श्री राधारमणो विजयते
जहाँ दिल आ जाता है वहाँ दिमाग बहुत पीछे रह जाता है। तब प्रश्न नही रह जाता, प्रश्न पीछे खड़ा हो जाता है। जहाँ दिल नही होता, वहाँ प्रश्न होता है और जहाँ दिल आ जाता है वहाँ उसको जगह भी नहीं मिलती।
दिल नही है मन्दिर भी क्यों जाऊँ, दिल नही है वृन्दावन भी क्यों जाऊँ, कथा में क्यों जाऊँ, कीर्तन में क्यों जाऊँ, चरणामृत भी क्यों लूॅं? और अगर दिल आ जाता है तो जगन्नाथ जी में परम्परा है कि वहाँ का प्रसाद उच्चिष्ठ होता ही नहीं है, दूसरे के मुंह से भी निकाल कर पा ले तो भी वहाँ प्रश्न नही होता।
भीतर से आए तो बात और है, किसी के मुंह में पड़ा हो और मुंह से निकालकर तुम उसका आस्वादन कर सकते हो फिर कोई प्रश्न नहीं है
जहाँ दिल होता है वहाँ प्रश्न नही होता।
अर्जुन की यही एक समस्या है वो यही कह रहा था मैं ऐसा हूँ कैसे करूँ? भगवान ने पूरी गीता सुना दी। फिर भगवान ने एक बात कही- कुछ मत कर। हर वार्तालाप को छोड़ दे, हर व्यवहार को छोड़ दे।
व्यवहार कभी दिल से नहीं हो सकता, व्यवहार जब भी होता है, दिमाग से होता है। दिल को किसी व्यवहार की जरूरत भी नहीं पड़ती है और एक बात कहूँ
दिल को व्यवहार नहीं चाहिए, दिल तो व्यापारी है। वो रस देना जानता है और रस लेना जानता है। देना और लेना रस की पद्धति जिसके भीतर जमी हुई है। दिल व्यापारी है। उसमें ज्यादा समझदारी नही है।
दिमागी समझदारी की बात करता है कोई बात नहीं, इसने नहीं दिया, दे दूं। दिल को ये सब समझ नहीं आता वो नासमझ है और ठाकुर को भी समझदार दूर-दूर तक नहीं अच्छे लगते। इतिहास में नासमझो ने उनको समझदारों से पहले ही पा लिया है।
।।परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज ।।
||Shree Radharamanno Vijayatey||
When you put your heart and soul into something then the intellect stays behind! Then the question or the doubt does not arise, it is pushed back. When the heart dissents then the doubt creeps in but in front of the heart, the intellect is unable to reach!
Somehow, you don’t feel like going to the temple, you aren’t keen to go to Vrindavan, you don’t want to go to the Katha or Kirtana, you don’t even want to take the Charanamrit! But if your heart wants then the Mahaprasad of Shree Jagannath, which is not supposed to be the leftover, even if you take it from what is stuck on somebody’s mouth, even then it is sacred!
If you get it from the temple then it is entirely different but if you have the leftover or even what is there inside or outside a devotee’s mouth, there is no problem at all!
So, wherever the heart is, there is no room for any doubt!
The problem with Arjuna was this that I am like this so how can I do this or dothat? The Lord narrated the entire Gita to him. Later on the Lord says that don’t do anything! Leave everything aside!
Your behavior can never be from the heart, it will always be influenced by your mind or intellect. When the heart is in question then no action is needed and one more thing;
The heart doesn’t seek or requires any action, it is a trader! It knows how to give Rasa and take Rasa. The give and take or in other words, the exchange of Rasa is its intrinsic nature! The heart is a seasoned trader. Though, it is not cunning or knows no guile!
The one who is cunning or shrewd will think that he hasn’t given, should I give or not? The heart can’t think and Shree Thakurji keeps the extra intelligent at an arms length! It is a well established fact that the innocent ones have attained Him before the highly intelligent ones!
||Param Aaradhya Poojya Shreemann Madhva Gaudeshwar Vaishnavacharya Shree Pundrik Goswamiji Maharaj||