाकुरजी का नाम स्मरण कर। यह दूध है।
चाहे जिस व्यवस्था में रहो। जिस देश में रहो जिस परिवेश में रहो
राधारमण राधारमण राधारमण कहो।।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।